दखल

महिमा ‘कोदंड रामकथा’ की – कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों………..

कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों। मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों॥ कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि»

राजनीति में भारतीयता के वाहक थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय

पं. दीनदयाल उपाध्याय के दौर की राजनीति में साम्यवाद और समाजवाद का बोलबाला था। उस समय इनसे भिन्न दीनदयाल जी ने जो विचार द»

समर नहीं, समरसता

भारत की जीवन-व्यवस्था और चिंतन-प्रक्रिया में एक अद्भुत सामर्थ्य रही है। हजारों वर्ष प्राचीन हमारा देश आर्थिक, सामाजिक, र»

आप अपने देश के उस हिस्से में जाएं जहां रेल के चरण अभी नहीं पहुंचे हैं, वहां छ: महीने फिरें और फिर दिल में देश का दर्द पैदा करें और स्वराज्य की बात करें

…रोम और यूनान आज अवनति के गढ्ढों में गिरे हुए हैं। फिर भी यूरोप के लोग उन्हीं की पुस्तकों से ज्ञान लेते हैं। वे सो»

अयोध्या की ऋषि परंपरा

अतीत की अयोध्या से शुरू हुई धर्म, संस्कृति और अध्यात्म की त्रिवेणी वर्तमान तक बह रही है। यह धारा कभी तेज तो कभी धीमी हो»

औपचारिकता भर रह गया डब्ल्यूटीओ, (इक्कीसवीं सदी की भारत यात्रा, भाग-3)

साल 2005 के बाद पूरी दुनिया में “विकास” के बारे में बहस भी शुरू हो गई। 2008 के अमेरिका मे हुई मंदी का अमेरिका पर विशेष प»

राष्ट्रीय चेतना का उभार (इक्कीसवी सदी में भारत की यात्रा – भाग-2)

भारत पहले रूस, फिर थोड़े समय चीन और 1990 से अमेरिका बनने की कोशिश मे लगा। पर ब्राजीलीकरण की ओर बढ़ा। ब्राजील की आबादी उत्त»

इक्कीसवीं सदी का भारत-अमीर देशों की कठपुतली हैं वैश्विक संस्थाएं

जैसा कई बार कहा जा चुका है कि समाज मे पिछले 500 वर्षों मे जो बदलाव आया है उतना बदलाव पिछले 5000 वर्षों मे नही आया।उपनिवे»