आतंकवाद एक शास्त्र है

अब यह हिंदू मानसिकता को समझ कर आगे चलना है और पंजाब के बारे में भी यही लागू है। अब इस समस्या के बारे में हम पहले समझ लें। कुछ बातें जो मैंने पहले कही हैं। वे मैं संक्षेप में बताना चाहता हूं। एक बात यह कि आतंकवाद एक शास्त्र है। दुनिया में यह शास्त्र विकसित हुआ है। प्रारंभ इस शास्त्र का मध्य अमेरिका, लेटिन अमेरिकन देशों से हुआ। चीन वगैरा उसके आद्य-प्रणेता हैं।

1945 के पश्चात, दूसरे महायुद्ध के पश्चात यह शास्त्र प्रारंभ हुआ और स्थल, काल तथा परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग देशों में उसको कुछ डाइमैंशनज आयाम जोड़े जाते रहे। यह बात सही है लेकिन आधार एक ही है। सब लोगों को मालूम है और यह जो शास्त्र है ये जानने वाले सब देशों में है। दूसरा भी है आतंकवाद को खत्म कैसे करना यह भी शास्त्र है और यह शास्त्र भी दुनिया की सभी सुसंस्कृत सरकारें जानती हैं।

सभ्य सरकार दुनिया की सभी जानती हैं कि यह शास्त्र क्या है? अब इस दृष्टि से आतंकवाद जहां-जहां आता है वहां-वहां उसको समाप्त करने की जिम्मेदारी सरकार को ही लेनी पड़ती है। ऐसा दुनिया के इतिहास में आरंभ से अब तक है। ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि सरकार तो गाफिल रहे और केवल जनता ने या किसी स्वयंसेवी संगठन ने आतंकवाद को समाप्त किया। एक भी उदाहरण दुनिया के इतिहास में नहीं।

हां, ये है कि सरकार जब इच्छा शक्ति के साथ आगे बढ़ती है तो जनता उसको कोपरेट करती है सहयोग देती है। ऐसा तो हुआ है। लेकिन जहां सरकार गाफिल है। सरकार की इच्छाशक्ति नहीं, जनता ने ही ये सारा काम निपटा लिया ऐसा दुनिया के इतिहास में नहीं।

सरकार की इच्छाशक्ति से आतंकवाद का दमन

हमारे इतिहास में उदाहरण है। 1947-48-49 में निजाम स्टेट थी। एक हिस्से में तेलंगाना जिले के कम्युनिस्टों ने अपना शासन निर्माण किया था। पार्लियामेंट सरकार कम्युनिस्टों की चल रही थी और उस पार्लियामेंट सरकार के खिलाफ जनता कुछ नहीं कर सकती थी। निजाम सरकार भी हतबल हो गई थी। लेकिन जैसे ही 15 सितम्बर को हमारी सेनाएं स्टेट में घुस गईं। हैदराबाद स्टेट को हाथ में लिया तो सरदार पटेल के आदेश पर उसी सेना का एक हिस्सा उस एरिया में गया जहां कम्युनिस्टों की पार्लियामेंट सरकार चल रही थी। सरकार खत्म हुई। पूरी तरह से खत्म हुई।

आज जो नक्सलवादी हैं वह दूसरा ऐलीमेंट है। उस समय वह पूरी तरह खत्म हुआ था। उसके कई वर्षों के बाद फिर से नक्सलवाद वहां आया है। लेकिन उस समय तो उस आंदोलन को पूरा खत्म किया और ये भी जो नक्सलवाद बढ़ रहा है आप पढ़ते होंगे कि सरकार के प्रोत्साहन के कारण बढ़ रहा है। इसी के कारण चेन्ना रेड्डी को जाना पड़ा। तो आज का नक्सलवाद और उस समय की कम्युनिस्टों की पार्लियामेंट सरकार ये अलग-अलग बातें हैं किंतु ये पार्लियामेंट सरकार जहां चल रही थी सेना के कारण उसको खत्म किया गया।

आंध्र में ऐसी ही पार्लियामेंट सरकार कुछ वर्ष पूर्व काचीनाडा और श्रीकाकुलम में नेक्सीलाइटिस ने चलाई थी। बैंगल राव, ये नाम आपने सुना होगा, वो मंत्री भी रहे। बेंगलराव गृहमंत्री बन गए उनकी इच्छाशक्ति प्रबल थी। उन्होंने श्रीकाकुलम और काचीनाडा में नैक्सलिस्म को आमूलचूल खत्म किया। उनका नाम लेने के लिए रहा नहीं कोई। अब चेन्ना रेड्डी के कारण जगह-जगह सारे गुंडा लोग सामने आ गए बात अलग है। लेकिन बंगलराव की जब इच्छाशक्ति थी गृहमंत्री के नाते तो काचीनाडा और श्रीकाकुलम में पूरी तरह से उसको खत्म किया गया। तो बाहर भी ऐसा है। अपने यहां भी ऐसा है। इसके लिए मैंने उदाहरण कई बैठकों में दिया।

मैं दो उदाहरण इसके बारे में हमेशा देता रहा हूं। पंजाब में भी कई जगह दिया कि सरकार की इच्छाशक्ति का मतलब क्या होता है। बहुत लोग सोचते हैं कि साहब ऐसा तो नहीं कि आप अपनी जिम्मेदारी टालने के लिए सरकार पर शक कर रहे हैं। ऐसा नहीं। सरकार की इच्छाशक्ति से ही काम होता है। यदि जनता का सहयोग हुआ तो जल्दी काम होगा।

{साल 1990 के दिसंबर महीने में लुधियाना में आरएसएस के सम्मेलन में दत्तोपंत ठेगड़ी के भाषण के अंश}

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