गांधी क्यों नहीं चाहते थे कि संविधान सभा बैठे

राकेश सिंह

संविधान सभा में ग्राम पंचायत पर हुई बहस को पढ़ने के बाद अनेक भ्रम दूर हो जाते हैं। उस बहस में करीब 50 सदस्यों ने भाग लिया। वे सब स्वतंत्रता संग्राम के जाने माने नाम हैं। यह कितनी विचित्र बात है कि संविधान सभा ने जिन समितियों के जरिए काम किया, उन समितियों में ये लोग नही थे।

संविधान सभा की कार्यवाही देखेने में आता है कि संविधान सभा दो धरातल पर काम कर रही थी। एक समितियों के स्तर पर, दूसरा सामान्य सदस्यों के स्तर पर। सामान्य सदस्यों की कोई भूमिका नही थी। संविधान जो बना उस पर तो सबसे बड़ा फैसला डा. भीमराव अंबेडकर ने सुनाया। वे संविधान निर्माता माने जाते हैं। वे प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने 2 सितंबर 1953 को राज्यसभा में कहा “मुझसे बार बार कहा जाता है कि मै संविधान का रचयिता हूं, लेकिन मै तो भाड़े का टट्टू था। मुझे जो करने के लिए कहा जाता था, उसे मैं अपनी इच्छा के विपरीत करता था। मै पहला व्यक्ति होऊंगा जो इस संविधान को जलाना पसंद करेगा, क्योंकि यह किसी काम का नहीं”

जहां तक संविधान सभा का प्रश्न है, गांधी जी इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि यह संविधान सभा नही बुलाई जानी चाहिए। क्योंकि इसे वायसराय ने गठित की है। जो लोग चुने गए हैं उन्हें वायसराय ने निमंत्रण भेजा है। इस तरह संविधान सभा ब्रिटिश सरकार की बनाई हुई है। यह बात गांधी जी ने लुई फिशर से कही। इसलिए जो लोग यह समझते हैं कि यह सार्वभौम सभा है तो वह गलत समझते हैं। बल्कि जिन्ना ने तय कर लिया था कि इस संविधान सभा में नहीं शामिल होना है।

जिन्ना को दो बातों पर भरोसा था। एक मुस्लिम एकता, दूसरा हिंसा। जब कांग्रेस ने अंतरिम सरकार बनाने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया तो जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को सीधी कार्यवाई की घोषणा कर दी। जिसका मतलब था हिंसा और कत्लेआम। हमारे नेताओं ने जिन्ना की रणनीति को नहीं समझा। जब 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा बैठी तो उसमें मुस्लिम लीग के सदस्य नहीं आए।

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