ईश्वर का सबसे अच्छा नाम दरिद्रनारायण

आचार्य, अध्यापकगण, विद्यार्थियों, भाइयों और बहनों,

इस विश्वविद्यालय में मैं पहली बार नहीं आया हूं, इससे पहले भी आ चुका हूं। एक समय आपने मुझे खद्दरनिधि और दरिद्रनारायण के लिए पैसे दिए थे। आपने मुझे अभी 1286 रूपए की थैली दी है। आप अभी कुछ और भी देंगे। आपने जो कुछ दिया है और जो कुछ देंगे, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं। यह आपका सौजन्य है। किंतु यदि आप मुझसे पूछें कि क्या इतने से आपको संतोष हुआ है तो मैं कहना चाहूंगा कि मुझे इस रकम से संतोष नहीं हुआ है। आपके बारे में मैं बराबर सुनता रहता हूं। पूज्य मालवीयजी आप लोगों के बारे में कुछ-न-कुछ बातें बताते रहते हैं। जो कुछ मुझे मालूम हुआ है, उसमें मैं यह समझता हूं कि आपकी शक्ति इससे अधिक हैं।

श्री जमनालाल बजाज यहां आए थे। खादी के संबंध में आप क्या करते हैं, उसके बारे में उन्होंने मुझे बताया था। उस समय मुझे कुछ आशा हुई थी। लेकिन अब तो-कुछ देख और सुन रहा हूं, उससे मालूम होता है कि अभी तक आपके हृदय तक खादी का संदेश नहीं पहुंचा है। इसमें आश्चर्य नहीं है पर यह दुःख की बात जरूर है।

हिन्दू विश्वविद्यालय पूज्य मालवीय जी की बड़ी कृति है। वे 40 बरसों से भी अधिक समय से अविच्छिन्न रूप से सेवा करते आ रहे हैं। उन्होंने जैसी सेवा की है वह सबो मालूम है। उनकी सेवा का निचोड़ हिन्दू विश्वविद्यालय है। पूज्य मालवीय जी और मुझमें मतभेद है। दो भाइयों में जिस तरह मतभेद हो सकता है, उसी तरह हम दोनों में भी है। लेकिन इस मतभेद के कारण उनकी सेवा से कोई इंकार नहीं कर सकता। मालवीय जी की सफलता का माप विश्वविद्यालय की सफलता से किया जा सकता है और विश्वविद्यालय की सफलता का नाप इस बात से किया जा सकता है कि विद्यार्थियों ने कहां तक अपने परित्र का गठन किया है, भारत की उन्नति में कहां तक हिस्सा लिया है, उनमें धर्म भाव कहां तक बढ़ा है।

आप भारत के इस सपूत की अविस्मरणीय सेवा के पात्र बनने की दिशा में क्या कुछ कर रहे हैं। उनकी अपेक्षा आपसे धुरंधर साहित्य महारथी बन जाने की नहीं है; वे यह तो चाहते हैं कि आप अपने जीवन में सच्चे धर्म को उतारकर हिन्दू धर्म और देश की रक्षा करें।… याद रखिए कि मालवीय जी की यह सबसे बड़ी कृति इमारतों के आलीशान होने अथवा 1300 एकड़ के जिस क्षेत्र में बनी है, उसके कारण नहीं बल्कि आप क्या बनते हैं, इस आधार पर परखी जाएगी। यदि आपके अपने चरित्र में अपेक्षित पवित्रता प्रकाशित होती है तो यह आप किसी अन्य माध्यम से उस हद तक प्रकाशित नहीं कर सकते, जिस हद तक चरखे को अपनाकर कर सकते हैं।

प्रभु के अनंत नामों में कुछ इने गिने धनवान लोगों से भिन्न करोड़ों लोगों को सूचित करने वाला नाम दरिद्रनारायण सर्वाधिक पवित्र है। इस भूख से मर रहे करोड़ों लोगों से थोड़े बहुत एकरूप होने का सबसे सरल और उत्तम उपाय मेरे द्वारा बताई गई विविध पद्धतियों से चरखे का संदेश फैलाना ही है। कुशल कातने वाला बनकर, खादी को अपनाकर और उसके लिए आर्थिक मदद देकर यह संदेश फैलाया जा सकता है। याद रखिए कि मालवीय जी ने जो सुविधाएं आपके लिए मुहैया कर दी है, वे इस अनंत जन-समुदाय को प्राप्त हो ही नहीं सकती। तब फिर आप अपने इन भाई-बहनों को बदले में क्या देने वाले हैं?

चरखा छोटा-सा यंत्र है, पर मेरी दृष्टि से इसका बड़ा महत्व है। मेरे चरखे की बात आप मानें या न मानें, पर चरखे में मेरी श्रद्धा तो बढ़ती ही जा रही है। आपके यहां इतना बड़ा मकान है। आप जो कुछ सुविधाएं चाहें, यहां मिल सकती हैं। यहां ऐेसे भी विद्यार्थी हैं, जिनसे कुछ फीस नहीं ली जाती। ऐसे भी लोग हैं जिन्हें मालवीय जी महाराज पैसे भी दे देते हैं। छात्र और छात्राओं के लिए जो एक महापुरूष कर सकता है, वह मालवीय जी कर रहे हैं।

जहां आप ऐसी हालत में हैं, वहां दूसरी तरफ करोड़ों आदमियों को 24 घंटे में एक बार रूखी रोटी और मैले नमक के सिवा कुछ नहीं मिलता। जगन्नाथजी में लोग भूखों कर रहे हैं। उनकी आंखों में तेज नहीं है। उनकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती है। मैं किसी भूतकाल की चर्चा नहीं कर रहा हूं, बल्कि वर्तमान समय की ही बात सुना रहा हूं। एक तरफ लोग पेट भर खाते हैं, इतना ज्यादा खाते हैं कि उन्हें डाक्टरों और हकीमों की जरूरत पड़ती है। दूसरी ओर लोग भूखों मर रहे हैं। मैं आपसे पूछता हूं कि आप इन भूखे मरने वालों के लिए क्या करते हैं। क्या आपके हृदय में इन अस्थि-पंजरों के लिए कोई स्थान है?

ईश्वर का सबसे अच्छा नाम दरिद्रनारायण है। विश्वनाथ जी के दर्शन में जब तक एक भी आदमी का निषेध बना है, तब तक वहां ईश्वर का वास नहीं हो सकता। वहां अस्पृश्य प्रवेश नहीं कर सकता। अगर अस्पृश्य विश्वनाथजी के मंदिर में जा सकें और ‘ईश्वर’ की कृपा हो जाए तो उसकी हड्डियां बची रह जाएं। अगर आप ईश्वर का साक्षात्कार करना चाहते हों तो दरिद्रनारायण की सेवा करें। आपने 1286 रूपए मुझे दिए हैं। आप कुछ न देते उससे तो यह अच्छा ही है कि आपने मुझे यह रकम दी। लेकिन अगर आप दरिद्रनारायण के लिए खादी न पहनें तो यह रकम देने से भी क्या लाभ है?

आप खादी पहनें तो यह वाणिज्य-बुद्धि होगी। वस्त्र तो आपको चाहिए ही। यदि आप 1) की खादी पहनें तो उसमें 13 आने गरीब लोगों के हाथ में जाते हैं और अगर आप 1) का विदेशी कपड़ा लें तो 13 आने बाहर चले जाते हैं। जैसी गरीबी हिन्दुस्तान में है, वैसी धरती के किसी और हिस्से में नहीं हैं। अगर आप यह गरीबी दूर करना चाहते हों तो खादी पहनें।

यह तो मैं जानता हूं कि खादी पहने वालों में भी दगाबाज, धोखेबाज और व्यभिचारी होते हैं। पर ये दोष खादी न पहने वालों में भी पाए जाते हैं। ये दोष सामान्य हैं। जो खादी नहीं पहनते, उनमें भी तो धोखेबाज,दगाबाज और व्यभिचारी होते हैं। खादी पहनने वाला दगाबाज या धोखेबाज है, पर उसमें इतनी तो अच्छी बात जरूर ही है कि वह खादी पहनता है। मुझे एक वेश्या मिली थी जो खादी पहनती है। उसने कहा कि ईश्वर से प्रार्थना दीजिए कि हम वेश्याएं अपने दोष से छूट जाएं।

आप अपना हृदय शुद्ध करें और जो कुछ त्याब करें वह शुद्ध भाव से करें। आप जेल जाएं या फांसी पर जाएं तो शुद्ध भाव से ही जाएं। आप अपना दिल साफ कर लें। डिग्रियां तो सभी विद्यालयों में मिल सकती हैं, लेकिन आपके विश्वविद्यालय की कुछ विशेषता होनी चाहिए। अब आप लोग जो कुछ और देना चाहें दें, क्योंकि अभी आपने अपनी शक्ति के अनुसार नहीं दिया है। मालवीय जी तो पकड़-पकड़ कर चंदा लेते हैं। वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करें।

आज, 30.9.1929 (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 25 दिसंबर, 1929 का भाषण)

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