ग़ज़ल – दिल मगर हिन्दोस्तानी चाहिए

 

 

 

 

कब किसी की मेहरबानी चाहिए

पर हमें भी साँस आनी चाहिए

ज़ात, मज़हब, रंग, बोली जो भी हो,
दिल मगर हिन्दोस्तानी चाहिए.
कृष्ण रोये ज्यों सुदामा के लिए,
दोस्ती ऐसे निभानी चाहिए.
जान तो मत लो किसी की भाइयो,
हर किसी को ज़िन्दगानी चाहिए.
आसमाँ छूना कोई मुश्किल नहीं,
सोच लेकिन आसमानी चाहिए.
“प्रेम” अह्ल-ए-मुल्क को समझा ज़रा,
एकता हमको पुरानी चाहिए.

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