
आज भारत में पेट्रोलियम उत्पादों का करीब 40 फीसदी डीजल की खपत होती है। सार्वजनिक वाहनों में आज 16.5 फीसदी की खपत होती है। जबकि यह आंकड़ा साल 2013 में 28.5 प्रतिशत था। पेट्रोलियम एवं गैस मंत्रालय की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बड़े पैमाने पर ऊर्जा आयात पर निर्भर नहीं रह सकता है। उसे अपने स्वयं के स्रोतों का विकास करना चाहिए। वैसे भारत के प्राथमिक ऊर्जा के स्रोत प्रमुख रूप से कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस और परमाणु है। कोयला ग्रिड बिजली का उपयोग ज्यादातर स्टील, सीमेंट जैसे भारी उद्योगों में किया जाता है। वैसे भारत में कोयला भारी मात्रा में उपलब्ध है फिर भी तेल और गैस के भंडार की खोज की जानी चाहिए।

इसी रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि 2027 तक देश में ऐसे शहर जहां की आबादी 10 लाख से अधिक है, या जिन शहरों में प्रदूषण का स्तर ज्यादा है वहां पर डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इसके अलावा 2030 तक सिटी ट्रांसपोर्ट में केवल ई-बसों को शामिल किया जाना चाहिए। अनुमान है कि 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 1 करोड़ यूनिट प्रतिवर्ष का आंकड़ा पार कर लेगी। देश में इलेक्ट्रिक वाहनो को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय की समिति ने कहा है कि सरकार 31 मार्च से आगे के लिए फास्टर एडाप्शन एंड मैनुफैक्चरिंग आफ इलेक्ट्रिक एंड हाईब्रिड व्हीकल्स स्कीम यानि FAME के तहत प्रोत्साहन के विस्तार पर विचार करना चाहिए।
साथ ही सुझाव दिया गया है कि लंबी दूरी की बसों को इलेकट्रिफायड करना होगा। वैसे वाहन निर्माता कंपनियों ने पहले से ही शुरूआत कर दी है। भारत की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी मारूति सुजुकी ने 2020 से ही डीजल वाहन बनाना बंद कर दिया है। बाकि कंपनियां जैसे टाटा, महिंद्रा भी इस रास्ते पर अपना भविष्य देख रहे हैं।