“रामो विग्रह वान धर्म: साधू सत्य पराक्रम:।”  राम कोई व्यक्ति नहीं राम व्यक्तित्व हैं – स्वामी विजय कौशल जी

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में जिस समय निर्णय आया उसी समय सृष्टि में युग का परिवर्तन हो गया। इस समय कलिकाल चल रहा है लेकिन उसी दिन कलयुग में त्रेता ने प्रवेश कर लिया। जो दशा त्रेता युग में थी वो दशा प्रकट हो चुकी है। राम किसी व्यक्ति का नाम नहीं है और अयोध्या किसी स्थान का नाम नहीं है। “रामो विग्रह वान धर्म: साधू सत्य पराक्रम:।”  राम कोई व्यक्ति नहीं राम व्यक्तित्व हैं।  

अयोध्या और  राम के बारे में किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता ही नहीं है। जिनको सूर्य दिखाई नहीं देता उनकों अपने नेत्र की चिकित्सा करानी चाहिए। सूर्य था, सूर्य है और सूर्य रहेगा। यही सिद्धांत अयोध्या के साथ भी है। और इसीलिए इस युग का स्वागत करना चाहिए। जैसे श्रीराम जी के जन्म के साथ गोस्वामी जी ने लिखा था- त्रेता भई कृतित्व की करनी.. इस समय कलयुग में त्रेता का प्रवेश हो गया है। जो भी सत्ता इस देश में आती है, सत्ता चाहे जिसकी भी हो, जिस पार्टी औऱ विचारधारा की हो वो घोषित करता है- हम इस देश में रामराज्य का निर्माण करेंगे। कोई नहीं कहता कि हरिश्चंद्र जैसे सत्यवादी राजा के राज का निर्माण करेंगे। हम दशरथ जी जैसे धर्मात्मा राजा के राज का निर्माण करेंगे। हम विक्रमादित्य के राज्य जैसा राज्य निर्माण करेंगे। हर कोई कहता है कि हम रामराज्य निर्माण करेंगे।

राम व्यक्ति नहीं थे व्यक्तित्व थे। साक्षात धर्म थे, सदाचार थे, शील थे, सद्गुण थे, सद्व्यवहार थे, सम्वेदना थे। राम इन सद्गुणों के प्रतीक थे और रामराज्य इन सद्गुणों का वाहक था। रामराज्य शासन की व्यवस्था नहीं थी रामराज्य समाज की परम अवस्था थी। जहां प्रत्येक व्यक्ति राम जैसा चरित्रवान, शीलवान, करुणावान और राम जैसा दयावान, राम जैसा परोपकारी था। उस जगत में रहने वाले सारे लोग राम जैसे ही हो गए और उन्हें राम ही कहा गया। इस देश का सौभाग्य है कि राम ने अपने प्रकटीकरण के लिए भारत और अयोध्या जैसी भूमि को चुना।

अयोध्या राज की भूमि नहीं है। यहां धर्म का संदेश देनेवाली व्यासगद्दी रखी जाती है। और इसीलिए जो यह रामराज्य है, जिस समय राम का शपथग्रहण समारोह होने जा रहा था, राम ने वशिष्ठ से कहा गुरुदेव! मुझे शपथ दिलाइये। वशिष्ठ जी ने कहा नहीं राघव मैं आपको शपथ नहीं दिलाऊंगा। क्योंकि इस गद्दी पर बैठनेवाला प्रत्येक राजा जो आपसे पूर्व हुआ है वह अपने मन से शपथ लेता था।

वशिष्ठ जी बोले हैं-राम तुम दशरथ पुत्र हो यदि आप धर्मात्मा महाराज दशरथ के पुत्र हैं तो आप स्वयं शपथ लीजिए। रामराज्य की शपथ क्या होती है? भगवान स्वयं शपथपत्र पढ़कर घोषणा करते हैं- “राज्य को, कुल को, सुख को, परिवार को यद्यपि प्राणप्रिय जानकी जी को भी मुझे त्यागना पड़े, और उसके कारण जनता को प्रसन्नता होती है तो मैं सब कुछ त्यागने को तैयार हूं। मुझे जनता प्रसन्न चाहिए। ये रामराज्य की शपथ है।” आज तो हम कहते हैं कि अभी कोर्ट ने अपराध सिद्ध नहीं किया है। कोर्ट तय करेगा तब हम दोषी होंगे। 

एक साधारण आदमी राज्य की महिषी पर आक्षेप करता है और सीताजी को अलग कर दिया जाता है। जिस राज्य में एक कुत्ते को सुना जाता हो, एक सामान्य व्यक्ति की बात जहां राजसत्ता सुनती हो, वो राज्य राम का राज्य कहा जाता है। इसलिए जब तक ये सृष्टि रहेगी रामराज्य का आदर्श ही संसार को चलायेगा। ये जो संदेश रामराज्य का प्रकट होने जा रहा है सदाचार का, सदाशयता का, संवेदनशीलता का, धर्म का परोपकार का, शिष्टता का, सद्चरित्र का। भारत की सरकारों से मेरा आग्रह है इसे स्वयं पालन करें और रामराज्य के रूप में अवध की पावन भूमि से निकलने वाला ये दिव्य संदेश भारत के जन-जन से पालन कराने का आग्रह करें। ये सरकारों की भी जिम्मेदारी है, समाज और शिक्षण संस्थानों की भी जिम्मेदारी है और हम सबकी जिम्मेदारी है। एक नए युग का सूत्रपात हुआ है। इस अयोध्या पर्व के माध्यम से त्रेता का दर्शन करिए।

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