प्राचीन भारत में जल मार्ग

ऋषिराज सिंह

भारत सदियों से समुद्री मार्ग से परिचित रहा है। समुद्रमार्ग से जहां दूसरे देशों से व्यापार होता रहा वहीं नदी मार्ग से देश के अंदर यातायात की शानदार परंपरा रही है। भारत में जल और थल मार्ग से देश-विदेश में व्यापार हजारों वर्षों से होता रहा है। इसका कारण देश के उत्तर में लंबा समुद्र तट भी है। भारत के पश्चिम बंगाल, ओडिशा, केरल,तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा आदि राज्य समुद्र तट से जुड़े हैं। भारत प्राकृतिक संपदा, बहुमूल्य खनिज का भंडार होने के साथ ही सदियों से उन्नत किस्म के कपड़े, आभूषण, मसाले और  हस्तशिल्प का उत्पादक रहा। प्राचीन काल में भारत का विश्व बाजार पर दबदबा था। विश्व भर के बड़े व्यापारी किसी भी स्थिति में भारत से व्यापार करना चाहते थे।

चीन और खाड़ी देशों के साथ सड़क मार्ग के अलावा जल मार्गों से भी व्यापार होता रहा है। इस प्रक्रिया में हम नाव के साथ ही पानी का जहाज बनाने से परिचित हुए। ऐतिहासिक साक्ष्य यह बताते हैं कि दूसरे देशों से व्यापार  करने के लिए हमारे देश में हजारों वर्ष पूर्व अति उन्नत बंदरगाह मौजूद थे। भारतीय शानदार समुद्री विरासत के उत्तराधिकारी हैं। करीब 2500 ईस्वी पूर्व हड़प्पा कालीन सभ्यता में गुजरात के लोथल में विश्व का प्रथम बंदरगाह बनाया गया। यह बंदरगाह जहाजों को जगह देने एवं उनकी देखभाल करने की सुविधाओं से युक्त था। इसका निर्माण ज्वारीय प्रवाहों के अध्ययन के बाद किया गया था।

प्राचीन काल से ही भारतीयों ने सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ-साथ जलवायु और अन्य विविधताओं को ध्यान में रखकर बरसाती पानी, नदी-नालों, झरनों और जमीन के नीचे मिलने वाले, भूजल संसाधनों के विकास और प्रबन्धन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की थी। इसके प्रमाण देश के कोने-कोने में उपलब्ध हैं। वस्तुत: ये प्रमाण भारतीय भागीरथों के उन्नत ज्ञान, दूरदृष्टि और परिस्थितियों की बेहतरीन जानकारी को दर्शाते हैं जो आज के समय में भी प्रासंगिक हैं।

जल प्रबन्धन का पहला प्रमाण सिंधु घाटी में खुदाई के दौरान मिला। धौरावीरा में अनेक जलाशयों के प्रमाण भी मिले हैं। इस क्षेत्र में बाढ़ के पानी की निकासी की बहुत ही अच्छी व्यवस्था की गई थी। इसी प्रकार कुएं बनाने की कला का विकास भी हड़प्पा काल में हुआ था। इस क्षेत्र में हुई खुदाई तथा सर्वेक्षणों से विदित हुआ है कि वहां हर तीसरे मकान में कुआं था। ईसा के जन्म से लगभग 300 वर्ष पूर्व कच्छ और बलूचिस्तान के लोग बांध बनाने की कला से परिचित थे। उन्होंने कंकड़ों और पत्थरों की सहायता से बहुत ही मजबूत बांध बनाए थे और उनमें वर्षाजल को संरक्षित किया था।

बांधों में संरक्षित यह पानी पेयजल और सिंचाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये काम में लाया जाता था और लोग बांध में एकत्रित पानी के प्रबन्धन में दक्ष थे। चन्द्रगुप्त मौर्य (ईसा से 321-297 वर्ष पूर्व) के कार्यकाल में भारतीय किसान सिंचाई के साधनों – तालाब, बांध इत्यादि से न केवल परिचित थे वरन वर्षा के लक्षण, मिट्टी के प्रकार और जल प्रबन्धन के तरीकों को भी अच्छी तरह से जानता थे।

जल विज्ञान और जल प्रबन्धन के कार्य से जुड़े ज्ञान में पारंगत होने के कारण, समाज, संरचनाओं को बनाने, चलाने और अनुरक्षण के कार्य को अंजाम भी देता था। उस काल के राजा का कार्य व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में सहायता प्रदान करना था। उस काल के लोग बाढ़ नियंत्रण के कार्य से भी अच्छी तरह परिचित थे। उन्होंने ईसा के जन्म से एक शताब्दी पूर्व इलाहाबाद के पास गंगा की बाढ़ से बचने के लिये नहरों और तालाबों की एक दूसरे से जुड़ी संरचनाएं बनाई थीं। इन संरचनाओं के कारण गंगा की बाढ़ का अतिरिक्त पानी कुछ समय के लिये इन नहरों और तालाबों में एकत्रित हो जाता था। इस प्रणाली के अवशेष श्रृंगवेरपुरा में प्राप्त हुए हैं।

दो हजार वर्ष पहले लोथल के अतिरिक्त कुछ अन्य भारतीय बंदरगाह भी थे जो वैश्विक समुद्री व्यापार के प्रधान चालक थे। जिसमें बैरिगजा- जो आज गुजरात में भरूच के तौर पर जाना जाता है। मुज़ीरिस- जो आज केरल में कोचीन के निकट कोडुंगालुर के तौर पर जाना जाता है। कोरकाई- जो आज तूतीकोरिन है। कावेरीपत्तिनम जो तमिलनाडु के नागपट्टिनम जनपद में स्थित है। इसके साथ ही  अरिकमेडु जो पुद्दुचेरी के अरियाकुप्पम जनपद में स्थित है। ये सारे बंदरगाह प्राचीन काल में व्यापार के प्रमुख केंद्र थे।

प्राचीन भारतीय साहित्य में रोम, ग्रीक, मिस्र एवं अरब देशों के साथ समुद्री व्यापार के कई प्रमाम मिलते हैं। भारत के प्राचीन साहित्य के अलावा ग्रीक और रोमन साहित्य में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय व्यापारियों ने दक्षिणपूर्वी एवं पूर्वी एशियाई देशों, अफ्रीका,अरब एवं यूरोप के साथ संपर्क बनाया हुआ था। केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सड़क मार्ग और जल मार्ग में ढांचागत विकास करने का निर्णय किया।

पोत, जहाज एवं समुद्र संबंधी अवसंरचना इनमें मुख्य है। केंद्र सरकार की कोशिश है कि वैश्विक समुद्री क्षेत्र में भारत की प्रतिष्ठा पुनर्जीवित हो। देश अपने शानदार समुद्री विरासत पर कार्य करते हुए इस क्षेत्र में नयी ऊंचाइयां छूने के लिये प्रयासरत हैं। मोदी सरकार ने सागरमाला परियोजना से बंदरगाहों को उन्नत करने के साथ ही इसे सड़क मार्ग से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। इसका उद्देश्य लंबी समुद्री सीमा एवं प्राकृतिक समुद्री अनुकूलता का फायदा उठाना था। इसमें पत्तन आधारित विकास को प्रोत्साहित करने, तटवर्ती अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना एवं इन क्षेत्रों में ढांचागत व्यवस्था के विकास पर भी जोर देना है। बंदरगाहों का विकास कर उनको विशेष आर्थिक क्षेत्रों, बंदरगाहों पर आधारित छोटे शहरों, औद्योगिक पार्कों, भंडारगृहों, साजोसामान पार्कों एवं परिवहन गलियारों के साथ जोड़ना है।

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