संसदीय इतिहास में दर्ज है कल्याण सिंह और रोमेश भंडारी की बहस

लालकृष्ण आडवाणी के पीछे खड़े – कल्याण सिंह, कलराज मिश्र,गोविंदाचार्य, राजनाथ सिंह, ब्रम्हदत्त द्विवेदी, विंध्यवासिनी कुमार, सत्यदेव सिंह

बात है 17 अक्टूबर 1996 की। यह वही दिन था जिस दिन उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा। विधान सभा को निलंबित रखा गया। राज्यपाल था रोमेश भंडारी। जबकि राजभवन में पंडाल लगा था। कुर्सियां सजी थी। ये सब इसलिए था क्योंकि मुख्यमंत्री की शपथ होने वाली थी। रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को कहलवा भी रखा था, कि उन्हें कभी भी बुलाया जा सकता है। क्योंकि उन्हीं को शपथ लेनी थी। दरअसल ये सब गफलत में रखने के लिए माहौल बनाया गया था। कल्याण सिंह के पास संदेश लेकर गए थे उस समय के सूचना निदेशक रोहित नंदन। लेकिन जब कल्याण सिंह को राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सूचना मिली तो उन्होंने राज्यपाल के रवैये की कड़ी आलोचना की। उन्होंने यह भी कहाकि उन्हें झांसे में रखने के लिए राजभवन में समारोह आयोजित करने का नाटक किया गया। बाद में कहा गया कि कल्याण सिंह के पास रोहित नंदन को राज्यपाल प्रधान सचिव सुशील चंद्र त्रिपाठी ने भेजा था।

इस घटना के बाद भाजपा नेता राजनीतिक कार्यवाई की तैयारी करने लगे। विधान भवन के सामने भाजपा कार्यलय पर नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराज भीड़ जमा होने लगी। राजभवन का घेराव और ज्ञापन देने की तैयारी शुरू हो गई। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कलराज मिश्र, ब्रम्हदत्त दिवेदी और लालजी टंडन ने विधायकों और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और विरोध के विभिन्न तरीकों को बताया। इस समय तक कल्याण सिंह का कहीं अता पता नहीं था। जब सारी तैयारी हो चुकी तो कल्याण सिंह प्रकट हुए और नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। शाम से देर रात तक लखनऊ में जगह जगह राज्यपाल रोमेश भंडारी के खिलाफ प्रदर्शन किए गए और उनके पुतले जलाए गए। पार्टी कार्यालय से राजभवन तक पुलिस और भाजपा नेताओ के बीच धक्का मुक्की होती रही। एक किलोमीटर का यह रास्ता 1 घंटे में तय हो सका। उग्र भाजपा नेता जब राजभवन पहुंचे तो वहां पूरा सचिवालय जमा था। जैसे राज्यपाल पहुंचे भाजपा नेताओं ने उन्हें कलराज मिश्र, कल्याण सिंह, सत्यदेव सिंह और राजनाथ सिंह के दस्तखतों का ज्ञापन दिया और बरस पड़े। सबसे तेज हमला कल्याण सिंह का ही था। राज्यपाल और कल्याण सिंह की बातचीत संसदीय इतिहास में दर्ज हो चुकी है-

कल्याण सिंह – आज दिन भर की गतिविधियों से साफ है कि आपने केन्द्र से मिल कर लोकतंत्र का गला घोंट है। संवैधानिक परंपराओं को तोड़ा है। आपने राज्यपाल पद को कलंकित किया है।

रोमेश भंडारी – अभी तो राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना पर दस्तखत नहीं किए हैं।

कल्याण सिंह – आप फिर झूठ बोल कर वही हरकत कर रहे हैं जो पिछले सात रोज से कर रहे थे। आपने आज भी बचपना दिखाया है। और एक अफसर भेज कर मुझसे शपथ ग्रहण का समय पूछा। यह हास्यास्पद नाटक किया।

रोमेश भंडारी – कौन अफसर गया था ?

कल्याण सिंह – बगैर आपकी जानकारी के सारी तैयारियां राजभवन में हो गई। आपसे ज्यादा विस्वश्त तो मै उस अफसर को मानता हूं।

रोमेश भंडारी – मुझे तिजोरी नहीं भरनी है जो किसी के दबाव में काम करूं।

कल्याण सिंह – आपने मोटी रकम लेकर यह फैसला किया है। इस कुर्सी पर बहुत बड़े बड़े लोग बैठे थे। आप जैसा छोटा आदमी पहली बार बैठा है।

रोमेश भंडारी – नहीं तो आपको बिना बहुमत के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा देता ताकि आप सत्ता में आकर खरीद फरोख्त से अपना बहुमत दिखा देते।

कल्याण सिंह – आप अपने चरित्र से भाजपा के चरित्र को न जोड़ें। खरीद कर बहुमत दिखाना होता तो लोकसभा में दिखा देते।

रोमेश भंडारी – मैने तो कलराज मिश्र से पूंछा था कि बहुमत कहां से लाएंगे। मैने बाकी दलों से भी यही पूछा था कि क्या भाजपा का समर्थन करेंगे कोई राजी नही था।

कल्याण सिंह – आपने फोन कर भाजपा को समर्थन न करने के लिए पूछा। दरअसल आप यहां अपनी सरकार बनाए रखना चाहते हैं। एक आदमी की मर्जी 12 करोड़ मतदाताओं पर थोप दी गई। हमने कभी दवा नहीं किया कि फलां दल हमारा समर्थन कर रहे हैं। आप हमारे किस दावे की उनसे पुष्टि कर रहे थे।

रोमेश भंडारी – आप बहुमत दिखा भी देते तो संविधान की दसवीं अनुसूची का क्या होता।

कल्याण सिंह – अब दो माह तक क्या होगा इस कानून का। आप ने तो दल-बदल का रास्ता खोल दिया। आपने दल बदल कराने का खुला लाइसेंस दे दिया।

रोमेश भंडारी –मुझे जो करना था कर दिया। इस पर बहस या विवाद हो सकता है। इसे आप कानून की अदालत में चुनौती दे सकते हैं।

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