ये धृष्ट स्मारक

मद्रास में दो नवयुवकों पर मुकदमा चलाया गया है। एक तीस वर्षीय हिन्दू और दूसरा पच्चीस वर्षीय मुसलमान है। दोनों पर मद्रास की माउंट रोड पर स्थित गदर के दौरान प्रसिद्धि पाए जनरल नील की मूर्ति को तोड़ने की कोशिश करने का अभियोग लगाया गया है। यह मुकदमा हमारे लिए गहरा महत्व रखता है। इन नवयुवकों की यह कोशिश हमें, असहयोग आंदोलन के दौरान लाहौर में हुए, उस विफल प्रयास की याद दिलाती है, जिसमें लारेंस की मूर्ति को, या कम-से-कम उस पर अंकित अत्यंत ही आपत्तिजनक ‘कलम या तलवार’ वाले वाक्य को हटवाने की कोशिश की गई थी। लाहौर में वह कोशिश आम जनता की ओर से ही गई थी। मद्रास में यह प्रयास केवल दो नवयुवकों ने किया था, जो एक दृढ़ संकल्प के साथ चुपचाप अपना लक्ष्य पूरा करने गए थे। अभियुक्तों का निम्नलिखित बयान, जो ‘हिन्दू’ में प्रकाशित रिपोर्ट से लिया गया है, लोग दिलचस्पी से पढ़ेंगेः

पहले अभियुक्त ने कहा कि मेरा जन्म तो तिन्नेवेल्ली में हुआ था, पर मैं रहता हूं मदुरा में। यह काम करने से पहले मैं जानता था कि मुझे किस प्रकार का दंड मिलेगा। इस काम के लिए हम कोई भी दंड भोगने को तैयार थे। इतिहास की अपनी जानकारी के आधार पर मुझे मालूम था कि नील ने इस देश को बड़ा नुकसान पहुंचाया था और मैंने सोचा कि नील की मूर्ति वहां नहीं रहनी चाहिए और इसीलिए मैंने मूर्ति को नष्ट करने का संकल्प किया।

अपने स्थान से चलते समय हम हथौड़ी और कुल्हाड़ी अपने साथ लाए थे। पर हथौड़ी और कुल्हाड़ी इसी काम के लिए नहीं लाए थे। मद्रास पहुंचने पर, हम दर्शनीय स्थलों को देखने गए, और उसी दौरान हमने मूर्ति भी देखी। मूर्ति को देखकर उसका इतिहास याद आ गया और हमने उसे आज सुबह नष्ट करने की कोशिश की। हमने सोचा था कि मूर्ति या तो कांसे की होगी या संगमर्मर की, पर वह असल में लांबे की निकली। इसलिए उसके कुछ ही हिस्से टूट पाए थे कि सार्जेंट हमें थाने ले गया। इस अपराध के लिए माननीय न्यायाधीश हमें जो भी दंड देंगे, उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। जब उनसे पूछा गया कि क्या आप लोग अपना अपराध स्वीकार करते हैं तो उन्होंने कहा कि ‘सरकार के कानून के रूप से’ तो हम अपराधी हैं, लेकिन खुद अपनी राय में हम ‘अपराधी नहीं हैं।’

यह असंभव है कि इन वीर नवयुवकों के प्रति हृदय में सहानुभूति महसूस न की जाए; इस काम के पीछे उनकी जो मंशा थी, उसकी दृष्टि से भी और उन्होंने मुकदमे के दौरान जिस आत्मा गरिमा का परिचय दिया है, उसका भी ख्याल करके।

मेरे सामने जो विवरण है, उसमें आगे कहा गया है कि अभियुक्तों की ओर से कोई वकील नहीं था और उन्होंने खुद इस्तगासे के गवाहों से जिरह तक नहीं की। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं दिखता कि जैसे-जैसे राष्ट्रीय चेतना बढ़ेगी, ब्रिटेन के शौर्य के दुरूपयोग और बर्बरता के धृष्ट स्मारक रूप इन मूर्तियों के प्रति क्षोभ की भावना बढ़ती ही जाएगी। इसलिए, कोई सरकार चाहे जितनी शक्तिशाली हो, यदि उसमें समझदारी होगी तो वह लोगों के मन में सालने वाले ऐसे स्मारकों को कभी भी कायम नहीं रखेगी, क्योंकि उन्हें कायम रखने का मतलब होगा लोक-मत को ऐसी कार्रवाइयां करने के लिए भड़काना, जो लाख खेदजनक और निंदनीय होते हुए भी, सर्वथा औचित्यपूर्ण, राष्ट्रीय भावना की घोर उपेक्षा के एक समुचित प्रत्युत्तर के रूप में सही ही मानी जाएंगी। और निरंतर चुभते रहने वाले इन शूलों को निकाल फेंकने के प्रयत्न जब-जब विफल होंगे, कटुता कुछ और बढ़गी और हमारे तथा इंग्लैंड के बीच की खाई और भी चौड़ी होती जाएगी। ये मूर्तियां मद्रास नगरपालिका के अधिकार में हैं। उन्हें हटवाना उसका फर्ज है।

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