G-20 का आयोजन: विश्वगुरु का पुनर्जागरण

इस वर्ष के 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कहा, ” गरीबी के दौर से बाहर निकल कर भारत विश्व में आज आत्मविश्वास से भरे देश के रूप में अपना स्थान बना चुका है और वैश्विक व्यवस्था में उसने सकारात्मक प्रभाव डाला है.” श्रीमति मुर्मू का यह कथन कोई स्वप्निल गर्वोक्ति मात्र नहीं थी बल्कि वर्तमान वैश्विक राजनीति का यथार्थ है.

 इसका ज्वलंत उदाहरण है भारत में आयोजित होना वाला G20 सम्मेलन. G20 के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों का 18वां शिखर सम्मेलन 9-10 सितंबर 2023 को नई दिल्ली में आयोजित होना सुनिश्चित हुआ है. यह शिखर सम्मेलन मंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों और नागरिक समाजों के बीच पूरे वर्ष आयोजित होने वाली सभी G20 प्रक्रियाओं और बैठकों की परिणति होगी. आगामी जी-20 का विषय ‘वसुधैव कुटुंबकम’ या ‘एक पृथ्वी-एक कुटुंब-एक भविष्य’ है।
 G20 का गठन वर्ष 1999 के दशक में वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में किया गया था. G20 देशों में दुनिया की 60% आबादी, वैश्विक जीडीपी का 80% और वैश्विक व्यापार का 75% शामिल है. इस समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। भारत एक वर्ष की अवधि के लिये (1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023) G20 की अध्यक्षता करेगा. जिसके अंतर्गत भारत के 60 से अधिक शहरों में 200 से अधिक बैठकें आयोजित की जाएंगी। इसके अंतर्गत अलग-अलग क्षेत्रों से विभिन्न सहभागी समूहों के साथ व्यापक विचार-विमर्श आयोजित होंगे। इनमें शामिल हैं, बिजनेस-20, सिविल-20, श्रम-20, संसद-20, विज्ञान-20, वुमन-20, एसएआई-20, स्टार्टअप-20, थिंक-20, अर्बन-20 और यूथ-20.
C-20 समूह—–
 G-20 आयोजन से जुड़ा एक विशिष्ट समूह है सिविल-20 या सी-20. यह नागरिक समाज संगठनों को अपनी चिंताओं एवं आकांक्षाओं को जी-20 नेताओं तक पहुंचाने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है। सैद्धांतिक रूप से सी-20 समूह मानवाधिकार, स्वतंत्रता, वैश्विक चरित्र, पारदर्शिता, सहयोग, लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तिकरण, समावेशिता आदि के सिद्धांतों पर कार्य करता है। इस समूह की संरचना इस प्रकार है कि यह जी-20 के सिद्धांतों को आत्मसात करते हुए दुनिया भर में 800 से अधिक नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को शामिल करता है। सिविल ट्वेंटी समूह की प्रमुख भूमिका नागरिकों को जटिल मुद्दों को समझाने एवं जी-20 सदस्यों को विभिन्न मुद्दों पर विशेषज्ञता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है। सी-20 समूह जी-20 समूह देशों के आर्थिक हितों एवं नागरिकों के हितों के मध्य संतुलन स्थापित करने में सहायक हैं। सी-20 के अंतर्गत अनेक कार्य समूह हैं, जो विशिष्ट सिफारिशों एवं नीति प्रस्तावों को तैयार करने के उद्देश्य से नीतिगत प्रस्तावों पर चर्चा एवं विकास करते हैं।
 वैसे तो G-20 सदस्य देशों एवं नागरिक समाज संगठनों एवं अशासकीय संस्थाओं के बीच वैचारिक आदान-प्रदान 2010 में अनौपचारिक रूप से शुरू हो गया था. किंतु उसे अधिकारिक रूप से C-20 का प्रारंभ 2013 में हुआ. इसके अंतर्गत 200 बैठकें आयोजित की जानी हैं. सिविल-20 इंडिया की संचालन समिति ने 27 दिसंबर, 2022 को अपनी पहली बैठक की। इसी अनुरूप 21-22 मार्च 2023 को नागपुर, महाराष्ट्र में सी-20 समूह स्थापना सम्मेलन तथा सी-20 शिखर सम्मेलन 30-31 जुलाई 2023 को जयपुर, राजस्थान में आयोजित करने की योजना है।
  उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेत्री माता अमृतानंदमयी मठ (केरल) की संस्थापक माता अमृतानंदमयी को अक्टूबर में सी-20 इंडिया के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। सिविल 20 की प्रचार वाक्य (टैगलाइन) ‘यू आर द लाइट’ है, जिसका भावार्थ है, ‘समाज अपनी स्वायत्त शक्ति के साथ गतिशील होता है एवं अपना मार्ग स्वयं निर्मित करता है।’
  इस विशिष्ट आयोजन की मेजबानी करना देश के लिए एक गौरवमयी उपलब्धि है. परंतु एक कौतूहल है, क्या भारत को प्राप्त अध्यक्षता किसी सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है अथवा उसकी राष्ट्रीय कूटनीतिक विजय का परिणाम है? इसे समझना होगा. भारत ने वैश्विक कूटनीति का वो निम्न स्तर भी देखा है जहाँ संप्रग विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में पुर्तगाल के विदेश मंत्री का बयान पढ़ गये. भारत के मौनवीर प्रधानमंत्री श्रीलंक और तमिल संघर्ष के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से गठबंधन धर्म की मजबूरियां गिना रहे थे. ज़ब अमेरिका या यूरोप की कोई अनाम संस्था या साधारण नेता-सांसद भारत को धार्मिक स्वतंत्रता या अल्पसंख्यकवाद के नाम पर धमका देता था.
  किंतु आज परिस्थितियां अलग हैं. भारत से वैश्विक संघर्षों रूस-युक्रेन, मध्य पूर्व आदि में मध्यस्थता की उम्मीद की जाती है. यूक्रेन संकट पर भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दी गई सलाह का समर्थन करते हुए कहा कि, ‘पुतिन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि यह युग युद्ध का नहीं है, बिलकुल सटीक है।’ भारत की वैश्विक स्तर पर उभरते नेतृत्व का असर है कि ओआईसी के सदस्य देश अब कश्मीरी अलागाववाद को समर्थन देने से कतराने लगें हैं. इसी सन्दर्भ में उल्लेखनीय घटना है ज़ब 2017 में पाकिस्तान के रावलपिंडी में आयोजित विशाल रैली में हाफिज सईद के साथ फिलिस्तीन के राजदूत वलीद अबु अली ने मंच साझा किया. तब भारत के विरोध जताने पर फिलिस्तीन ने अपने पाकिस्तान में स्थित राजदूत को वापस बुला लिया था जबकि वह आयोजन ही फिलिस्तीनी मुक्ति आंदोलन के समर्थन में था.
 इसी प्रकार भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका में मानवाधिकार मुद्दों को लेकर भारत की आलोचना का जवाब देते हुए कहा कि, ‘अगर कोई देश हमारे आंतरिक मुद्दों पर टिप्पणी करेगा तो उसे भी हमारी बातें सुननी पड़ेंगीं. साथ ही उन्होंने कहा कि हमें नहीं लगता है कि किसी भी और देश को यह हक है कि वो हमारे अंदरूनी मामलों में टिप्पणी करें.’ यह भारत उस पुराने भारत से कितना अलग था. इस बदलाव के मूलभूत कारणों को समझना होगा.
आर्थिक सशक्तिकरण — 
  पिछले 9 सालों में भारत ने एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में अपनी सशक्त उपस्थिती दर्ज कराई है और विश्व व्यापार में आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक आदि पश्चिम परस्त वैश्विक आर्थिक संस्थाओं और अन्य अंतराष्ट्रीय मंचों स्वहितों के अनुकूल निर्णयन की नीति पर चला है. उदाहरणस्वरूप डब्लूटीओ के नैरोबी वार्ता (दिसंबर, 2015) के दौरान दोहा दौर के फैसले की पुनर्पुष्टि, क़ृषि उत्पादों के लिए विशेष सुरक्षा प्रणाली की माँग, विकसित देशों द्वारा कृषि निर्यात पर दी जा रही आर्थिक सहायता को ख़त्म करने, एंटी-डंपिंग के कड़े विरोध जैसे मुद्दों पर भारत का प्रभावी दखल रहा.
  इसी प्रकार डब्लू.टी.ओ. के ब्यूनस आयर्स सम्मेलन (2017) में भारत संगठन के मौलिक सिद्धांतों का पालन, दोहा विकास एजेंडे पर कार्य, स्वतंत्र अपीलीय एवं विवाद निपटारा व्यवस्था तथा विकासशील देशों के लिए विशेष प्रावधानों के पालन पर निर्णयन के लिए मजबूती से टिका रहा. यही नहीं रूस-युक्रेन संघर्ष में यूरोप-अमेरिका द्वारा जारी प्रतिबन्धों को नकारते हुए भारत ने तेल, हथियार और अन्य व्यापारिक सम्बंध जिस तरह जारी रखें वह भारतीय कूटनीति की स्वतंत्रता चेतना एवं दृढ़ता का परिचायक है.
 आर्थिक क्षेत्र में पश्चिम के एकाधिकार को तोड़ने के लिए फोर्टालेजा घोषणा पत्र के अनुरूप भारत समेत ब्रिक्स देशों द्वारा ब्रिक्स बैंक की स्थापना की गई. जिसकी शुरुआती पूँजी 50 अरब डॉलर तथा भुगतान संतुलन बनाये रखने के लिए 100 अरब डॉलर का आकस्मिक संचित प्रावधान किया गया. इसके अतिरिक्त भारत आसियान अधिसंरचना निवेश बैंक (एआईआईबी, 2014 में स्थापित) का भी संस्थापक सदस्य है.
 भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है. वर्ष 2022 में भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़कर विश्व की पाँचवी अर्थव्यवस्था बन गया. वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल-दिसंबर 2022 में भारत के वस्तु गत निर्यात में 9.09% की वृद्धि दर्ज की गई है. 2022 देश में देश की राष्ट्रीय आय के संबंध में एनएसओ के पहले अग्रिम अनुमान केअनुसार जीडीपी में 7% की वृद्धि बताई गई है. भारत में अगले वर्ष जीडीपी वृद्धि दर प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सर्वोच्च रहने का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक जीडीपी में 2022 में वृद्धि 2.9% रहने का अनुमान है जबकि भारत में वृद्धि 6.9% अनुमानित है.
  साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक ने जुलाई, 2022 में भारत से निर्यात पर जोर देने के साथ-साथ वैश्विक व्‍यापार के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारतीय रूपये (आईएनआर) में इनवॉयस, भुगतान और निर्यात-आयात निपटान के लिए अतिरिक्‍त व्‍यवस्‍था की अनुमति देते हुए एक परिपत्र जारी किया, जिसमें अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा के रूप में भारतीय रूपये में वैश्विक व्‍यापारिक समुदाय की रूचि को समर्थन दिया जा सके। शुरुआती चरण में रूस के बाद श्रीलंका ने भी भारतीय रुपये में व्यापार करने में रुचि व्यक्त की। इसके बाद बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, ताजिकिस्तान, क्यूबा, लक्ज़मबर्ग और सूडान आदि 35 देशों ने भी इसकी इच्छा व्यक्त की. इससे भारत को कई मोर्चों पर लाभ मिलने की उम्मीद है। जैसे कच्चे तेल सहित आयात की जाने वाली अधिकांश चीजों का भुगतान रुपये के माध्यम से ही किया जाएगा और हर साल अरबों डॉलर की बचत होगी। इससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता भी घटेगी। इसके अलावा कई विदेशी लेनदेन का भुगतान डॉलर में किया जाता है। रुपये में व्यापार बढ़ने के साथ ही आरबीआई को बदले में आईएनआर के लिए खरीदार खोजने की आवश्यकता नहीं होगी। भारतीय रुपये की मांग बढ़ने और अंतररष्ट्रीय बैंकों को रूपांतरण शुल्क नहीं भेजने से जो राशि जमा होगी, वह अंततः देश के विकास में काम आएगी।
 वित्त वर्ष 2011-22 के दौरान रक्षा निर्यात लगभग 13 हजार करोड़ के सर्वकालिक उच्च स्तर पर है। रक्षा मंत्रालय वास्तव में मानव रहित प्रणालियों, रोबोटिक्स आदि के क्षेत्र में 75 वस्तुओं को लांच करने की तैयारी कर रहा है, ताकि भारत को 2020 में प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित 35 हजार करोड़ रुपये के पांच साल के रक्षा निर्यात लक्ष्य की ओर अग्रसर किया जा सकेl स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011-2015 और 2016-2020 के बीच भारत के हथियारों के आयात में एक तिहाई की कमी आई है। वर्ष 2016-20 के दौरान वैश्विक हथियारों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.2 प्रतिशत थी l यह 2011-15 की पिछली पांच वर्षों की अवधि के दौरान भारत के निर्यात हिस्से (0.1 प्रतिशत) की तुलना में 200 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि को दर्शाता है।
  अंतरिक्ष क्षेत्र बढ़ते वाणिज्यीकरण की चुनौती के अनुरूप भारत ने डीआरडीओ द्वारा समर्थित रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) की स्थापना की है जिसे आयुध निर्माण का कार्य सौंपा गया है। इसके अलावा डिफेंस एक्सपो 2022 में रक्षा अंतरिक्ष मिशन का शुभारंभ किया गया। उपग्रह विनिर्माण क्षमताओं को विस्तारित करते हुए भारत का उपग्रह विनिर्माण अवसर वर्ष 2025 तक 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है जो वर्ष 2020 में 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
 भारत के पास विशाल जनसंख्या है. इसके बहुत से सकारात्मक पहलू भी होते हैं, जैसे वृहत मानव पूँजी, श्रम बल की अधिकता एवं विशाल उपभोक्ता बाजार. यूरोप का उदाहरण प्रत्यक्ष है. यदि 17वीं से 19वीं सदी में वहां जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि नहीं हुई होती और बाजार में मांग ना बढ़ी होती तो औद्योगिकीकरण की गुंजाईश ही नहीं पैदा होती. भारत के लिए भी समान स्थिति है. आर्थिक सशक्तिकरण के बूते भारत ‘2030 एजेंडा’ या एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक से अधिक समय में 41.5 करोड़ (415 मिलियन) लोग देश में गरीबी के चंगुल से बाहर निकले हैं. जिसे संयुक्त राष्ट्र ने ‘ऐतिहासिक बदलाव’ कहा है. आर्थिक अनुसंधान संगठन पीपल रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (प्राइस) के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में मध्यम वर्गीय परिवारों की संख्या तेजी से वृद्धि हुई है. 2004-05 में देश में मध्यम वर्ग की कुल आबादी जहां 14 प्रतिशत थी वहीं वर्ष 2021-22 तक यह दोगुने से ज्यादा बढ़कर 31 प्रतिशत हो गई है. रिपोर्ट के मुताबिक 2047 तक यह संख्या में बढ़कर 63 फीसदी हो जाएगी. यह समृद्ध आबादी भारत को एक वृहत उपभोक्ता-बाजार में तब्दील कर रही है जो विश्व व्यापार के लिए भारत का आर्थिक शक्ति स्रोत है.
कूटनीतिक मोर्चा —–
  सामरिक क्षेत्र में भारत एक महाशक्ति के रूप में उदित हुआ है. जून 2016 में वह एम.टी.सी.आर. (मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था) का पूर्ण सदस्य बन गया. एम.टी.सी.आर. एक अनौपचरिक संगठन है जिनके पास प्रक्षेपास्त्र व मानव रहित विमान (ड्रोन) से सम्बन्धित प्रौद्योगिक क्षमता है और जो इसे फैलने से रोकने के लिये नियम स्थापित करते हैं। इससे ब्राह्मोस जैसी मिसाइलों के निर्यात में सहूलियत होगी. मार्च 2019 में भारत ने ‘मिशन शक्ति’ के तहत उपग्रह-रोधी प्रक्षेपास्त्र का सफल परीक्षण करते हुए अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में अपनी सशक्त उपस्थिती दर्ज करायी. यह क्षमता हासिल करने वाला वह अमेरिका, रूस और चीन के अतिरिक्त संसार का चौथा देश बन गया है.
 साथ ही परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता के लिए चीन के निरंतर विरोध के बावजूद भारत का समर्थन बढ़ता जा रहा है. एन.एस.जी के 48 सदस्य देश परमाणु प्रौद्योगिकी और सामग्री के व्यापार एवं हस्तांतरण को नियंत्रित करने के साथ साथ परमाणु हथियारों के अप्रसार में भी सहयोग करते हैं. इसकी पूर्ण सदस्यता भारत के परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र की मान्यता की वाहक बनेगी.
 भारत सितंबर 2023 तक एक वर्ष के लिए एस.सी.ओ. समूह का अध्यक्ष है. यह एक वर्ष 2001 में गठित एक यूरेशियाई स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता बनाए रखना है. इसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है. इसके जरिये भारत ने मध्य एशिया और पूर्व सोवियत संघ के सदस्य देशों में अपनी कूटनीतिक पैठ बढ़ाई है तथा इस क्षेत्र में चीन की महत्त्वकांक्षा को भी नियंत्रित रखने में समर्थ हुआ है. उल्लेखनीय है कि वाराणसी को वर्ष 2022-2023 के लिए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की पहली पर्यटन और सांस्कृतिक राजधानी नामित किया गया है.
  हिंद-प्रशांत महासागर में क्वाड समूह (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन ) जिसे ‘एशियाई नाटो’ की जिसे ‘एशियाई नाटो’ की संज्ञा दी जा रही है, की सक्रियता चीनी दादागीरी पर नकेल कस रही है. भारत की इसमें उल्लेखनीय भूमिका है. क्वाड की स्थापना का विचार तो 2007 में ही जापान के प्रधानमंत्री अबे द्वारा रखा गया लेकिन इसकी वास्तविक परिणीति प्रधानमंत्री मोदी की सक्रियता से 2017 में हुई ज़ब मनीला (फिलीपींस) में 2017 आसियान सम्मेलन के तहत पहली आधिकारिक वार्ता में हुई थी. दक्षिण-पूर्व एवं पूर्वी देशों में भारत की आत्मीय छवि का ही प्रभाव है कि एक समय जब उत्तर कोरिया की आक्रामक प्रवृति से बीच-बचाव के लिए अमेरिका ने भारत से कूटनीतिक सहायता मांगी थी.
  भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर एजेंसी (ISA) को पेरिस में कॉप-21 के दौरान प्रारंभ किया. आईसीए पूर्ण या आंशिक तौर पर कर्क एवं मकर रेखा के बीच पड़ने वाले 121 सौर ऊर्जा संसाधन संपन्न देशों के आपसी सहयोग का मंच है. जिसका सचिवालय गुड़गांव (भारत) में है. यह पहला ऐसा अंतराष्ट्रीय और अंतर-सरकारी संगठन है जिसका मुख्यालय भारत में है. अंतराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन जिसे प्रधानमंत्री मोदी का ‘ब्रेन चाइल्ड’ कहा जा रहा है, ऊर्जा जरुरतों के साथ कूटनीतिक आवश्यकता के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा.
 भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना को 2016 में विस्तारित करने तथा पाकिस्तानी प्रतिरोध के कारण सार्क के विकल्प के रूप में बिमस्टेक को केन्द्र में रखकर भारत ने अपनी कूटनीतिक प्रखरता प्रदर्शित की है. G20 अध्यक्ष के तौर पर भारत ने अपने अंतराष्ट्रीय व्यापारिक और कूटनीतिक मित्रों बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को अतिथि देशों के रूप में आमंत्रित कर रहा है.
  यह सारी क़वायद भारत के प्रति कांग्रेसी नेतृत्व की उस अक्षम्य भूल का परिमार्जन है जहाँ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पड़ोसी धर्म के निर्वहन में गवाँ दी गई. भारत ने पिछले लगभग एक दशक में सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता की दावेदारी मजबूत की है. वास्तव में G-4 समूह (जापान, जर्मनी, ब्राजील और भारत) के देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसकी सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए सर्वाधिक वैश्विक समर्थन प्राप्त है. इसके लिए भी भारत की धारदार कूटनीति को सबसे अधिक श्रेय देना होगा.
 सांस्कृतिक विजय—- 
 अंतर्राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्र द्वारा एक दूसरे के व्यवहार को प्रभावित करने की प्रक्रिया है ताकि स्व-वांछित हितों की पूर्ति हो सके. इस कूटनीति युद्ध में सांस्कृतिक कूटनीति एक विशेष प्रकार की रणनीति है. सांस्कृतिक कूटनीति के अंतर्गत कोई देश अपनी सांस्कृतिक प्रतीकों मूल्यों व्यवहार हुआ था परंपराओं के आधार पर दूसरे देशों को अपनी और आकर्षित करने अथवा उन्हें प्रभावित करने का प्रयास करता है. एक सॉफ्ट पावर देश के रूप में भारत के लिए सांस्कृतिक कूटनीति एक प्रमुख अंतर है.
 इसी के अंतर्गत भारत प्रवासी भारतीय सम्मेलन का आयोजन निरंतर कराता रहता है जिसकी शुरुआत 2003 में तत्कालीन वाजपेई सरकार द्वारा की गई. इसी परंपरा के अंतर्गत 17वां प्रवासी भारतीय सम्मेलन 2023 का आयोजन मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ जिसमें 70 देशों के 3500 प्रवासी भारतीयों ने भाग लिया. इसके अलावा ‘भारत को जानो’ और ‘ फाइंड योर रूट’ कार्यक्रमों के जरिये प्रवासी भारतीयों का अपने मूल देश से जुड़ाव गहरा हुआ है.
 विश्वभर में 31 मिलियन से अधिक लोगों के साथ भारत का डायस्पोरा बहुत बड़ा है। जिसमें 13 मिलियन से अधिक अनिवासी भारतीय (एनआरआई) और 18 मिलियन भारतीय मूल के लोग (पीआईओ) शामिल हैं। भारतीय डायस्पोरा वह सॉफ्ट पावर टूल है जो अपने गृह और मेज़बान देशों के बीच संबंधों को बनाते और उन्हें मजबूत करते हैं। यही प्रवासी समुदाय भारतीय कूटनीति का वैश्विक संबल साबित हो रहा है.
 इस सम्बंध में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आई.सी.सी.आर) का कार्य उल्लेखनीय है। 37 देशों में विस्तारित अपने सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से आई.सी.सी.आर भारत और विदेशों में सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन करता है। साथ ही विदेशों में इंडियन स्टडीज चेयर्स की स्थापना, विदेशी. शोधार्थियों को भारत में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करने जैसी अन्य कई सारी गतिविधियों के माध्यम से सांस्कृतिक कूटनीति का प्रभाव बढ़ा है.
 इसके अतिरिक्त संगीत, कला, सिनेमा के साथ-साथ अन्य देशों में अनुकूल जनमत बनाने के लिए आयुष मंत्रालय आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए नीति निर्माण, विकास और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का कार्य कर रहा है।
 सांस्कृतिक कूटनीति का बेहतरीन उदाहरण योग है. योग मानव स्वास्थ्य एवं आध्यात्मिक प्राप्ति का मार्ग ही नहीं बल्कि एक दर्शन भी है. 27 सितंबर 2014 को भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में योग की महत्ता पर चर्चा की. इसके उपरांत वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई.
मानवीय सहायता——
भारत ने वैश्विक कूटनीति में मानवीय मूल्यों को हमेशा तरजीह दी है. दास प्रथा के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहें विलियम लॉएड गैरीर्यसन लिखते हैं, ‘पूरा संसार हमारा देश है, मानव हमारे देशवासी हैं. हम दूसरे देशों की धरती को उतना ही प्यार करते हैं जितना अपनी राष्ट्रीयता की धरती को.’ विश्व समुदाय के सम्बन्ध में भारतीय नीति भी ऐसी ही है. इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण तुर्कीए और युक्रेन है. इन दोनों देशों ने सदैव वैश्विक मंचों पर भारत के राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध विरोधी पक्ष का ही साथ दिया. लेकिन तब भी भारत ने प्रतिकार के बजाय मानवीयता का पक्ष लिया. फरवरी में तुर्कीये में आये विनाशकारी भूकंप के पश्चात् ‘ऑपरेशन दोस्त’ के जरिये भारत ने जो मानवीय सहायता उपलब्ध कराई उससे सरकार समेत आम तुर्क जनता ने भारत के प्रति खुलकर स्नेह व्यक्त किया. ऐसे ही युद्ध से बर्बाद युक्रेन के सहायतार्थ भी भारत ने दो टन की मानवीय सहायता भेजी.
  अप्रैल 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूंकप के समय भारत की त्वरित प्रतिक्रिया से नेपाल समेत पूरा विश्व आश्चर्यचकित रह गया. भारत ने वहां घरों के पुनर्निर्माण से लेकर खाद्य एवं दवाओं के पूरे प्रबंधन में महती सेवा की. इसी प्रकार गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका को भारत ने तीन अरब श्रीलंकाई रुपये से अधिक मूल्य की एक बड़ी मानवीय सहायता खेप सौंपीl जिसमें 14,700 मीट्रिक टन चावल, 250 मीट्रिक टन दूध का पाउडर और 38 मीट्रिक टन दवाइयां शामिल थीं। 
 साथ ही कोविड-19 की वैश्विक महामारी के दौर में वैक्सीन एवं अन्य चिकित्सिय जरुरतों की पूर्ति हेतु भारत ने अमेरिका, यूरोप से लेकर अफ़्रीकी देशों की सहायता की उसके लिए वैश्विक बिरादरी भारत के प्रति कृतज्ञ थी. जैसे 2020 में भारत ने ‘मिशन सागर’ के अंतर्गत मालदीव, मॉरीशस, मेडागास्कर, कोमोरोस और सेशेल्स जैसे द्विपीय राष्ट्रों के सहायतार्थ ज़रूरी खाद्य पदार्थ, दवाओं के साथ ही चिकित्सा सहायता टीमें भी पहुंचाईं. अभी निकट ही जमैका से आए एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल की अगुआई कर रही देश की विदेश मंत्री कामिना जे. स्मिथ ने कोविड-19 महामारी के दौरान मदद के लिए भारत का आभार जताया। स्मिथ ने कहा, महामारी के दौरान मोदी के नेतृत्व वाली सरकार और उसके अफसरों ने टीका मुहैया कराने में काफी मदद की। गुयाना के विदेश मंत्री ह्यूग हिल्टन टॉड और पुर्तगाली पीएम एंटोनियो कोस्टा ने भी यूएनजीए में भारत की सराहना की।
 
निष्कर्ष—-
वरिष्ठ पत्रकार बनवारी जी लिखते हैं, ‘हर सभ्यता की अपनी एक दृष्टि होती है. अगर आप उसके सोचने की दिशा बदल दें तो वे हतप्रभ से आपका अनुकरण करने के लिए विवश होंगे.’ स्वतंत्र भारत में पश्चिम परस्त नेतृत्व वर्ग को सनातन संस्कृति यूरोपीय सभ्यता के समक्ष स्तरहीन लगी. इसी हीनभाव के कारण विदेश नीति भी हीनतापूर्ण रही. परंतु अब स्थिति बदल चुकी है. सनातन मूल्यों से प्रेरित भारत एक महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हो रहा है.
  विश्व में शक्ति का आरोह-अवरोह चलता रहेगा. शक्ति केन्द्र परिवर्तित होते रहेंगे लेकिन सनातन संस्कार भारत को एक गुणी और पराक्रमी समाज बनाने में लगती है ना कि पश्चिमी मूल्यों की तरह अपने राष्ट्र को एक दुर्दान्त शक्ति बनाने में लगती है. पिछले नौ वर्षों में भारत सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने राष्ट्रवाद की दृढ़ता और ‘भारत प्रथम’ की नीति का संधान किया वह विश्वगुरु के पुनर्जागरण का प्रतीक है. जिसे अब वैश्विक समुदाय भी स्वीकार कर रहा है. एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में G-20 की अध्यक्षता भी भारत ने अपने संस्कारों के अनुरूप ही स्वीकारते इसका ध्येय वसुधैव कुटुंबकम’ निर्धारित किया है जो सनातन समाज के मूल संस्कारों पर दृढ़ता को प्रदर्शित करता है.
कथन—-
“यह एक शुभ अवसर है। हमने दुनिया की मिटती रोशनी को पुनर्स्थापित करने के लिए एक मिशन शुरू किया है। यह एक ऐतिहासिक वर्ष है जिसमें भारत को जी20 देशों की अध्यक्षता संभालने का अवसर मिला है। भारत सरकार और माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हमें सिविल सोसाइटी 20 की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक सुगम बनाने की अनूठी जिम्मेदारी दी है। हम कोशिश करेंगे कि अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभा पाएं और इस प्रयास के साथ न्याय कर सकें।”
आध्यात्मिक नेत्री माता अमृतानंदमयी देवी (अध्यक्ष- सिविल 20 इंडिया) 
मैं भारत की विदेश नीति के बदले स्वरूप के संबंध में उसकी सबसे अधिक सराहना करता हूं। अपनी विदेश नीति को आकार देने की बात आने पर भारत पश्चिमी या पूर्वी शक्तियों के दबाव में नहीं आता।”
—-सलमान-अल-अंसारी (सऊदी शोधकर्ता एवं राजनीतिक विश्लेषक)
 ‘मुझे भारत का उदाहरण लेना चाहिए. ये देश हमारे साथ ही स्वतंत्र हुआ था. लेकिन अब इसकी विदेश नीति देखिए. भारत एक दबाव मुक्त और स्वतंत्र विदेश नीति को अपनाए हुए है. यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिम देशों के दबाव के बावजूद भारत की मोदी सरकार अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप रूस से तेल की खरीद करना जारी रखेगी.’
  — इमरान खान (पूर्व प्रधानमंत्री पाकिस्तान)
. ”वर्तमान में पठार और पहाड़ी सैनिकों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा और अनुभवी देश भारत है, न कि अमेरिका और रूस हैं और न ही कोई अन्य यूरोपीय शक्ति है। उपकरणों के संदर्भ में भारतीय सेना ने विदेश और घरेलू अनुसंधान के माध्यम से पठार और पहाड़ों के युद्ध के वातावरण के लिए अनुकूलित मुख्य युद्ध हथियारों की एक बड़ी संख्या के साथ सुसज्जित है।”
 —- हुआंग गुओझी (मॉडर्न वेपनरी’ पत्रिका के वरिष्ठ संपादक एवं चीनी सेना के विशेषज्ञ)
“हम मानते हैं कि भारत दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में लीडर की भूमिका में हैं। भारत दक्षिण पूर्व एशिया में सक्रिय है। वह क्वॉड को आगे बढ़ाने वाली ताकत और रीजनल डेवलपमेंट के लिए एक इंजन है।”
 — कारीन जीन-पियरे (व्हाइट हाउस की प्रिंसिपल प्रेस सेक्रेटरी)
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे चहेते नेता हैं। ये साबित हो चुका है कि पीएम मोदी कितने बड़े लीडर हैं।” — जियोर्जिया मेलोनी (इटली की प्रधानमंत्री एवं आठवें रायसीना डायलॉग की मुख्य अतिथि)
 ‘सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की सफलता में भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।’
— एंतोनियो गुटेरस (संयुक्त राष्ट्र प्रमुख)

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