हिन्दू मानसिकता को समझिए दत्तोपंत ठेंगड़ी की नजर से

हम कहते हैं कि गांधी जी सांस्कृतिक दृष्टि से श्रेष्ठ हिंदू थे। किंतु राजनैतिक दृष्टि से हिंदुओं के सबसे बड़े दुश्मन गांधी जी थे। लोग कहते हैं यह परस्पर विरोधी वक्तव्य हैं। हम कहते हैं वास्तविकता यही है। सांस्कृतिक दृष्टि से गांधी जी हिंदुओं में सबसे श्रेष्ठ थे किंतु राजनैतिक दृष्टि से हिंदुत्व के और हिंदू राष्ट्र के सबसे बड़े विरोधी।

उनकी इसी दृष्टि के कारण पाकिस्तान निर्माण हो सका। दोनों बातें सत्य हैं। जब गांधी जी ने मुस्लिम-तुष्टिकरण शुरू कर दिया तो भी बहुत से हिंदू गांधी जी के साथ गए। सावरकर जी जेल से छूटकर आए। उनका प्रभावी व्यक्तित्व था। बंगाल, तमिलनाडु पंजाब सब जगह के दौरे हुए। हजारों लाखों की संख्या में लोगों ने भाग लिया, तालियां बजाई लेकिन हिंदू गांधी जी को समर्थन देते रहे।

सावरकर जी को, हिंदू सभा वालों को समर्थन नहीं मिला। कट्टर हिंदू थे हिंदू सभा वाले। भाषणों में जोशीले, ओजस्वी, तेजस्वी आदि। उनको हिंदू समाज का समर्थन नहीं मिला। वास्तव में जिनकी गलत नीतियों के कारण हिंदुस्तान का विभाजन हुआ, उन्हीं गांधी जी को हिंदू समाज का समर्थन मिलता गया। लेकिन हिंदू समाज के ओजस्वी नेताओं ने इसका भी कभी विचार नहीं किया। यह हिंदू मानसिकता क्या है?

मैं समझता हूं कि हमारे लिए भी यह सोचने की बात है कि हिंदू मानसिकता क्या है? यहां बहुत लोग गलती करते हैं। एक छोटी सी बात मैं आपको बताऊं। नवंबर की सात तारीख को, दिल्ली के बोट क्लब पर बड़ी मीटिंग हुई। रज्जू भैया और मैं, हम दोनों आर.एस.एस. की ओर से बोलने वाले थे। सबसे कम प्रभावशाली भाषण हम दोनों का था। और सबसे प्रभावशाली भाषण एक अन्य नेता का था। लोग कहने लगे साहब नेता चाहिए तो ऐसा चाहिए।

उन्होंने भाषण में कहा कि अब हिंदू मरेगा नहीं मारेगा। अब हम बलिदान देने वाले नहीं हैं, बलिदान लेने वाले हैं। तालियां बजीं। मैं उनको पहचानता नहीं था। बाद में मैंने पूछा कि क्यों भाई ये कौन हैं? बोले कि ये फलानी-फलानी एक संस्था है उसके नेता हैं। हमने कहा कि मालूम होता है कि वह अयोध्या पहुंचे हुए हैं। बोले ना। मालूम होता है उत्तर प्रदेश में गए थे, बोले ना। शायद हो सकता है कि जो दिल्ली के नेता दिल्ली के बार्डर पर, गाजियाबाद पर ही अरेस्ट हो गए उस ग्रुप में ये थे? बोले ना-ना ये घर के बाहर गए ही नहीं। यहां तक कि चंदा इकट्ठा करना था उसके लिए भी कभी किसी के यहां नहीं गए। आराम से घर बैठे थे। हमने कहा कि भाषण तो जोशीला करते हैं, काम नहीं करते। लेकिन लोगों ने हमको बताया कि साहब नेता चाहिए तो ऐसा चाहिए। हम मरेंगे नहीं मारेंगे। हम नहीं कह सकते, मैं नहीं कह सकता। इसके कारण हमको तालियां नहीं मिलेंगी उनको बहुत तालियां मिलेंगी। डा. जी के साथ ऐसा नहीं था। वे जो बोलते थे अनुभव पर आधारित होता था।

कोई उथल-पुथल नहीं, वही कलकल करने वाला। संघ द्वारा ऐसा ही चलता था। और यहां ओजस्वी, तेजस्वी भाषण होते थे। लेकिन हिंदू मानसिकता का पता नहीं। जैसे मैंने कहा यह जो प्रभावी भाषण हुआ 7 तारीख का। उसके बाद कुछ ओजस्वी लोग हमको मिले। मैंने उनको कहा कि भई हिंदू मन को तुमने समझ लिया है क्या? बोले, क्या है? अब तो हिंदुत्व की लहर है। हम सबके साथ मिलते हैं। बोले हां-हां सारा हिंदुस्तान अब हिंदुत्व मय हो गया। हमने कहा ऐसा मत समझो तुम हवा में छलांगें मत लगाओ।

हिंदू मानसिकता के तीन चक्र

अच्छा है हिंदुत्व की लहर आ गई है और मैं मानता हूं कि 30 अक्टूबर को हिंदू इतिहास ने करवट बदली है, एक नया मोड़ लिया है, अब हम लोग नई दिशा में जा रहे हैं जो विजय की दिशा है इसमें कोई शक नहीं है। जितना तुम्हारे मन में विश्वास है उतना मेरे मन में भी कान्फिडेंस है। लेकिन तुम्हारे मन में जो यूफोरिया है। यूफोरिया एक ऐसा अंग्रेजी शब्द है जिसका ठीक हिंदी में भाषांतर नहीं है लेकिन यूफोरिया का मतलब होता है बहुत-हर्ष, हर्ष की वायु, उन्माद ऐसा जो होता है उसको यूफोरिया कहते हैं।

तो हमने कहा कि इतनी बड़ी घटना अयोध्या में हुई मेरे मन में भी उसके लिए गर्व है, गौरव है। लेकिन तुम्हारे दिल में यूफोरिया है। बोले क्यों? हमने कहा समझ लो तुम हिंदू मन को जानते नहीं। आज हमारे साथ जो लोग आए हैं वे सारे के सारे उस अर्थ में हिंदुत्ववादी नहीं हैं जिस अर्थ में तुम और हम हैं। इसमें तीन चक्रों की कल्पना करो

एक चक्र है संघ, संघ-परिवार वाले लोग। ये हमेशा से स्थाई घेरा है। एक घेरा ऐसा है कि जो सीधा संघ और संघ-परिवार में नहीं है तो भी हमेशा संकट के समय में हमारा साथ देते रहे हैं। यह भी स्थाई घेरा है। सहानुभूति रखने वाला स्थाई घेरा है जिसको तुम लहर कह रहे हो।

इस घेरे में आने वाले सभी के सभी लोग तुम्हारे और हमारे जैसे हिंदुत्वनिष्ठ नहीं हैं। तो बोले क्या हैं? हमने कहा कि इसमें से बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो घटनाओं के कारण, हमारे प्रचार के कारण, उनको ये पता चला है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर नेता लोग मुस्लिम-तुष्टिकरण कर रहे हैं, हिंदुओं के ऊपर अन्याय कर रहे हैं, इसके कारण हिंदुओं के नेताओं के बारे में जिनके मन में सहानुभूति आ गई है, ऐसा बड़ा घेरा है।

ये हिंदुत्वनिष्ठ तुम्हारे जैसा नहीं है। तुम कह रहे हो हिंदुत्व की लहर है। किंतु बाहर का स्वरूप समझ लो इसमें संघ और संघ-परिवार का घेरा स्थाई है। संकट के समय संघ पर पाबंदी आई उस समय भी जो हमारे साथ सहानुभूति रखते थे वो स्थाई घेरे वाले हैं। लेकिन ये जो तीसरा बड़ा घेरा है जिसको तुम लहर कहते हो वे सारे एक जाति के लोग नहीं हैं। अलग-अलग हैं। दो तरह के।

एक तो कुछ लोग हमारे जैसे हिंदुत्ववादी हो गए लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे हैं कि जो हमारे अर्थ में हिंदुत्ववादी नहीं हैं लेकिन हिंदुओं के प्रति जो अन्याय हो रहा है, वह ठीक नहीं, इसलिए आपका समर्थन कर रहे हैं। ऐसा एक बड़ा समूह है। और तुम तालियां लेने के लिए क्योंकि तालियां लेना है तो ये भाषा बड़ी उपयुक्त है अब हम मरेंगे नहीं मारेंगे। मारेंगे बोलने के बाद जो कट्टर लोग हैं वो तालियां बजाते हैं। तालियां बजाते हैं तो वक्ता को लगता है कि मैं तो पापुलर हो रहा हूं, वह ये नहीं जानता कि पचास लोग तालियां बजा रहे हैं लेकिन पांच-सौ लोग जो सहानुभूति के नाते आज तुम्हारे साथ आ रहे हैं उनकी सहानुभूति नष्ट हो जाएगी, वे हमसे दूर हो जाएंगे।

ये विचार वक्ता के सामने नहीं आता, वह तो तालियां सुनने से खुश हो जाता है। हमने कहा कि ये तीसरा घेरा है इसका जरा तुम विचार करो। तुम हिंदू मानसिकता को जानते नहीं। हमारे खिलाफ अन्याय हो रहा है यह समझ कर लोगों के मन में हमारे साथ सहानुभूति है। तुम यदि ऐसी भाषा बोलोगे, ये सारे लोग आपका साथ छोड़ देंगे।

तुम मामूली अनुभव देखो हिंदू मानसिकता क्या है? मामूली अनुभव है कि किसी मोहल्ले में गुंडा रहता है। सब लोग कहते हैं कि उसको पीटना चाहिए। सब एक मत हैं। और वास्तव में यदि लोग उसको पकड़ते हैं पिटाई करते हैं और इत्तिफाक से पिटाई करते-करते उसकी मृृत्यु हो जाती है। आप देखिए आपको अनुभव आएगा कि लोग आ जाएंगे जो कहते थे कि इस साले की पिटाई होनी चाहिए, वही लोग कहेंगे कि इसकी पिटाई तो करनी चाहिए थी, लेकिन ज्यादा ही हो गया। इतना नहीं मारना चाहिए था। यह हिंदू मत है। मैं जानता हूं कि ये कोई अच्छी अवस्था नहीं है लेकिन हिंदू मत जो है वो समझ कर चलना चाहिए।

संघ की प्रारंभिक अवस्था में अकोला नाम के शहर में डा. जी गए थे, बैठक हुई। संघ की कल स्थापना होगी यहां तक बात आ गई। फिर संगठन के बारे में बातचीत हुई। लोगों ने कहा कि कल से शाखा शुरू होगी। लोग उठने लगे तो उठते-उठते ही कोने में से किसी ने कहा कि डा. आपने जो कहा वह ठीक है। कल से मैं भी शाखा पर आऊंगा, लेकिन एक प्रश्न मन में है। बोले क्या है? तब तक लोग उठकर खड़े हो गए थे। डा. जी ने सबको बैठने के लिए नहीं कहा। वह भी खड़े रहे बाकी लोग भी खड़े थे। बोले बताओ तुम्हारा क्या प्रश्न है? डा. जी मेरे मन में ये आ रहा है कि सारे हिंदू भाई संगठित हो जाएंगे, बेचारे मुसलमानों का क्या होगा? तो डा. जी ने हंसते-हंसते उनकी तरफ उंगली की और कहा कि यह हिंदू मानसिकता समझनी चाहिए।

पिछले ग्यारह सौ से बारह सौ साल तक हिंदुस्तान के कई भू-भाग पराए साम्राज्य के अंतर्गत रहे। अंग्रेजों के अधीन हम रहे। कुछ मुसलमान अलग-अलग मुगल, अफगान, तुर्क वगैरा के अधीन रहे। तो गुलामी के कारण हमारी अग्नि पर कुछ राख आ गई है। आप बड़े कट्टर हिंदुत्ववादी हैं मैं मानता हूं। लेकिन सारे आपके जैसे नहीं हैं। उनकी अग्नि पर राख आ गई है। आपकी राख आर.एस.एस. के कारण नष्ट हो गई है। उड़ गई है। उनकी राख अभी तक है। तो मानसिकता क्या है? यह समझते हुए। ठीक है उनकी मानसिकता हमें बदलनी है तो भी जब तक वह मानसिकता है तब तक उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना पड़ेगा। लेकिन हिंदू सभा के लोगों का व्यवहार ऐसा नहीं था वे अपने आवेश में आ जाते थे। वैसी ही बात करते थे, इसके कारण बाकी उनके साथ नहीं गए, ऐसे प्रवाह के साथ गए जिसकी आगे चलकर पाकिस्तान में परिणति हुई। हिंदू मानसिकता क्या है? उसका विचार करना चाहिए। ऐसी बातों को रिएक्ट करने वाला हिंदू मन नहीं है। उसको तेजस्वी बनाना है। हिंदू को ओजस्वी बनाना है। उसके लिए हमारे प्रयास चल रहे हैं।

 

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