पायलट- गहलोत की जंग में फंसी कांग्रेस

राजस्थान में सियासी संकट चरम पर है. सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. उन्होंने भ्रष्टाचार व भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लीक होने के मुद्दे को लेकर अशोक गहलोत की सरकार के विरुद्ध गुरुवार से पांच दिवसीय “जनसंघर्ष यात्रा” प्रारंभ कर दी। यह पदयात्रा अजमेर से शुरू होकर 15 मई को जयपुर पहुंचेगी। इसमें कुल 125 किमी का सफर तय करने की योजना है. पायलट व समर्थक प्रतिदिन 25 किमी पैदल चलेंगे।

पायलट ने भाजपा के सत्ता में रहने के दौरान कथित भ्रष्टाचार को लेकर गहलोत की “निष्क्रियता” को भी निशाना बनाया है. उनका कहना है कि, ‘पूर्व की वसुंधरा राजे सरकार में 40 हजार करोड़ रुपये के शराब, खान एवं बजरी घोटाले हुए। हमने जनता से वादा किया था कि सत्ता में आने पर जांच कराएंगे, लेकिन साढ़े तीन वर्ष तक गहलोत सरकार ने जांच नहीं कराई। मैंने उनको कई पत्र लिखे। अनशन किया और अब पदयात्रा पर निकलना पड़ा।’ सचिन पायलट ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने अभियान में पूर्व की भाजपा सरकार के साथ ही परोक्ष रूप से गहलोत सरकार को भी निशाने पर लें रखा है. पायलट नें पर्चे लीक होने की जांच होने की माँग की. उन्होंने गहलोत के कथित दावे पर सवाल उठाया कि “कोई राजनेता या अधिकारी” पेपर लीक मामलों में शामिल नहीं था, यह पूछने पर कि इस मामले में गिरफ्तार किए गए आरपीएससी सदस्य बाबूलाल कटारा के घर पर कोई बुलडोजर क्यों नहीं भेजा गया। उन्होंने कहा कि जब कोई पेपर लीक हो जाता है और रद्द कर दिया जाता है, तो यह लाखों छात्रों और उनके माता-पिता के बीच सिस्टम में अविश्वास पैदा करता है।

सीएम गहलोत द्वारा विधायकों पर भाजपा से दस-बीस करोड़ रुपये लेने के आरोपों पर पायलट ने कहा कि गलत आरोप लगाए गए हैं। मेरा परिवार 40 साल से राजनीति में बड़े पदों पर रहा है। कोई एक फूटी कौड़ी का आरोप नहीं लगा सकता है। हमारी निष्ठा और ईमानदारी पर विरोधी भी अंगुली नहीं उठा सकता है। गहलोत द्वारा 2020 के विद्रोह में शामिल विधायकों पर भाजपा से पैसे लेने का आरोप लगाने के कुछ दिनों बाद यह मार्च आया है। पायलट और 18 अन्य कांग्रेस विधायकों ने तब राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की मांग की थी।

यात्रा को लेकर राज्य में जगह-जगह लगाए गए पोस्टरों में पायलट के बड़े फोटो के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के चित्र हैं। इनमें कांग्रेस अध्यक्ष खरगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को जगह नहीं मिलने से सचिन पायलट के विद्रोही तेवर का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह विद्रोह की आग काफी समय से सुलग रही है. इससे पूर्व पायलट को 2020 में गहलोत के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व करने पर राज्य कांग्रेस प्रमुख के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। पिछली बार तो उस समय बाद उनको शांत करा दिया गया था किंतु इस बार सचिन पायलट आर पार की लड़ाई के लक्ष्य से उतरे प्रतीत होते हैं.

हालांकि पायलट पूरी तरह बगावत करेंगे, ऐसा लगता तो नहीं है. उन्होंने रणनीति के तहत अपने खेमे के मंत्रियों और विधायकों को यात्रा से दूर रखा। संभवतः पायलट सरकार पर अपनी पकड़ भी कमजोर नहीं पड़ने देना चाहते. हाँ यदि यदि आगामी दिनों में कांग्रेस हाईकमान ने पायलट के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही की तो ये मंत्री और विधायक विरोध में इस्तीफे दे सकते हैं।

राजस्थान में 2018 में पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही राजस्थान में कांग्रेस के दो मजबूत नेता मुख्यमंत्री पद को लेकर आपस में भिड़े हुए हैं।इस वर्ष के अंत में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन पार्टी के छात्र को की आपस की लड़ाई स्पष्ट तौर पर कांग्रेस को सत्ता से विमुख कर सकती है.

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