मानव संसाधन के पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक संदर्भों में समायोजित करें

दुनिया के देशों पर नजर डालें तो कुल 200 से अधिक देश हैं। उनमें से 100 करोड़ से ऊपर की आबादी वाले कुल दो देश हैं- एक चीन, दूसरा भारत। अब दस करोड़ से ऊपर की आबादी वाले देशों को देखें- भारत और चीन को मिलाकर कुल हैं ग्यारह। इसमें से छः यानी जापान, चीन, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान एशिया में हैं। यूरोप में रूस, अफ्रीका में नाईजेरिया, उत्तरी अमेरिका में मैक्सिको एवं स्वयं संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दक्षिण अमेरिका में मैक्सिको एवं स्वयं संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दक्षिण अमेरिका में ब्राजील।

हम अब 10 करोड़ से नीचे एवं एक करोड़ से ऊपर की आबादी वाले देशों की सोचें तो ये भी कुल 47 ही हैं। इंग्लैंड सवा छह करोड़, साढ़े सात करोड़ का फ्रांस, साढ़े आठ करोड़ का जर्मनी और तीन करोड़ का कनाडा आदि इसी श्रेणी के देश हैं। सिंगापुर, ताईवान, हांगकांग, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, नार्वे, हालैंड़, फिनलैंड ये सब 40 लाख से 70 लाख की आबादी वाले देश हैं।

अर्थशास्त्र के कुछ जानकार लोग जब विदेशी पूंजी की बात करते हैं तो प्रायः वे हमारी तुलना बोत्सवाना जैसे देश से कर देते हैं। मुझे जिज्ञासा हुई उस देश को जानने की जिसकी तुलना भारत से की गई थी। पता चला कि अफ्रीका स्थित सभी देश् की आबादी मात्र 20 लाख है। अब आप ही बताइए कि बोत्सवाना जैसे देश की तुलना भारत से कैसे की जा सकती है जहां लगभ 70 लाख केवल साधु-संत हैं। ये वे लोग हैं जो घर-बार छोड़ कर घूम रहे हैं और जिन्हें हम यूं ही पाल-पोस लेते हैं। हमारी तुलना एक करोड़ से भी नीचे वाले देशों से करना वास्तव में आंखों में धूल झोंकने के बराबर है।

हमारे देश में आजकल उपलब्ध मानव संसाधन को एक बोझ, एक समस्या के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। परंतु मेरा स्पष्ट मानना है कि यदि हम अपने मानव संसाधन को सही ढंग से नियोजित करें तो यह हमारी सबसे बड़ी संपत्ति बन सकता है। इसके लिए सबसे जरूरी बात यह है कि हम अपने मानव ससाधन के पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक संदर्भों में समायोजित करें। लेकिन, हमारे योजनाकारों ने इसका ठीक उल्टा किया है। राज्य व्यवस्था ने लोगों को उने पारंपरिक पेशों से दूर किया। लेकिन उनके लिए कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं किया गया। इस सबके बावजूद आज भारतीय श्रम शक्ति, प्रबंधन क्षमता और यहां की अद्वितीय मेधा का दुनिया में डंका बज रहा है। वास्तव में यह भारत के मानव संसाधन की क्षमताओं की एक झलक मात्र है। सहयोगी वातावरण में इसका कई गुना बेहतर प्रदर्शन हो सकता है।

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