आतंकवाद की फैक्ट्री बने मदरसे

 

बनवारी

पाकिस्तान भी मानता है कि मदरसे आतंकवाद के प्रशिक्षण स्थल बन गए हैं। इसलिए उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा में लाने की आवश्यकता है।

पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर पहली बार यह स्वीकार किया है कि उसके यहां मदरसों में आतंकवादियों को प्रशिक्षण मिल रहा है। यह बात पाकिस्तानी सेना की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के जनसंपर्क महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफूर ने कही है। उन्होंने 28 अप्रैल को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि मदरसे आतंकवाद के प्रशिक्षण स्थल बन गए हैं। इसलिए उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा में लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 1947 में पाकिस्तान में केवल 247 मदरसे थे। 1980 तक उनकी संख्या दस गुनी से भी अधिक हो गई थी। उस समय पाकिस्तान में 2861 मदरसे थे। लेकिन उसके बाद उनकी संख्या में और तेजी से वृद्धि हुई।

आसिफ गफूर के अनुसार इस समय पाकिस्तान में लगभग 30 हजार मदरसे हैं। उन्होंने दावा किया कि सब मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा नहीं दी जाती। उनके अनुसार पाकिस्तान में केवल सौ मदरसे ही ऐसे हैं, जहां आतंकवादियों को प्रशिक्षण मिल रहा है। उनकी इस बात पर खुद पाकिस्तान में भी शायद ही कोई विश्वास करे। सौ से अधिक मदरसे तो हाफिज सईद के दीनी कार्यक्रम के अंतर्गत ही चल रहे होंगे। हाफिज सईद के संगठन लश्करे तैयबा को स्वयं पाकिस्तान प्रतिबंधित कर चुका है। हाफिज सईद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी आतंकवादी घोषित किया जा चुका है। काफी ना- नुकर के बाद चीन भी उसे आतंकवादी घोषित कए जाने के लिए मजबूर हुआ था।
अमेरिका मुंबई आतंकवादी हमले में मारे गए अपने नागरिकों के लिए उसे दोषी ठहराते हुए उस पर एक करोड़ डालर का इनाम घोषित किए हुए है। लेकिन वह अब भी पाकिस्तान में न केवल खुला घूम रहा है बल्कि दीनी तालीम के नाम पर अनगिनत मदरसे और संस्थाएं चला रहा है। उसे 1990 में जिया उल हक ने इस काम में डाला था। आज भी आईएसआई ही उसकी सबसे बड़ी संरक्षक है। इसलिए आसिफ गफूर के इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि पाकिस्तान में केवल सौ मदरसे ही ऐसे हैं, जहां आतंकवादियों को प्रशिक्षण मिल रहा है। आसिफ गफूर की स्वीकारोक्ति से केवल इतना सिद्ध होता है कि इस समय पाकिस्तान पर बहुत अंतरराष्ट्रीय दबाव है। उस दबाव के चलते ही उसे यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि पाकिस्तान के मदरसों में आतंकवादी प्रशिक्षित हो रहे हैं।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की हाल की चीन यात्रा के समय चीन में भी उनको यह सीख दी गई कि वे अपने यहां पनप रहे जेहादी तंत्र को नियंत्रित करने की कोशिश करें। चीन ने उन्हें यह संकेत भी दे दिया था कि वह अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव पर अपनी तकनीकी रोक हटाकर सहमति देने वाला है। चीन द्वारा रोक हटा लिए जाने के बाद एक मई को मसूद अजहर को प्रतिबंधित आतंकवादियों की श्रेणी में डाल दिया गया। इसके परिणामस्वरूप उसकी सभी परिसंपत्तियों पर नियंत्रण कर लिया जाएगा, उसकी यात्रा प्रतिबंधित रहेगी और उसे हथियार नहीं दिए जा सकेंगे। यह पाकिस्तान के लिए बड़ा राजनयिक झटका है। आसिफ गफूर की मदरसों को नियंत्रित करने की घोषणा को इस सारी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए।

पाकिस्तान ने खर-पतवार की तरह बढ़ रहे मदरसों पर लगाम लगाने के लिए जो रास्ता सुझाया है वह भी संदेहकारी है।
आसिफ गफूर ने कहा है कि पाकिस्तान सरकार इन सभी मदरसों को जल्दी ही शिक्षा की मुख्य धारा में ले आएगी। इसका अर्थ यह हुआ कि पाकिस्तान सरकार मदरसों को सरकारी नियंत्रण में ले लेगी। अभी मदरसों में मुख्यत: शरिया तथा इस्लाम के इतिहास की शिक्षा दी जाती है। कुरान और हदीस के साथ-साथ छात्रों को इस्लाम के प्रसार के लिए लड़ी गई लड़ाइयों के बारे में बताया जाता है और इस्लाम की मूल शिक्षा में निहित उसकी विश्व विजय की आकांक्षा के बारे में भी बताया जाता है। इस्लाम संसार को इस्लाम में यकीन रखने वालों और काफिरों में बांटकर देखता है और अपने अनुयायियों को आदेश देता है कि वे संसार के सभी लोगों को इस्लाम के अनुशासन में लाने के लिए जेहाद करें। यह सब शिक्षा पाकिस्तान सरकार के मदरसों पर नियंत्रण के बाद भी जारी रहेगी। केवल उसमें आधुनिक शिक्षा के नाम पर कुछ व्यावहारिक

पाठ्यक्रम जोड़ दिए जाएंगे। आसिफ गफूर ने घोषणा की है कि जल्दी ही पाकिस्तान सरकार इसके लिए एक कानून बनाएगी।
उसके बाद मदरसों के शिक्षकों को नए पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। आसिफ गफूर के अनुसार उसमें लगभग दो अरब रुपये खर्च होंगे, जो पाकिस्तान सरकार उठाएगी। उसके बाद मदरसों के संचालन पर प्रति वर्ष एक अरब रुपया खर्च होगा। यह तर्क अपने आपमें काफी कमजोर है कि मदरसों की शरिया की शिक्षा में कुछ आधुनिक पाठ्यक्रम जोड़ देने से मदरसों का स्वरूप बदल जाएगा। यह याद रखा जाना चाहिए कि इस्लाम जिस तरह के जेहाद की वकालत करता है, उसकी शिक्षा केवल मदरसों में ही नहीं दी जाती। पिछले दिनों दुनियाभर में इस्लामी आतंकवाद के पीछे उन लोगों का चेहरा सामने आया है, जो आधुनिक शिक्षा संस्थानों से निकले हैं। हाल ही में श्रीलंका में हुए आतंकवादी हमले के पीछे भी संपन्न घरानों के आधुनिक शिक्षा में पढ़े-लिखे लोग ही थे। इसलिए सवाल केवल मदरसों में दी जाने वाली परंपरागत शिक्षा में कुछ नए पाठ्यक्रम जोड़ देने का ही नहीं है।

अगर इस्लाम अपने अनुयायियों को यह सिखाना जारी रखता है कि केवल उसके द्वारा बताए गए अल्लाह को मानने वाले पाक हैं और अन्य सब काफिर तथा अल्लाह का आदेश है कि सब काफिरों को अल्लाह के अनुगत किया जाए, तो फिर आतंकवादी पैदा होते रहेंगे। पाकिस्तान की शिक्षा की मुख्य धारा से ही जिया उल हक निकले थे। इसलिए मदरसों की शिक्षा में कुछ नए आधुनिक पाठ्यक्रम जोड़ देने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। मदरसों में दी जाने वाली इस्लाम की शिक्षा के स्वरूप को बदलना पड़ेगा। इस्लाम में जेहाद की शिक्षा हमेशा दी जाती रही है। लेकिन जब से अरब देशों को तेल की दौलत मिली है, उन्होंने मदरसों का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू कर दिया है। अपने आपको इस्लाम का संरक्षक मानने वाला सऊदी अरब इसमें सबसे आगे है। वह हर वर्ष अरबों डॉलर दुनियाभर की दीनी संस्थाओं पर खर्च करता रहा है। इसका एक बड़ा हिस्सा मदरसों के विस्तार में लगता है। पाकिस्तान सऊदी अरब की इस खैरात का फायदा उठाकर अपने यहां एक विस्तृत इस्लामी शिक्षा का तंत्र खड़ा करने में सफल रहा है।

पाकिस्तान को अपने यहां आतंकवाद को पैदा करने वाली यह फैक्ट्रियां खड़ी करने का मौका अफगानिस्तान पर सोवियत रूस के कब्जे के बाद मिला था। अमेरिका सोवियत रूस को वहां से खदेड़ना चाहता था। पाकिस्तान अपने सीमांत क्षेत्रों में पठानों और बलूचों के विद्रोह से परेशान था। पठानों को शांत करने और उनका रोष पाकिस्तान के पंजाबी शासन तंत्र और सेना की बजाय अफगानिस्तान पर कब्जा किए बैठे सोवियत रूस की तरफ मोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर मदरसे खड़े किए गए थे। यहां से निकले तालिबान जेहाद के जोश में भरे हुए प्रशिक्षित सैनिक बना दिए गए। उनके सुनियोजित हमलों से सोवियत रूस को अफगानिस्तान में बने रहना मुश्किल दिखाई देने लगा और वह वहां से वापस लौट गया। इस पूरी योजना के लिए पैसा सऊदी अरब से मिला, हथियार अमेरिका से और मजहबी आवेश पाकिस्तान से। पाकिस्तान की आईएसआई इस योजना की सूत्रधार थी।

पाकिस्तान को यही तरीका कश्मीर को अशांत बनाए रखने के लिए उपयोगी लगा। उसने जमायते इस्लामी से मिलकर कश्मीर के नाम पर कई आतंकवादी संगठन खड़े कर दिए। अब यह पूरा तंत्र स्वयं पाकिस्तान के लिए भस्मासुर सिद्ध हो रहा है। लेकिन आज भी वह उसके राजनैतिक उपयोग का लोभ नहीं छोड़ पा रहा। वह उसे छद्म तरीके से बनाए रखने के उपाय खोजने में लगा हुआ है। मदरसों को पाकिस्तान की शिक्षा की मुख्य धारा में लाना इसी तरह का एक उपाय है। भारत में भी सऊदी अरब के पैसे और पाकिस्तान के नियोजन से मदरसे तेजी से फैले हैं। भारत में 1947 में केवल 88 मदरसे थे। मौलाना मोहम्मद कलीम सिद्दीकी के अनुसार 2003 तक भारत में मदरसों की संख्या सवा लाख हो चुकी थी। उनमें 30 लाख छात्र पढ़ रहे थे और उन पर 14 अरब रुपया खर्च हो रहा था।

यह सारा पैसा सऊदी अरब और तेल से धनी हुए दूसरे अरब देशों से आ रहा था। अब इन मदरसों की संख्या पांच लाख से भी ऊपर होने का अनुमान है। भारत में भी जब मदरसों की संख्या में होने वाली असाधारण वृद्धि की बात होती है तो केवल यह सुझाव देकर बहस पर विराम लगा दिया जाता है कि मदरसों के मजहबी पाठ्यक्रम में कुछ नए व्यावहारिक पाठ्यक्रम जोड़कर अल्पसंख्यकों के अधिकार के नाम पर उन्हें चलने देना चाहिए। लेकिन असल में समस्या मदरसे नहीं इस्लाम की वह व्याख्या है, जो जेहाद को बढ़ावा देती है और आतंकवादी शक्तियां पैदा कर रही हैं।

भारत में 1947 में केवल 88 मदरसे थे। मौलाना मोहम्मद कलीम सिद्दीकी के अनुसार 2003 तक भारत में मदरसों की संख्या सवा लाख हो चुकी थी। वर्तमान में इन मदरसों की संख्या पांच लाख से भी ऊपर होने का अनुमान है।

इस्लाम की इस व्याख्या से अब सऊदी अरब भी अपने हाथ खींचने लगा है, लेकिन पाकिस्तान अभी भी अपने आपको आतंकवाद की सबसे बड़ी फैक्ट्री बनाए हुए हैं। यह फैक्ट्री जब तक बंद नहीं होगी समस्या हल नहीं होगी। इसलिए आसिफ गफूर की घोषणा आतंकवाद की फैक्ट्री पर विराम लगाने के लिए नहीं है। इस फैक्ट्री को नए स्वरूप से चलाते रहने के लिए है। आशा की जानी चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय शक्तियां पाकिस्तान के इस बहकावे में नहीं आएंगी।

 

 

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