हरित क्रांति से आगे अब परंपरागत खेती की ओर लौटना होगा

प्रदीप कौर आर्या

अब समय है परंपरागत खेती के तरीको की तरफ लौटने का, लेकिन इसमें भी संतुलन की जरूरत है। क्योंकि जितने अन्न की जरूरत हमे होगी वह अकेले जैविक खेती से पूरा नही किया जा सकता। दूसरी तरफ खतरा है कि पहले जैसे ही रासायनकि उर्वरकों का इस्तेमाल जारी रहा तो खेत अपनी गुणवत्ता ही खो देंगे। जिसके परिणाम और भयंकर होंगे। इसलिए हमे संतुलन बनाना होगा। प्रधानमंत्री की नीति संतुलन की तरफ जा रही है।

हरित क्रांति के फायदे और नुकसान अब हम सबके सामने हैं। इसमें आगे बढ़ने की जरूरत है, लेकिन कई बदलावों के साथ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही। साथ ही प्रधानमंत्री ने पूर्वी राज्यों में हरित क्रांति की दूसरी पारी पर भी जोर दिया। हरित क्रांति से समझने से बहुत कुछ मिला। तकनीकों और रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से हम तेजी से उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं, लेकिन इसे लंबे समय तक सुनिश्चित नहीं कर सकते। इसके लिए उपयुक्त संस्थागत और सार्वजनिक नीतियों का क्रियान्वयन आवश्यक है। साथ ही खेती के सहायक बागवानी, मत्स्यपालन, सेरीकल्चर, पशुपालन, मुर्गीपालन जैसे क्षेत्रों में भी क्रांति की जरूरत है।

हरित क्रांति के परिणामों को समझने के लिए संसद की कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट को पढ़ना पड़ेगा। यह रिपोर्ट 11 अगस्त 2016 को पेश की गई। कमेटी के अध्यक्ष हुकुमदेव नारायण यादव थे। यह रिपोर्ट खेती पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रभाव पर थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीति इस रिपोर्ट पर आधारित है। उनका जैविक उर्वरकों पर जोर देना, जैविक कृषि को प्रोत्साहन आदि पर कमेटी के सुझाव का प्रभाव दिखता है।

कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि देश में रासायनिक उर्वरकों की खपत कृषि उत्पादन के स्तर के साथ बढ़ी है। 1960 के दशक में कृषि उत्पादन 8 करोड़ 30 लाख टन था। साल 2015-2016 में यह बढ़कर 25 करोड़ 20 लाख टन हो गया। इस दौरान रासायनिक उर्वरकों जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम जैसे रसायनों का प्रयोग भी 10 लाख टन से बढ़कर 2 करोड़ 50 लाख टन हो गया।

देश को अपनी आबादी का पेट भरने के लिए साल 2025 तक 30 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन करना होगा। कमेटी ने पाया कि इसके लिए 45 करोड़ टन उर्वरकों की जरूरत पड़ेगी। इसमें 70 करोड़ टन जैविक खाद भी हो सकती है। शेष रासायानिक उर्वरकों से पूरी करनी होगी।

कमेटी ने सुझाव दिया है कि मिट्टी के उपजाऊपन और मानव एवं पशु स्वास्थ्य पर रासायनकि उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए व्यापक अध्ययन किया जाना चाहिए।

कमेटी ने पाया कि रासायनिक उर्वरकों की खपत के हिसाब से हम रासायानिक उर्वरक उपलब्ध नही करा पा रहे। रासायनिक उर्वरकों के आयात में काफी बढोत्तरी हुई है।

कमेटी ने यह भी पाया  कि देश के 525 जिलों मे से 292 जिलों में 56 प्रतिशत से लेकर 85 प्रतिशत तक रासायानिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। इसमें नाइट्रोजन की अधिकता वाले उर्वरकों का इस्तेमाल ज्यादा होता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम का अनुपात भी ठीक नही है। कमेटी का सुझाव है कि उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करने की रणनीति बनानी चाहिए।

रासायानिक उर्वरकों की तरह ही कीटनाशकों का उपयोग भी बहुत बढ़ा है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहाकि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से मनुष्य और पशुओं, दोनो के सेहत पर बुरा असर हो सकता है। कमेटी ने सुझाव दिया कि कीटनाशकों के आयाद और प्रयोग की एक नीति बनाई जाए।

कमेटी ने कहा कि अभी की नीति के तहत तरल उर्वरकों, जैव उर्वरकों के साथ ही जैविक और गोबर की खाद पर सब्सिडी नहीं दी जाती। ऐसे उर्वरक मिट्टी की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए अधिक प्रभावी माने जाते हैं। इससे पर्यावरण भी अनुकूल रहता है। कमेटी ने पाया की अभी तक जो नीति चली आ रही है, वो विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के प्रयोग में संतुलन बनाने में असफल रही है। इसलिए कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि सब्सिडी की अभी तक चली आ रही नीति में संशोधन किया जाए। इसे देश की परिस्थितियों के हिसाब से बनाया जाए।

कमेटी ने कहा कि जैव उर्वरकों के प्रयोग को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित करने की जरूरत है। जैविक कृषि को प्रोत्साहन देना चाहिए। कमेटी ने इसके लिए एक नीति बनानी चाहिए। किसानों को जैविक कृषि की तरफ बढ़ने के लिए वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

उर्वरकों को प्रमाणित करने की प्रक्रिया में बहुत समय लगता है। कमेटी सुझाव दिया कि उर्वरकों को प्रमाणित करने, गुणवत्ता की जांच करने, नई खोज करने साथ ही मूल्य निर्धारित करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए फर्टिलाइजर डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथारिटी का गठन किया जाना चाहिए।

कमेटी ने पाया कि रसायन और उर्वरक मंत्रालय कीटनाशकों के उत्पादन की निगरानी रखने का काम करता है। कृषि मंत्रालय उसके प्रयोग पर निगरानी रखने का काम करता है। इसलिए कमेटी ने सुझाव दिया कि कीटनाशक क्षेत्र के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाने के लिए कीटनाशक एक्ट 1968 की समीक्षा की जानी चाहिए। साथ ही कीटनाशकों के उत्पादन, आयाद और बिक्री को रेगुलेट करने के लिए पेस्टिसाइड डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन अथारिटी बनाई जानी चाहिए।

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