भारत और पाकिस्तान की संवैधानिक स्थिति में अंतर्विरोध

 

अभी कुछ दिन पहले क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान ने पकिस्तान के नए प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ ली  |उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में नया पाकिस्तान बनाने का संकल्प लिया | |उन्होंने जिन्ना और इकबाल को अपना आदर्श माना है | जिन्ना तो पकिस्तान को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे ,जिसमें सभी को बराबर का अधिकार बिना किसी भेदभाव के मिले | सभी नागरिकों को धार्मिक सवतंत्रता हो | वो पकिस्तान को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे , न कि एक इस्लामिक पकिस्तान के रूप में | पाकिस्तान ने इसकी शुरुआत भी की ,लेकिन कुछ दिनों बाद ही पकिस्तान ने अपने आप को एक इस्लामिक गणतंत्र के रूप में परिवर्तित कर लिया |

भारत और पकिस्तान के संवैधानिक स्थिति में अंतर –

संविधान –पाकिस्तान के संविधान का प्रस्तावना पाकिस्तान को इस्लामिक गणतंत्र के रूप में दर्शाता है ,जिसमे कहा गया है अल्लाह सर्वशक्तिमान है और जिसने पकिस्तान को बनाया है ,और जिन्ना को कायदे आजम कहा गया है |इसके उलट भारत की संविधान सभा ने अपने प्रस्तावना में न ही राष्ट्र पिता महात्मां गाँधी और न ही किसी दैवीय शक्ति को कोई स्थान दिया है |पकिस्तान के प्रस्तावना में अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों के लिए नाममात्र का प्रावधान है , और न्यायिक सवतंत्रता के  बारे में भी नाम मात्र का प्रावधान है | जबकि भारत के संविधान में न्यायिक सवतंत्रता और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए ख़ास स्थान है |पकिस्तान के संविधान के उलट भारत के संविधान में निजता के अधिकार को मूल अधिकार माना गया है |भारत के संविधान में प्रेस की सवतंत्रता को महत्व दिया गया है ,जबकि पकिस्तान में अल्लाह को गौरवान्वित किया गया है | पाकिस्तान में अल्लाह की आलोचना करने पर मौत की सजा का प्रावधान है |पकिस्तान में धार्मिक आजादी शर्त के साथ है जबकि भारत में अपने सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के धार्मिक आजादी है |सभी भारतीय नागरिक अपने धर्म को मानने के लिए सवतंत्र हैं |

न्यायपालिका –

पाकिस्तान सरकार का देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में कोई भूमिका नहीं होती है| पाकिस्तान के संविधान का अनुच्छेद 175(3) कहता है कि राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायलय के वरिष्ठंतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करेगा | जबकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2015 राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग को मानाने से इनकार कर दिया | सर्वोच्च न्यायलय  ने उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण को अपने अधिकार क्षेत्र में रखा |पाकिस्तान में इसका स्वरुप 2010 से लागु है |

निर्वाचन व्यवस्था –

पाकिस्तान में चुनाव से पहले प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना होता है और उसके बाद विरोधी दल के नेता और वह दोनों मिलकर काम चलाऊ प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं |अगर दोनों सहमत नहीं हैं तो दोनों दो दो नाम सदन के अध्यक्ष को भेजते हैं |अध्यक्ष नाम को संसदीय समिति को भेजते हैं ,जिसमें पक्ष और विपक्ष के बराबर सदस्य होते हैं | पाकिस्तान में प्रायः चुनाव आयुक्त सर्वोच्च या उच्च न्यायलय का रिटायर्ड या सिटिंग जज होते हैं | जबकि भारत में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति सरकार करती है जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता है और दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं जो कि भारतीय प्रशासनिक सेवा से होते हैं | जो कि भारत में चुनाव करने के लिए पूरी तरह से जिम्मेवार होते हैं | चुनाव के समय में सभी सरकारी मशीनरी चुनाव आयोग के निर्देशन में काम करते हैं |पाकिस्तान में प्रधानमत्री विपक्ष के नेता की सहमति से तीन नाम को बारह सदस्यीय संसदीय समिति को भेजते हैं ,जिसमें पक्ष और विपक्ष के बराबर सदस्य होते हैं |चुनाव आयोग में इसके अलावे चार सदस्य विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायलय के न्यायाधीश होते हैं |चुनाव अधिनियम 2017 के माध्यम से पाकिस्तान के चुनाव आयोग को वितीय सवतंत्रता मिली हुई है | जबकि भारत में चुनाव आयोग को धन सरकार से मिलता है |

सरकार –

पकिस्तान में प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री का चुनाव सदन में नये चुने हुए सदस्यों के द्वारा होता है |इसके उलट भारत की तरह राष्ट्रपति और राज्यपालों की कोई भूमिका नहीं होती है ,अगर किसी दल को भले बहुमत न मिला हो | तब तक वोटिंग होती रहती जबतक किसी दल को बहुमत न मिल जाय |इमरान खान का चुनाव इसी माध्यम से 17 अगस्त को हुआ है | नेशनल असेंबली में इमरान खान को 176 वोट मिला है और शहवाज शरीफ को 96 वोट मिला |पकिस्तान के संविधान में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के लिए विश्वास प्रस्ताव का कोई प्रावधान नहीं है | अविश्वास प्रस्ताव 20% सदस्य के समर्थन से लाया जाता है और तभी पास हो सकता है जब सदन के सभी सदस्यों के समर्थन से पास हो जाता है |जबकि भारत में अविश्वास प्रस्ताव सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के समर्थन से पास होता है |

आरक्षण –

पकिस्तान के नेशनल असेंबली में सदस्यों की कुल संख्याँ 342 है |जिसमें 272 का चुनाव प्रत्यक्ष होता है |60 क्षेत्र महिलाओं के लिए आरक्षित है और 10 धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित है | इसका आवंटन दलों को मिले मत के आधार पर तय होता है जो कि कम से कम 5 % हो | राज्यों के लिए भी महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है | इसके अलावे अगर किसी चुनाव क्षेत्र में जितने महिलाओं का मत है उसका 10% मत नहीं डाला हो तो वहां का चुनाव ख़ारिज हो जाता है और दुवारा चुनाव कराया जाता है |

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *