नज़रिया: तीन महीने में भारत के लिए होगी तेल की क़िल्लत?

ईरान पर लगाए गए अमरीकी प्रतिबंध का पहला चरण आज से शुरू हो रहा है, लेकिन इसका असर भारत पर भी पड़ेगा.

इराक़ और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को तेल बेचने वाला तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है.

पिछले हफ़्ते ऐसी ख़बरें आई थीं कि सरकारी तेल कंपनियों ने जुलाई में ईरान से तेल की ज़बरदस्त ख़रीदारी की.

प्रतिबंधों का दूसरा चरण जब चार नवंबर से शुरू होगा तो ये सिलसिला रुक जाएगा.

भारत के लिए कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाले चार प्रमुख देश हैं- ईरान, इराक़, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला. अब तक हमने ईरान पर अमरीका की पाबंदियों का ख़ुद पर असर रोकने के लिए कुछ इंतज़ाम कर रखे थे. मसलन, हमने रुपया-रियाल समझौता कर रखा था, जिसके तहत हम अपना भुगतान रुपयों में कर सकते थे.

दूसरा हमारा बार्टर सिस्टम भी लागू था कि हमें कुछ खाद्यान्न देना है तो उसके बदले हम कच्चा तेल ले लेते थे.

ये इंतज़ाम अब भी लागू हैं, लेकिन अमरीकी पाबंदियां पूरी तरह लागू होने के बाद वे निष्प्रभावी हो जाएंगे. असली परेशानी नवंबर से शुरू होने वाली है. अमरीकी प्रतिबंध दो चरणों में है. पहला चरण 6 अगस्त से शुरू हो रहा है जब न तो डॉलर से रियाल ख़रीदा जा सकेगा और न ही रियाल से डॉलर.

दूसरे चरण में नवंबर से कच्चे तेल को लाने-ले जाने वाले अमरीकी टैंकरों का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद हो जाएगा.
ज़्यादातर निजी कंपनियों ने ईरान से तेल मंगाना कम कर दिया है और जो सरकारी कंपनियां हैं, जिनके पुराने समझौते थे वो जल्दी-जल्दी उसे पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. इसीलिए आपने देखा होगा कि जून-जुलाई में ईरान से काफी मात्रा में हमारे यहां कच्चा तेल आया.

यहां तक तो स्थिति ठीक है, लेकिन नवंबर से हम ईरान से तेल नहीं ले सकेंगे क्योंकि अमरीकी टैंकरों का इस्तेमाल नहीं हो पाएगा. दूसरा, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अहम समझी जाने वाली रिएश्योरैंस की पॉलिसी प्रभाव में नहीं रहेगी क्योंकि उसे भी अमरीकी कंपनियां मुहैया कराती हैं. तो हमारी समस्या ये हो जाएगी कि हमारा तेल का एक स्रोत बंद हो जाएगा.

ऐसे में दूसरा विकल्प हमारे लिए वेनेज़ुएला हो सकता है लेकिन ख़बर है कि उसके ख़िलाफ़ भी पाबंदी लगाई जा सकती है. अगर ऐसा हुआ तो हमारे लिए कच्चे तेल की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है और हमें नए विकल्प तलाशने होंगे.

फिलहाल हमारे लिए कोई बड़ी परेशानी नहीं होगी, लेकिन अगर यह स्थिति बनी रही तो नवंबर के बाद ज़रूर हमारी चिंता बढ़ेगी.
इससे बचने का एक रास्ता है. अगर अमरीका हमें रियायत दे दे कि हम ईरान से कच्चा तेल ले सकते हैं और उसका भुगतान यूरो या दूसरी मुद्राओं में कर सकते हैं तो इससे हमारी राह आसान हो जाएगी. लेकिन अभी तक अमरीका का रुख़ नरम पड़ता नहीं दिख रहा है.

ऐसे में हम ये उम्मीद करें कि तमाम पाबंदियों के बाद वो नवंबर से हमें ईरान से तेल लाने की इजाज़त देगा, वो भी अपने टैंकरों के ज़रिये, इसकी संभावना कम है.

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