बोहरा मुसलमान और मोदी

उमेश सिंह

शांत सरोवर में ‘कमल’ खिलता है। जो परिवार, समाज और देश अशांत है, वहां विकास की बदरंग तस्वीरे है। अल्पसंख्यकों के बीच बोहरा समुदाय अपनीखास विशिष्टताओं से भरा है। उनके आस्था का केंद्र ‘गुरूतत्व’ है। इसी गुरूतत्व की रोशनी से बोहरा मुसलमान खुद को भासित करते है। ये अशांत नहींबल्कि शांत है और शांत सरोवर में समृद्धि के कमल हर उस जगह खिले हुए है, जहां पर बोहरा समुदाय की बसावट हैइंदौर में बोहरा समाज के कार्यक्रम मेंप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे तो सियासी गलियारे में नाहक चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया। लेकिन वहां कार्यक्रम में शरीक होकर नरेंद्र मोदी ने यह जता दिया किवे लकीर के फकीर नहीं है, बल्कि नई-नई लकीरों को निर्मित करने का साहस भी रखते हैवे खुद बेचैन तो नहीं होते है लेकिन यह बात दीगर है कि उनकेकदम से दूसरे लोग बेचैनी में जरूर पहुंच जाते है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंदौर में बोहरा समाज के कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यह दूसरा मौका है जब नरेंद्र मोदी बोहरा मुस्लिमोंके कार्यक्रम में पहुंचे थे। इससे पहले जब वह गुजरात के सीएम थे तो बोहरा समाज के कार्यक्रम में गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्बोधन के दौरान बोहरासमुदाय से अपने रिश्ते को खास तौर से रेखांकित किया। कहा कि ‘बोहरा समाज से उनका गहरा रिश्ता है।’ गौरतलब है कि पीएम को बोहरा मुस्लिम समुदायसे समर्थन मिलता रहा है। दाऊदी बोहरा अपने विशिष्ट सफेद कुर्ता और सफेद टोपी के साथ पिछले कुछ वर्षो में विभिन्न मौकों पर मोदी के साथ चित्रखिंचवाते देखे गए है। अल्पसंख्यकों में नरेंद्र मोदी के प्रति जो हिचक है, उस हिचक को बोहरा समाज गाहे-बगाहे तोड़ता रहा है। जानकारी के अनुसार मोदी केआस्ट्रेलिया दौरे के दौरान सिडनी में पीएम के संबोधन मे भाग लेने वाले हजारो लोगों में से सौ के करीब बोहरा समुदाय के लोग भी थे। इन्हें आस्ट्रेलिया मेंभारतीय उच्चायोग की ओर से विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। सिडनी में बोहराओं ने पारंपरिक पोशाक पहन रखे थे।

बोहरा समाज के लोग मुस्लिम होते है लेकिन आम मुस्लिमों से थोड़े अलग स्वभाव के हैबोहरा आम मुस्लिम की तरह शिया और सुन्नी दोनों होते हैदाऊदीबोहरा शियाओं से ज्यादा समानता रखते हैजबकि सुन्नी बोहरा हनफी इस्लामिक कानून को मानते हैबोहरा समाज के धर्मगुरू को ‘सैय्यदना’ कहते हैसैय्यदना जो बनता है, बोहरा समाज उसी को अपनी आस्था का केंद्र बना लेता है। २१ वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम के बाद ११३२ से आध्यात्मिकगुरुओं की परंपरा शुरू हुई जिन्हें  ‘दाई-अल- मुतलक’ कहते है। जब ५२ वें दाई-अल-मुतलक सैय्यदना  मोहम्मद बुरहानुद्दीन का निधन हुआ था तो वर्ष २०१४से सैय्यदना डा. मुफ द्दुल सैफुद्दीन  उत्तराधिकारी बने। सैफुद्दीन ५३ वें ‘दाई-अल-मुतलक’ है।

भारत में दाऊदी बोहराओं की बसावट मुख्यत: सूरत, अहमदाबाद, बड़ोदरा, जामनगर, राजकोट, नवसारी, दाहोद, गोधरा, मुंबई, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद,उदयपुर, भीलवाड़ा, इंदौर, बुरहानपुर, उज्जैनी, शाजापुर, कोलकाता, बेंगलरु, चेन्नई, हैदराबाद आदि नगरों-महानगरों में है। वैश्विक नजरिए से देखा जाए तोबोहराओं की आबादी पाकिस्तान के सिंध प्रांत, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दुबई, मिस्र, ईराक, यमन और सऊदी अरब में भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कीइंदौर यात्रा को सिर्फ मध्य प्रदेश में होने वाले चुनाव के नजरिए से देखना तर्कसंगत नहीं लगता है क्योकि बोहराओं के पास ऐसी ‘वोट-शक्ति’ नहीं है कि वेचुनाव परिणाम में निर्णायक भूमिका निभा सके। मध्य प्रदेश के तीन नगरों-  बुरहानपुर, उज्जैन और इंदौर में ही बोहरा समाज की कुछ हद तक प्रभावी है,लेकिन इतना भी नहीं है कि वह परिणाम में बड़े स्तर पर उलटफेर ला सके। यह जरूर हो सकता है कि बोहराओं की संपन्नता राजनीतिक दलों को अपनी ओरखींच रही हों। कांग्रेस भी बोहराओं से दूर नहीं रही। चर्चा तो यहां तक रही कि इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी शरीक होना चाहरहे थे। अतीत पर नज़र डाले तो यह जानकारी मिलती है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू १९६० के दशक में गुजरात के सूरत शहर में दाऊदी बोहरा समुदाय केएक शैक्षिक संस्थान का उद्घाटन करने गए थे। इसी मौके पर उनकी मुलाकात ५१ वें सैययदना ताहिर सैफुद्दीन से हुई थी।

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कौन है बोहरा मुसलमान 

दाऊदी बोहरा मुसलमान फातिमी इमामों से जुड़े है जो पैगंबर मोहम्म्द के वंशज माने जाते है। १० वीं से १२ वीं शताब्दी के दौरान इस्लामी दुनिया मे इनकामहत्वपूर्ण स्थान था। बोहरा गुजराती शब्द ‘ वहौरुउ ‘ अर्थात व्यापार का अपभ्रंश है। ११ वीं शताब्दी में उत्तरी मिश्र से धर्मप्रचारकों के माध्यम से भारत मेंइस्लाम की यह विचारधारा भारत मे दाख़िल हुई। १५३९ के बाद जब भारतीय समुदाय बड़ा हो गया तो इन लोगों का मुख्यालय यमन से भारत के सिद्धपुर मेहो गया। १५८८ में दाऊद बिन कुतुब शाह और सुलेमान के अनुयायियों के बीच बटवारा हो गया। आज सुलेमानियों के प्रमुख यमन में रहते है जबकि सबसेअधिक तादात में होने के कारण दाऊदी बोहराओं का मुख्यालय मुंबई में है।

१९६० के दशक में नौमान अली ने दाऊदी बोहरा समुदाय में सुधारवादी आंदोलन की शुरुआत की। इन्हें ‘कांट्रेक्टर ‘ भी कहा जाता था। उनके दौर में यहआंदोलन बहुत जोर नहीं पकड़ पाया, लेकिन नौमान अली के निधन के बाद आंदोलन की कमान १९८० के दशक में डा. असगर अली इंजीनियर के हाथो में आगई और उसके बाद आंदोलन का तेजी के साथ विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार हुआ। इंजीनियर ने उन देशों का दौरा भी किया, जहां दाऊदी बोहरा बसे हैं। उन्होंनेकवियों, कलाकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों, पूर्व न्यायधीशों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी अपने आंदोलन से जोड़ा लेकिन उनकी मौत के बाद आंदोलनकी तपिश ठंडी पड़ गई।

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