जब सरकार ने रिलायंस की हलक से निकाल लिया बैंकों से लिया कर्ज – इतिहास जनसत्ता का

रामबहादुर राय

उस समय भी रिलायंस ने सरकार में कितनी गहरी सुरंग बिछा ली थी यह जानने के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह की पुस्तक ‘मंजिल से ज्यादा सफर’ का यह अंश पढ़ें –

सवाल : आपने एक मामले में रिलायंस समूह से पैसा वसूलने का बैंकों को आदेश दिया। उसकी पृष्ठभूमि क्या आप बताना चाहेंगे?

जवाब : एक दिन एस. गुरुमूर्ति आए, उन्होंने कहा कि क्या आपको मालूम है कि रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आर.बी.आई.) की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें रिलायंस के आर्थिक घपले उजागर हुए हैं। मैंने कहा कि मेरे पास कोई रिपोर्ट नहीं आई है। मैंने रिज़र्व बैंक से मालूम करवाया तो पता चला कि एक रिपोर्ट रिज़र्व बैंक ने बनाई है। रिलायंस ने चार बैंकों से पचास करोड़ रुपये का कर्ज लिया। उस समय ब्रांच मैनेजर को बारह करोड़ रुपये तक का कर्ज अपने स्तर पर देने का अधिकार था। इस आधार पर रिलायंस ने उन बैंकों के बैंक मैनेजरों से पैसा कर्ज के रूप में प्राप्त किया उसी पचास करोड़ रुपये के आधार पर फर्जी कंपनियों के नाम से रिलायंस शेयर खरीद रहा था, जो बढ़े दाम पर खरीदे जा रहे थे। ये तरकीब उन शेयरों का बाज़ार में दाम बढ़ाने के लिए अपनाई गई थी। वह गैर क़ानूनी काम था। इसे इनसाइड ट्रेडिंग कहा जाता है। यह शेयर होल्डर के साथ धोखा है। रिज़र्व बैंक ने इसकी पुष्टि की। मेरे पास इस मामले में कार्यवाही करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अगर मैं चुप रहता तो यह माना जाता कि मैं भी उसमें शामिल हूं। मेरे शरीक होने का तो सवाल ही नहीं था। इसलिए वित्त मंत्री के नाते मैंने बैंकों को आदेश दिया था कि वे उस पैसे को रिलायंस से वसूल कर लें। यह असामान्य फैंसला था। खासकर रिलायंस के मामले में तो कभी हुआ ही नहीं था।

सवाल : क्या बैंकों ने पैसा वसूला?

जवाब : बैंकों को पैसा वसूलने में कोई कठिनाई नहीं हुई। रिलायंस से 67 करोड़ रुपये की वसूली की गई। बैंकिंग इतिहास में यह पहली घटना थी। रिलायंस सरकार से टकराने का खतरा मोल नहीं ले सकता था। उसने स्वयं सारा पैसा जमा कराया।

सवाल : कहा जाता है कि रिलायंस का रसूख सरकार और राजनीतिक दलों में उस समय बहुत गहरा था। उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?

जवाब : संसद में हंगामा हुआ। मैंने जो सबूत थे उसका सार संसद के पटल पर रख दिया। अफसरों की सलाह नहीं थी। वे बैंक की गोपनीयता के मद्देनज़र सलाह दे रहे थे कि उसे संसद में नहीं रखा जा सकता। मैंने कहा कि बैंक का पैसा लोगों का है। साधारण आदमी को यह जानने का अधिक्र है कि उसके पैसे का किस तरह इस्तेमाल हो रहा है। इससे मेरे फैंसले का औचित्य उन लोगों के ध्यान में आया। जो लोग उस घरने से जुड़े हुए थे, उनकी नाराजगी का एक सबब जरुर मिला।

     सवाल : माना जाता है कि आप खास तौर पर रिलायंस के खिलाफ थे। क्या यह धारणा सही है?

जवाब : रिलायंस या किसी घराने के प्रति मेरे मन में बैर भाव कभी रहा नहीं। जब रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आई थी, उससे पहले मैंने उस कंपनी के विस्तार के लिए जो एक प्रस्ताव आया था उसे मंजूरी दे दी थी। उसमें रिलायंस को चार सौ करोड़ रुपये विदेशी बाज़ार से उठाना था। एक दूसरे मामले में उसके खिलाफ मैंने कार्रवाई भी की थी। नुस्ली वाडिया रिलायंस के प्रतिद्वंद्वी माने जाते थे। शिकायत मिलने पर उनके खिलाफ भी उन दिनों मेरे आदेश सेछापा पड़ा था और उन्होंने 1.25 करोड़ रुपये जुर्माना दिया। मेरे कार्यकाल में रिलायंस पर कोई छापा नहीं पड़ा था। उनके अनेक फैंसलों को मंत्रालय ने उलट जरुर दिया था। यह आरोप रिलायंस ने भी कभी नहीं लगाया कि उनके प्रति मेरे मन में कोई पूर्वाग्रह था।

सवाल : कहा तो यहां तक जाता है कि हर सरकार में रिलायंस ने अपने मन माफिक फैंसले करवा लिए। अपने कारोबार से संबंधित मंत्रालयों में उसने अपने चहेते अफसरों की नियुक्तियां भी करवाई। यह सिलसिला वाजपेयी सरकार में भी जारी रहा। क्या ऐसा ही है ?

जवाब : मैं सोचता हूं कि ऐसा ही होता रहा होगा। मेरा ख्याल है कि रिलायंस के मलिक धीरुभाई अंबानी चाणक्य सूत्र को भली भांति आत्मसात कर चुके थे। चाणक्य ने अपने नीति-सूत्रों में कहा है कि कभी राज करने की कोशिश मत करो,राजा को खरीद लो। इस नीति को धीरुभाई अंबानी ने बखूबी अपनाया और राज्यतंत्र पर कब्ज़ा ज़माने में लग गए।

     सवाल : धीरुभाई अंबानी के पेट्रो केमिकल्स कॉम्प्लेक्स की जांच आपने शुरू करा दी थी। कहते हैं कि उस कॉम्प्लेक्स में जो बिजली घर बन रहा था उसकी लागत 30 करोड़ रूपये थी जिसका कोई हिसाब नहीं मिल रहा था। इसके लिए अपने जांच का आदेश दिया .उस पर उस समय राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया। वास्तविकता क्या थी ?

जवाब : पेट्रो केमिकल्स कॉम्प्लेक्स बनाने की मंजूरी रिलायंस को दी गई थी। मैंने ही दी थी। उसके लिए संयंत्र आयात करना था। उसे आठ मशीनें मांगने की इजाजत दी गई थी। रिलायंस ने बारह मशीनें मंगवा ली। इसकी उद्योग मंत्रालय की तकनीकी कमेटी ने जांच की और यह पाया कि आयात करने में धांधली की गई है।वह रिपोर्ट मेरे सामने आई। वह उद्योग और वित्त मंत्रालय की साझा रिपोर्ट थी। उसके साथ ही एक पॉवर प्लांट भी तीस करोड़ रुपये का आया था। जब एतराज किया गया तो रिलायंस का जवाब था कि गिनने में गड़बड़ हुई है। जहां तक पेट्रो केमिकल्स कॉम्प्लेक्स का मामला था उसकी लागत ग्यारह सौ करोड़ रुपये थी। उसमें 30 करोड़ रुपये का पॉवर प्लांट रिलायंस घलुवा में दिखा रहा था। इसका साफ मतलब है कि दाम बढ़ाकर काले धन को देश में लाया जा रहा है या देश में जमा काले धन को खपाने का इंतजाम किया जा रहा है। मैंने इसकी छानबीन करने का आदेश दिया।

ऐसे ही एक मामला था सिंथेटिक फाइबर का। उसमें सरकारी आदेश का रिलायंस ने उल्लंघन किया। रिलायंस ने अपना जुगाड़ इस तरह से बनाया हुआ था कि उसे सरकार की नीतियाँ घोषित होने से पहले ही मालूम हो जाती थीं, लेकिन वह इस मामले में चूक गया। आदेश यह था कि एल.सी. (लैटर ऑफ़  क्रेडिट) अगर निश्चित तारीख से पहले खुली है तो उसे सुविधा मिलेगी। रिलायंस ने अपनी चूक को घपले से ढका और पिछली तारीखों में आयात किया हुआ दिखाया। तारीख को बदलवाकर बैंक से जो अंतिम तारीख थी उससे पहले की तारीख लगवा ली। जैसे कानून लागू हो रहा है एक फ़रवरी को तो एल.सी. पर एक जनवरी की तारीख लगवा दी। जब शिकायत आई तो उसकी जांच हुई। मैंने बैंक के चेयरमैन को बुलवाया और पूछा कि लैटर ऑफ़  क्रेडिट को पिछली तारीख में क्यों दिखाया? इसकी क्या जरुरत थी ? उसका जवाब था कि अपने ग्राहक की सुविधा के लिए मैंने ऐसा किया। मैंने पूछा कि क्या ऐसा नियम है ? क्या किसी और को ऐसी छूट दी गई है ? उसके पास जवाब नहीं था. उस चेयरमैन को मैंने हटाया और उस मामले की जांच का आदेश दिया जिसमें रिलायंस की गलती पकड़ी गई।

सवाल : आपके वित्त मंत्री वाले कार्यकाल में रिलायंस की दाल नही गल पाई। ऐसा कैसे हुआ ?

जवाब : उन्होंने कोशिश की होगी लेकिन सफल नहीं हो पाए। जैसे एक मामला रिलायंस के नए शेयर का आया। नए शेयरों के दाम सरकार तय करती थी। उसका एक फ़ॉर्मूला होता है। नई कंपनियों के लिए खास तौर पर यह देखना पड़ता है कि वे बढ़ाकर दाम न तय करवा लें, वैसी हालत में लोगों का पैसा बर्बाद होगा। सरकार को ही जनहित की चिंता करनी होती है।

विश्वनाथ प्रताप सिंह का बताया हुआ जो आपने पढ़ा, वही इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट थी। उस पर ही रामनाथ गोयनका से धीरुभाई अंबानी टकराए। अगर वह मात्र दो घरानों की लड़ाई होती तो उसका राजनीतिक परिणाम वैसा भयावह नहीं होता जैसा घटित हुआ। शासन व्यवस्था में पैठ बना चुका भ्रष्टाचार उसे घुन की तरह खोखला कर रहा था जिसके कारण विश्वनाथ प्रताप सिंह को अभियान पर निकलना पड़ा। वे राजीव गांधी की सरकार में वित्त मंत्री थे। रिलायंस के पाताल गंगा प्लांट के लिए पैसे के स्रोत की छान-बीन के सिलसिले में फेयरफैक्स जांच एजेंसी की मदद वित्त मंत्रालय ले रहा था। रिलायंस ने बड़ी ही चतुराई से उसे अपने हक़ में इस्तेमाल कर लिया। उसने राजीव गांधी को समझाया कि यह जांच उनके खिलाफ है। इससे खफा राजीव गांधी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को वित्त मंत्रालय से हटा दिया। उन्हें रक्षा मंत्री बनाया जहां पहले ही दिन विश्वनाथ प्रताप सिंह को एच.डी.डब्लू.पनडुब्बी जहाज के सौदे में कमीशन लिए जाने की सूचना मिली। उन्होंने जांच के आदेश दिए जिससे वे रक्षा मंत्री के पद से भी हटा दिए गए। थोड़े दिनों बाद उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया। इस तरह कांग्रेस में महाभारत छिड़ गया जिसे लोगों ने माना कि विश्वनाथ प्रताप सिंह भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज़ उठाने और कार्रवाई करने के कारण शहीद हो गए…….

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