रिजर्व बैंक ने मालामाल बनाया

 

रामबहादुर राय

रिजर्व बैंक ने इस बार भारत सरकार को मालामाल कर दिया। उसने भारत सरकार को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये दो किश्तों में हस्तांतरित करने का फैसला किया है। उम्मीद है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार हस्तांतरित रकम को बजट घाटे को कम करने और विकास के कार्यों में खर्च करने में लगायेगी।

रिजर्व बैंक कानूनन स्वायत्त है। उसकी स्वायत्तता का भारत सरकार भी पूरा सम्मान करती है। अक्सर एक विषय पर भारत सरकार और रिजर्व बैंक में हल्की-फुल्की बिना गोली बारूद की तनातनी हो जाती है। मसला रुपये पैसे का है। कभी-कभार वह बहुत बढ़ जाता है। लेकिन जो मसला दो दशक से तनातनी का कारण था वह बहुत आसानी से हल हो गया। इस दृष्टि से 23 अगस्त, 2019 की तारीख को भी चाहें तो ऐतिहासिक मान सकते हैं। अपने इतिहास में पहली बार रिजर्व बैंक ने भारत सरकार को उतना पैसा देना मंजूर किया जितना मोदी सरकार ने मांगा भी नहीं था। निर्मला सीतारमण के बजट में 90 हजार करोड़ रुपये की आमद रिजर्व बैंक से होगी, इसका एक प्रावधान किया गया था। इस आधार पर मान सकते हैं कि केंद्र सरकार अधिक से अधिक 90 हजार करोड़ रुपये की अपेक्षा कर रही थी। किसी से पैसा बढ़ा-चढ़ा कर ही मांगा जाता है।

जितनी जरूरत होती है उससे अधिक की मांग करने पर होता यह है कि देने वाला थोड़ा कम भी करता है तो जो देता है वह जरूरत के मापदंड से काफी ही रहता है। रिजर्व बैंक ने इस बार भारत सरकार को मालामाल कर दिया। उसने भारत सरकार को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये हस्तांतरित करने का फैसला किया। विवाद हस्तांतरण पर नहीं था। उसकी रकम पर था। भारत सरकार चाहे नरेन्द्र मोदी की हो या किसी दूसरे की, उसकी रिजर्व बैंक से मांग हमेशा बढ़- चढ़ कर रही है। रिजर्व बैंक उसे नामंजूर करता रहा है। यह बात अलग है कि वह हर साल एक बड़ी रकम भारत सरकार को हस्तांतरित करता रहा है। औसतन 50 हजार करोड़ रुपये। रकम मांगने और हस्तांतरित करने पर विवाद रकम की मात्रा पर रहा है। इसके अपने-अपने तर्क थे।

भारत सरकार का तर्क जरूरत से संबंधित रहा है। दूसरी तरफ रिजर्व बैंक अपने नियमों से बंधा होने के कारण उतनी ही रकम हस्तांतरित करता था जितना वह आसानी से दे सकता था। रिजर्व बैंक जो पैसा बचाता था वह संकट काल की जरूरतों के लिए सुरक्षित रहना चाहिए, यही तर्क देता था। एक ओर जरूरत का तर्क था तो दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था के व्यापक हितों का वास्ता दिया जाता था। विवाद वैसे तो पुराना है। पर पिछले साल वह तूफानी हो गया था। देश का कोई भी व्यक्ति उस विवाद से अछूता नहीं रह सकता था। उसमें एक तरफ रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल थे तो दूसरी तरफ वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष गर्ग थे।

उर्जित पटेल ने रघुराम राजन की जगह ली थी। उनके विरोध में डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपने छठी स्वभाव के अनुरूप अभियान ही छेड़ रखा था। उर्जित पटेल आये तो उनके साथ उम्मीदों का एक कारवां भी चल रहा था। जब वे गये तो विवाद की गहरी छाया रिजर्व बैंक पर थी। विवाद उस समय इस पर था कि रिजर्व बैंक अपना अतिरिक्त कोष कितना बचाये और कितना भारत सरकार को हस्तांतरित करे। यह विवाद अब सुलझ गया है। उर्जित पटेल के कार्यकाल में बैंक का बोर्ड भी असहमत था। केंद्र सरकार की मांग से उसका मतभेद था।

नई परिस्थति में बैंक का बोर्ड न केवल सहमत हुआ बल्कि उसने एक उदार भाव प्रदर्शित किया। इसके लिए रास्ता बनाया बिमल जालान कमेटी ने। बिमल जालान को कौन नहीं जानता। वे समय-समय पर अपनी पुस्तकों के लिए जितना चर्चित रहे हैं, उससे अधिक वे एक अच्छे गवर्नर के रूप में रिजर्व बैंक और आर्थिक जगत में जाने जाते हैं। उर्जित पटेल की जगह गवर्नर पद पर शक्तिकांत दास आये। उन्होंने बिमल जालान कमेटी बनाई। बिमल जालान की कमेटी ने जो फॉर्मूला पेश किया उसे रिजर्व बैंक के बोर्ड ने मंजूर कर लिया। इससे पहली बार भारत सरकार को रिजर्व बैंक इतनी बड़ी रकम देने जा रहा है। जो रकम हस्तांतरित होगी वह दो हिस्से में है। पहले हिस्से में 1 लाख 23 हजार करोड़ रुपये हैं जिसे बैंक के अतिरिक्त कोष से हस्तांतरित किया जाएगा।

दूसरे हिस्से में करीब 53 हजार करोड़ रुपये की वह रकम है जो बैंक भारत सरकार के समेकित कोष में देगा। दूसरी रकम भी करीब 3 हजार करोड़ रुपये ज्यादा है। यह रकम हर साल से बढ़कर है। पहली रकम तो बिल्कुल अनपेक्षित ही है। इस निर्णय से विपक्ष हतप्रभ रह गया। भारत सरकार की जिम्मेदारी पहले से बढ़ गई। आर्थिक मंदी के लक्षणों को वह रोककर विकास की रμतार को बढ़ा सकेगी। यह रकम कहां खर्च होगी और कैसे खर्च होगी? इस पर विपक्ष के कुछ नेताओं ने जल्दबाजी में जो टिप्पणी की उसका जवाब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने दे दिया है। उन्होंने कहा है कि रिजर्व बैंक से हस्तांतरित रकम के खर्च का अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।

जो कुछ कहा जा रहा है वह अनुमान मात्र है। रिजर्व बैंक से अधिक रकम पाना नरेन्द्र मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है। रिजर्व बैंक के पास संरक्षित कोष बहुत ज्यादा हमेशा ही रहा है। उसे ही पाने के लिए पिछले दो दशक से हर केंद्रीय सरकार प्रयास करती रही है। इसके लिए तर्क भी देती थी। तर्क यह होता था कि ढांचागत विकास और सामाजिक कल्याण के लिए जितना पैसा चाहिए वह उपलब्ध नहीं हो पाता, इस कारण विकास की रμतार सारे प्रयासों के बावजूद बढ़ नहीं पाती थी। केंद्र सरकार की मांगों के संदर्भ में बिमल जालान कमेटी ने हर पहलू से समीक्षा की। पूंजी प्रबंधन, रिजर्व बैंक के कानूनी प्रावधान, उसका बही-खाता वित्तीय अनुशासन, आर्थिक स्थिरता और वैश्विक मानक आदि को ध्यान में रखकर बिमल जालान कमेटी ने जो सिफारिश की उसमें उसने कहा कि 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये हस्तांतरित किया जाना चाहिए। उसे रिजर्व बैंक के बोर्ड ने मंजूर कर एक ऐसा राजमार्ग बना दिया है जो भारत सरकार के लिए बिना अवरोध के मंजिल पर पहुंचने में सहायक होगा।

यह अज्ञात सा तथ्य है कि रिजर्व बैंक की आमदनी बहुत ज्यादा है और खर्च मामूली। उसकी आमदनी के स्रोत अनेक हैं। निवेश, बाजार में हस्तक्षेप, विदेशी मुद्रा से आमदनी, परिसंपत्तियां, बैकों को दिये उधार से ब्याज और प्रबंधन से प्राप्त कमीशन आदि अनेक स्रोत हैं। दूसरी तरफ खर्च के मोटे मद दो ही हैं। पहला, रुपये छापने का खर्च और दूसरा अपने कर्मचारियों का वेतन आदि। यह एक रोचक तथ्य है कि रिजर्व बैंक को ब्याज से जो आमदनी होती है उसका सातवां हिस्सा हीं रुपये छापने में खर्च होता है। इसी से उसकी आमदनी का अनुमान लगाया जा सकता है और उसके संचित कोष का भी। एक प्रश्न अवश्य भ्रम का कारण है। वह यह कि रिजर्व बैंक जो पैसा भारत सरकार को देता है उसे हस्तांतरण क्यों कहा जाता है? उसे लाभांश क्यों नहीं कहा जाता है? इसका उत्तर सरल है। जिसे समझ लें तो प्रश्न समाप्त हो जाता है। उसका उत्तर मिल जाता है। लाभांश कंपनी देती है।

हर साल रिजर्व बैंक अगस्त महीने में अपनी अतिरिक्त आय को हस्तांतरित करता रहा है। इस बार भी वह नियम बना रहा। पर फर्क एक बड़ा आया। वैसे तो दुनिया के ज्यादातर देशों में जो केंद्रीय बैंक होते हैं वे अपनी सरकार को या उसके खजाने में अपनी आय का एक हिस्सा हस्तांतरित करते हैं।

रिजर्व बैंक कंपनी नहीं है। भारत सरकार के अधीन और उसके नियंत्रण में चलने वाला बैंक भी नहीं है। जो बैंक इस श्रेणी में आते हैं वे लाभांश देते हैं। लेकिन रिजर्व बैंक इसलिए अपना अतिरिक्त संचित कोष हस्तांतरित करता है क्योंकि वह कारोबारी बैंक नहीं है। हालांकि 1935 में इसकी शुरुआत एक शेयर होल्डर बैंक के रूप में हुयी थी। पेडअप कैपिटल 5 करोड़ रुपये था। 1949 तक जैसा था वैसा ही वह चल रहा था। उसके बाद भारत सरकार ने उसका राष्ट्रीयकरण किया। भारत का वह कानूनन केंद्रीय बैंक बना। उसकी कानून के नियम 47 में अतिरिक्त आय के हस्तांतरण का प्रावधान है। जिसका वह पालन करता है। हर साल रिजर्व बैंक अगस्त महीने में अपनी अतिरिक्त आय को हस्तांतरित करता रहा है। इस बार भी वह नियम बना रहा। पर फर्क एक बड़ा आया। वैसे तो दुनिया के ज्यादातर देशों में जो केंद्रीय बैंक होते हैं वे अपनी सरकार को या उसके खजाने में अपनी आय का एक हिस्सा हस्तांतरित करते हैं। कई देशों में उसका अनुपात कानून से तय है। रकम की मात्रा का निर्धारण हमेशा ही पेचीदा रहा है।

उसके लिए भारत सरकार और रिजर्व बैंक में बातचीत और सौदेबाजी चलती रही है। पिछले साल भी एक कमेटी बनी थी। वह वाईएच मालेगन कमेटी थी। उसने जो सिफारिश की थी वही बिमल जालान कमेटी की भी सिफारिश है। लेकिन तब रिजर्व बैंक के बोर्ड ने उसे माना नहीं था। इस बार बोर्ड ने सिफारिश को मंजूर कर लिया। इससे रिजर्व बैंक में पारदर्शी व्यवस्था बनेगी। भविष्य में भी अतिरिक्त आय के हस्तांतरण की रकम को निर्धारित करने में कोई रूकावट नहीं आयेगी। जो हस्तांतरण से रकम मिलती है वह वेतन, पेंशन और ऐसे ही कार्यों में खर्च होता रहा है। उम्मीद की जा रही है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार हस्तांतरित रकम को बजट घाटे को कम करने और विकास के कार्यों में खर्च करने में लगायेगी।

 

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