पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने ग्रीन इंडिया मिशन (जीआईएम) अभियान के तहत अरावली और पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखलाओं के साथ-साथ मैंग्रोव और भारतीय हिमालयी क्षेत्र जैसे संवेदनशील जगहों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंगलवार को जोधपुर में विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में 2021-2030 की अवधि के लिए एक कार्ययोजना को प्रस्तुत किया हैं । कार्ययोजना में कहा गया है कि अरावली, पश्चिमी घाट, उत्तर पश्चिम भारत के शुष्क क्षेत्रों, मैंग्रोव और भारतीय हिमालयी क्षेत्र जैसे संवेदनशील क्षेत्रों लिए एक ‘सूक्ष्म-पारिस्थितिकी तंत्र’ का दृष्टिकोण अपनाया जाएगा।
हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन फरवरी 2014 में यूपीए सरकार द्वारा शुरू किया गया था और यह भारत की जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) के तहत आठ मुख्य मिशनों में से एक है। जीआईएम का मुख्य उद्देश्य जलवायु अनुकूलन और अन्य रणनीतियों के मिश्रण का उपयोग करके भारत के वन और वृक्ष आवरण की रक्षा, पुनर्स्थापना और वृद्धि करना है। मिशन का एक मुख्य उद्देश्य 50 लाख हेक्टेयर वन और गैर-वन भूमि पर वन और वृक्ष आवरण को बढ़ाना और अन्य 50 लाख हेक्टेयर पर वन आवरण की गुणवत्ता में सुधार करना था।
संशोधित मिशन के अनुसार भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के अनुमानों के आधार पर यह भी अनुमान लगाया कि भारत सभी तरह के गतिविधियों के संयोजन से 3.39 बिलियन टन तक कार्बन उत्सर्जन को रोक सकता है। इसके लिए अनुमानित 24.7 मिलियन हेक्टेयर से अधिक वन और वृक्षारोपण रोपण में वृद्धि की आवश्यकता होगी। राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं के रूप में, हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन का लक्ष्य अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन को रोकना है ।
यह जंगलों की वृद्धि , बंजर भूमि पर वृक्षारोपण और अन्य स्थानों के अलावा रेलवे लाइनों और राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे वृक्षारोपण के माध्यम से योजनाबद्ध तरीके से किया जा सकता है। एफएसआई के अनुमानों के अनुसार, अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन रोकने की सबसे बड़ी संभावना पिछले 15 से 20 वर्षों में खराब हुए वनों की वृद्धि के साथ-साथ खुले जंगलों, कृषि वानिकी पर निर्भर है। 2023 की भारत की वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, 2021 और 2023 के बीच भारत का शुद्ध वन क्षेत्र केवल 156.41 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में पुराने विकास वाले जंगल, मैंग्रोव का नुकसान हुआ है और पश्चिमी घाट में वन क्षेत्र में गिरावट देखी गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी घाट जैसे उच्च कार्बन को अलग करने की क्षमता वाले देशी वृक्ष प्रजातियों के रोपण सहित सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग किया जाएगा। भूमि क्षरण रोकने के लिए मिट्टी और नमी संरक्षण गतिविधियों की भी जाँच होगी । दस्तावेज़ में कहा गया है कि पश्चिमी घाट का पारिस्थितिकी तंत्र व्यापक वनों की कटाई, पेड़ों की कटाई और खनिजों के अवैध खनन के कारण खराब हो गया है। इससे बहुत ज्यादा प्रदूषण हुआ है, वायु और जल की गुणवत्ता खराब हुई है, भूजल स्तर में कमी आई है और मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है।