प्रकृति के नियम का विरोध ही नाश का कारण है

दत्तोपंत ठेंगड़ी

परिस्थितियां होती हैं। इसका कारण है। इतना केवल बताकर मैं अपना भाषण पूरा करूंगा। आप यह समझ लीजिए कि यह प्रकृति का नियम है कि जो बात प्रकृति के कर्म के विरोध में जाती है वह बात स्वयं नष्ट होती है। समय लगता है। हमें क्या काम करना है यह भी बताऊंगा। जो-जो बात प्रकृति के कर्म के नियमों के खिलाफ जाती है उसके अंदर अंतर्विरोध-कांट्राडिक्शन पैदा हो जाते हैं।

कल हमने एक छोटा-सा उदाहरण दिया था। महाराष्ट्र में अस्पृश्यों का बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ। डा. बाबा साहब अंबेडकर ने खड़ा किया। प्रकृति की र्ध्म मर्यादाओं के अंतर्गत रहते हुए, जिसको उन्होंने कांस्टीट्यूश्नल मोरेलटी का नाम दिया। उस विषय में मोरेलटी का अर्थ भी धर्म ही होता है तो उस दायरे में रहते हुए उन्होंने अस्पृश्यों का एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया।

बड़ा आंदोलन तो खड़ा हुआ। लाखों लोग इकट्ठा होने लगे बाबा साहब के नाम पर। ऐसे में बाबा साहब की मृत्यु हो गई। मृत्यु होने के बाद बाकी लोग जो थे वे कांस्टीट्यूश्नल मोरेलटी मानने वाले लोग नहीं थे और उसमें फिर लोगों को लगा कि केवल बाबा साहब की जय-जयकार करने से लाखों लोग हमारे पीछे आते हैं। सबमें नेता होने की इच्छा हुई। धर्म की बात दूर गई। कांस्टीट्यूश्नल मोरेलटी की बात दूर गई और जैसे उन्होंने लोकप्रियता का ऐडवांटेज लेना शुरू किया। आज आप देखिए कि बाबा साहब के मानने वाले कितने धड़ों में विभक्त हुए।

बाबा साहब का निधन हुआ उस समय रिपब्लिक पार्टी का जन्म नहीं था शेड्यूल-कास्ट फैडरेशन थी। लेकिन एक मजबूत किला था। आज कितने ही धड़ों का वहां निर्माण हो गया है। ये कोई आपके और मेरे कारण निर्माण नहीं हुए जैसे ही उन्होंने प्रकृति और धर्म के नियमों के खिलाफ जाकर काम करना शुरू किया धीरे-धीरे होते-होते वैयक्तिक इच्छाएं बढ़ गईं।

मैं नेता क्यों नहीं हो गया? मेरा ग्रुप तुम्हारा ग्रुप, आपस में झगड़ा। सारा होते-होते आज सारा उनका मामला बढ़ ही रहा है। आज प्रत्यक्ष उदाहरण हम लोग देखते हैं। बंगाल का उदाहरण देखिए बंगाल में सी.पी.एम. की सरकार कई साल तक थी। यह आपातकाल के पहले की बात है मैं जब बंगाल में जाता था, आपको आश्चर्य होगा। मेरे साथ 4-5 लोग आगे-पीछे चलते थे। सी.पी.एम. ने आतंकवाद खड़ा कर दिया था, मोहल्ले के मोहल्ले ऐसे थे जहां कोई जा नहीं सकता था। लोगों ने अपनी शादियां भी बंगाल में मनाना बंद कर दी। जो-जो सी.पी.एम. के नहीं हैं ऐसे प्रमुख नेताओं को मारने का काम सी.पी.एम. ने शुरू किया था। लेकिन धर्म और प्रकृति के खिलाफ जाने वाला काम था। थोड़े ही दिन में ऐसी परिस्थिति आ गई कि चारों ओर से उसके खिलाफ वायुमंडल ऐसा खड़ा हो गया और फिर आपस में झगड़े हुए।

हमेशा ऐसा होता है कि जो धर्म और प्रकृति के खिलाफ जाने वाले लोग हैं उनका काम कुछ समय के लिए बढ़ता है। लेकिन जैसे हमारा काम बढ़ गया है, हम कुछ हस्ती बन गए, ये कुछ यश आ रहा है, कुछ लाभ होने वाला है, ऐसी परिस्थिति आते ही यह लोग आपस में लड़ने लगते हैं। यह नियम प्राकृतिक नियम है। यह अंतर्विरोध है। यह पंजाब रहे, बंगाल रहे, आंध्र रहे, हर जगह है। आंध्र में भी ऐसे ही नैक्सलाइट का हुआ है। बंगाल में भी वही हुआ। पंजाब में भी होगा या पहले हुआ होगा। लेकिन जिस समय यह धर्म और प्रकृति के खिलाफ जाने वाले लोग ताकत इकट्ठा करते या उनका प्रभाव बढ़ने लगता है चारों ओर लगता है कि अब इनका ये शासन चलेगा। इनकी ही सरकार चलेगी।

ऐसे समय यश का शिखर जब सामने आता है ऐसे समय यश प्राप्ति की होड़ शुरू हो जाती है। इससे मेरा क्रेडिट ज्यादा है मैं इसमें नेता बन जाऊं। जब यह बात शुरू होती है, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की आपस में स्पर्द्धा शुरू होती है, गुट-बंदी शुरू होती है और तरह-तरह के गुट खड़े हो जाते हैं, गु्रप बन जाते हैं। ये आपस में लड़ते रहते हैं। अंतर्विरोध के बोझ के नीचे धर्म विरोधी, प्रकृति विरोधी ये सभी शक्तियां ऐसी प्रक्रिया में आ जाती हैं। जब तक यश के शिखर तक नहीं पहुंचते तब तक। जैसे यश का शिखर दिखाई देने लगता है उस समय यश प्राप्ति की होड़ के लिए आपस में झगड़े और उसी में से व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और गुटबंदी के कारण आपस में अलग-अलग धड़े निर्माण होना। यह हर जगह होगा।

हमें काम इसलिए करना है कि यह सारा होने में टाइम लगता है। और यह होने तक बहुत नुकसान होगा, हिंदू समाज टूट जाएगा। राष्ट्रीय एकात्मता खत्म होगी, लोगों की जान-माल-इज्जत समाप्त हो जाएगी। इतना बड़ा नुकसान होगा। आगे चलकर उन्होंने वैसे भी खत्म होना है लेकिन उनके खत्म होने तक बड़ा नुकसान होना है, वह न हो तो हमारा ऑपरेशन सॉलवेज है। ऑपरेशन सॉलवेज का मतलब होता है कि जब कोई बड़ा जहाज डूबने लगता है तो बड़े डूबने वाले जहाज में से ज्यादा से ज्यादा मशीनरी बचाकर ले आना। इसको ऑपरेशन सॉलवेज कहते हैं।

वैसे जब संकट आता है तो ज्यादा से ज्यादा परिस्थिति को हम कैसे बचा सकते हैं, संभाल सकते हैं। बिगड़ने से बचा सकते हैं, इसके लिए कोशिश करनी है। वैसे भी देखा जाए तो अपने ही बलबूते खत्म होने वाला है। लेकिन खत्म होने से पहले सब राष्ट्र को धक्का देकर जाएगा, वह धक्का न लगे इसलिए ज्यादा से ज्यादा राष्ट्रीय एकात्मकता को कायम रखना, जान-माल-इज्जत को ज्यादा से ज्यादा बचाना, इसी दृष्टि से अपना कार्य है और इस कार्य के लिए एक लंबा दृष्टिकोण लेकर अपना जो निश्चित ध्येय सामने है, परमवैभव सामने रखते हुए विशेष रणनीति पर चलें इसकी फिक्र न करते हुए कि सामान्य आदमी क्या कहेगा कि शिवाजी तो घबरा गया और आत्मसमर्पण कर दिया, इस तरह के सामान्य आदमी की प्रतिक्रिया की फिक्र नहीं है, हम अपनी रणनीति के अनुसार चलें, इतना धीरज हिम्मत रखकर यहां बैठे हुए हम लोग विचार करें इतना ही कहना इस समय पर्याप्त है।

लुधियाना में आरएसएस के एक सम्मेलन में दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के भाषण का अंश

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *