ज्योतिष विज्ञान है, फिर संशय क्यों ?

      भले ही इंदिरा गांधी की अपने गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी के ज्योतिषीय कथनों पर अगाध और अटूट आस्था हो, पर उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू इस प्राचीन वैदिक विज्ञान वाले पूर्वानुमेय तथा भविष्य कथन को प्रवंचना और छल मात्र करार देते रहे। वे आमजन को इससे सरोकार रखने से सदा सावधान करते रहे। इस तथ्य को तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई उच्चयुक्त सर वाल्टर क्रोकर ने अपनी पुस्तक “नेहरू : एक आकलन” में लिखा था कि नेहरू भारतीय ज्योतिष को सदैव फर्जी और जाली मानते रहे।
अब कुछ दस्तावेजी प्रमाण पेश है जो यह सिद्ध करते हैं कि नेहरू पूरा विश्वास ज्योतिष पर करते थे। उनकी पुस्तक “Letters to Sister” (बहन को पत्र) में पत्र संख्या 74 (29 अगस्त 1944) में अहमदनगर जिला जेल से लिखा था कि : “किसी योग्य व्यक्ति से इंदिरा के नवजात प्रथम पुत्र की जन्मकुंडली बनवाएं और नाम रखे राजीव लोचन।” इसी तथ्य को डॉ संपूर्णानंद (यूपी के द्वितीय मुख्यमंत्री और बाद में राजस्थान के राज्यपाल) ने भी तस्दीक किया था।
जवाहरलाल नेहरू की बहन कृष्णा हथीसिंह ने पुस्तक “हम नेहरू लोग” के पृष्ठ 10 पर जिक्र किया कि नेहरू ने यहां तक लिखा था की कुंडली बनाते वक्त ध्यान रहे कि “युद्ध काल में घड़ी की सुई एक घंटा आगे कर दी गई थी।” स्वयं कमला नेहरू ने भी अपने पति की ज्योतिष में आस्था पर लिखा है। कमला और जवाहरलाल का विवाह उम्र का लंबा फासला होने के बावजूद भी किया गया था। अपनी पुस्तक “फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर” में संपादक दुर्गा दास ने लिखा था कि उनके काबीना मंत्री और भारत साधु समाज के संस्थापक गुलजारीलाल नंदा ने लिखा था कि प्रधानमंत्री ज्योतिषों की राय मांगते थे। उनके पिता मोतीलाल के सगे भ्राता पंडित बंशीधर नेहरू स्वयं जाने-माने ज्योतिषी तथा संस्कृतज्ञ थे।
     इटावा में (11 सितंबर 1915) जन्मी पुपुल मेहता जयकर जो प्रधानमंत्री की सांस्कृतिक सलाहकार थी “इंदिरा गांधी : एक जीवन चरित्र” (पेंगुइन, रेंडम हाउस 1992) के पृष्ठ 9 पर लिखा कि “मोतीलाल नेहरू ने शादी के लिए कश्मीरी ब्राह्मण लड़की कमला को चुना क्योंकि उसके वंशजों का सत्ता सुख लंबी अवधि तक वाला था। कितना सही था। गौर करें : कमला नेहरू 1936 में दिवंगत हुईं थीं। ग्यारह वर्ष बाद उनके पति देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने। कुल 15 वर्ष तक उनकी पुत्री इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं। फिर नाती राजीव गांधी 1980 में पांच वर्ष तक पदासीन रहें। अर्थात नेहरू वंश 37 वर्ष तक चला। उनके नाती की पत्नी सोनिया गांधी भी अप्रयक्ष रूप से दस वर्ष तक मनमोहन सिंह के समय सत्तासीन रहीं। कृष्ण हथीसिंह लिखती हैं कि बहन विजयलक्ष्मी और रंजीत पंडित का विवाह मुहूर्त (10 मई 1921) भी शास्त्रानुसार तय किया गया था। जवाहरलाल ने विवाह की व्यवस्था की थी।
     इंदिरा गांधी की ज्योतिषीय आस्था का प्रमाण है। भारत सरकार की गुप्तचर संस्था “रॉ” के मुखिया रहे के. शंकरन नायर ने लिखा कि कमला नेहरू से पौत्री इंदिरा तक सभी धार्मिक नियमों का अनुपालन करते थे। इन सबका विस्तृत प्रमाण “दि नेहरू डायनेस्टी (विंडो प्रकाशन F-39, ईस्ट ऑफ़ कैलाश, नई दिल्ली) लेखक : के. एन. राव, में उल्लिखित है। के. एन राव की इंडियन आडिट एंड एकाउंट्स सर्विस (IA & AS) में थे। वे अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर, बैडमिंटन के खिलाड़ी तथा ब्रिज (ताश) के चैंपियन रहे थे। डा. के. एन राव ने पृष्ठ 45 पर इसका जिक्र किया है। इस प्रकरण पर राव के लेख बेंगलुरु की पत्रिका एस्ट्रोलोजिकल मेगार्जन का दिसंबर 1983 के अंक में छपी थी। किस्सा है फिल्म “कुली” में शूटिंग कर जब अमिताभ बच्चन घायल हो गए थे। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका कई महीनों इलाज चलता रहा। तब राष्ट्रपति के चिकित्सा सलाहकार डा. आरके कैरोली श्रीमती तेजी बच्चन को के. एन राव के नई दिल्ली के जहांगीर रोड आवास पर आए थे। तब तेजी बच्चन अपने पुत्र की बाबत भविष्यवाणी जानने आई थीं तो के. एन राव (मेरे अग्रज) ने पूछा कि क्या यह युवक कवि हरिवंशराय बच्चन का संबंधी है ? मेरा छोटा भाई सुभाष (अब दिवंगत) और उसकी पत्नी विजयलक्ष्मी हंस पड़े। मतलब ऐसा भी कोई भारतीय था जिसने अमिताभ बच्चन का नाम न सुना हो। के. एन राव ने बताया कि फिल्म अभिनेता की आयु लंबी है। है अमिताभ आज भी जीवित और स्वस्थ हैं।
व्यवस्था को दूषित करती बाबाओं की धूर्तता !
     इस संदर्भ में एक दिलचस्प रपट मिली जो इन ढोंगी मगर राजनीतिज्ञ बाबाओं की कैटेगरी उजागर करती है। हिंदुओं की बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने तमाम धूर्त, इच्छाधारी, पाखंडी, ढ़ोंगी, स्वयंभू संतों का पर्दाफाश कर दिया। पूरे हिंदुस्तान के फर्जी बाबाओं यानी इच्छाधारी संतों की एक लिस्ट जारी की। चैकाने वाली बात यह है राजनेताओं के आशीवार्द से ही इनका वर्चस्व खड़ा हुआ था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् ने कुल चैदह ढोंगी संतों की एक सूचि मीडिया में जारी की है। इसमें जेल की हवा खा रहे बाबा रामपाल, गुरमीत राम रहीम, आसाराम, नारायण साईं व असीमानंद के अलावा निर्मल बाबा, राधे मां व अन्य ऐसे इच्छाधारी बाबा शामिल हैं, जो पिछले कुछ सालों में अपनी करनी के चलते विवादों में रहे हैं। गोल-गप्पा खिलाकर लोगों की हर समस्या का समाधान करने वाले निर्मल बाबा जैसे ढोंगी भी इस लिस्ट में शामिल हैं। महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ करना इन बाबाओं की दिनचर्याओं में शामिल था। लाज-शर्म की वजह से कुछ महिलाएं इन ढ़ोंगियों के खिलाफ अपना मुंह नहीं खोलती थी। इसी बात का फायदा ये बाबा उठाते थे।
     प्रतिष्ठित अखाड़ा परिषद की लंबी सूची में उल्लेखित दो नामों का विशेषकर उल्लेख करना चाहिए। पहले हैं बाबा रामपाल। उनके पूरे देश में लाखों की संख्या में अनुयायी है। सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद से अपने करियर की शुरुआत करने वाले रामपाल का भविष्य किसी अपराधी की भाँति खत्म हो जायेगा इसकी उम्मीद शायद उनके घरवालों ने भी नहीं की होगी। हत्या, बलवा और अन्य अपराधों में दोष-सिद्धि के लिए इन्हे अदालत द्वारा उम्र कैद ही सजा सुनायी जा चुकी है।
     दूसरे बाबा रहे 17 साल से साधु का वेश धारण कर चकमा दे रहे ब्रह्मगिरी। इन्हे यूपी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। हापुड़ और मथुरा पुलिस ने इस फर्जी बाबा को लूट के मामले के तहत हिरासत में लिया है। यह फर्जी बाबा मथुरा के पिलखुवा गांव के सिखेड़ा के शिव हरि मंदिर में साधु बनकर रह रहा था। फर्जी बाबा का असली नाम अजय शर्मा उर्फ ब्रह्मगिरि है। वह बाबूगढ़ क्षेत्र का निवासी है। पुलिस के मुताबिक, उसने मथुरा जिले के हाईवे थाना क्षेत्रों में साल 2005 में लूट की वारदात को अंजाम दिया था।
     यहां इतनी ध्यानार्थ एक बात और लिख दूं। ऐसा फर्जीवाड़ा, बल्कि अपराधी अंधविश्वास अन्य मजहबों में भी है। केवल सनातन धर्म से जुड़े ढोंगी इसीलिए कुख्यात है क्योंकि उसे उजागर करने वाले अभियान चलाने वाले बहुसंख्यक धर्मनिष्ठ हिंदुजन हैं। कठमुल्लों, पादरियों और अन्य आस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों को भी कानून के कटघरे में खड़े करने की आज अत्यधिक आवश्यकता है।
[लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. उपरोक्त उनके निजी विचार हैं]

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