दिल्ली वालों को बता दो कि हम भी आदमी ही हैं

जब संतों ने सुनी वनवासियों से कथा

श्याम गुप्त

संयोजक, एकल अभियान

1980 के दशक की बात थी। जनता पार्टी की सरकार डांवांडोल थी। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। मै उस समय उड़ीसा में था। उस समय उडीसा, झारखंड आदि इलाके में एक जोरदार आंदोलन हुआ। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बडा आंदोलन किया। ये आंदोलन कैसा था इसकी एक कहानी 1948 की है। देश आजाद हुआ था। नेहरू जी का पूरे देश में प्रवास हो रहा था। उनकी देश भर में जय जयकार हो रही थी। तब के मध्यप्रदेश और अब के छत्तीसगढ में एक जसपुर नाम की जगह है, वहां नेहरू जी सभा थी। उस सभा में आश्चर्य रूप से नेहरू जी को काला झंडा दिखाने वाले लोग खडे हैं। नेहरू जी बहुत जल्दी गुस्सा होते थे। लेकिन उस समय के मुख्यमंत्री ने उन्हें शांत किया। नेहरू जी ने कहा कि दूरा देश तो जय जय कार कर रहा ये लोग क्यों काला झंडा लिए खडे हैं। उन्होंने उन लोगों को बुलाया। पूछा कि आखिर ऐसा क्यों कर रहे हो। आपको क्या नाराजगी है। उन लोगों ने कहा कि आपने हिन्दुस्तान के दो टुकड़े किए, हिन्दुओं को मिला हिन्दुस्तान और मुस्लिमों को मिला पाकिस्तान। हम इसाईयों को चाहिए इसाइस्तान। वो आपने क्यों नहीं दिया। झारखंड मुक्ति मोर्चा की यह मांग सुनकर नेहरू जी ने कहाकि इसकी खोज होनी चाहिए। इसके लिए कमीशन बिठाया गया। संघ के अधिकारियों से बात हुई कि कमीशन को तथ्य कौन बताएगा। संघ के दो अधिकारियों को इसमें लगया गाया। जिस पर एक जज ने अपने अधिकारिक प्रपत्र में कहा की यह मिशन देश के विभाजन के लिए ही काम कर रहा है। जब उसका प्रकाशन हुआ एक भी प्रति नही बची सारी खरीद कर जला दी गई। संयोग से एक प्रति बची हुई थी, वही बाद में डॉक्यूमेंट बनी। उस झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के द्वारा 1980 के दशक में एक बहुत हिंसक आन्दोलन हुआ। उस समय भाऊ राव जी हमारे क्षेत्र प्रचारक थे। 1986 में एक बैठक गुमला में हो रही थी, उस समय वह जिला इसाई प्रभुत्व वाला जिला था। बैठक में संघ के लोगों ने भाऊराव जी से पूछा कि असम में हम कमजोर हैं, बंगाल में स्थिति अच्छी नही, पर बिहार में हम इतने कमजोर भी नही हैं।

हम संघ की शाखा चलातें रहें हम ये सब करते रहें और हमारे सामने भारत का विभाजन हो जाये। एक बार सीने पर पत्थर रख लिया 1948 में लेकिन बार बार यही झेलें कोई रास्ता बताइए। उस समय भाऊराव जी ने एक मंत्र दिया कि हिंदुस्तान की ताकत वो है जो जंगलो में रहता है, जो गांव में रहता है, उन लोगों के दिलों में एक आग जल रही है उसको बिना बुझाये इस देश का कोई कल्याण नही हो सकता। इसलिए वहां जाओ उनसे बात करो, उनके सुख दुःख में शामिल हो। अब सुख दुःख में कैसे शामिल हों, संयोग से इंद्रा जी के बाद राजीव जी प्रधानमंत्री बने। एक नौजवान प्रधानमंत्री देश को मिला था, उस समय हम जैसे नौजवान बड़े खुश थे की एक नौजवान मिला है। उनके बारे में कोई नकारात्मक विचार नही थे। संसद में एक बिल पास हुआ और उस बिल में था कि 10 साल में भारत में हर व्यक्ति को साक्षर बनाया जायेगा। बिल तो पास हो गया पर उसके बाद सरकारी लोग उनके पास गये कि आपने बिल तो पास कर दिया है, संकल्प तो ले लिया है पर हर 2 किमी पर एक प्राइमरी स्कूल है? यह उसके आंकड़े हैं कोई गरीब आदमी स्कूल क्यों आएगा? रास्ता क्या है? वह बोले बात तो सही है, तो उत्तर प्रदेश के राममूर्ति साहब को बुलाया गया। उनसे कहा गया कि बताओ कि यह गरीब समाज इनके बच्चे स्कूल क्यों आयें? अब यह थी चुनौती तो राममूर्ति साहब की एक रिपोर्ट 1986 में छपी थी ‘नॉन कॉमन एजुकेशन सिस्टम’ जिसका एक और नाम था ‘जॉयफुल एजुकेशन सिस्टम’ और उसका एक प्रोजेक्ट था ‘वन टीचर वन स्कूल’ और ये कोई नई बात नही थी। प्राचीन काल में भारत की शिक्षा पद्धति थी, उसी को उन्होंने भी कहा और दुनिया के बहुत से देशों में जैसे अमेरिका में जब बहुत अशिक्षा थी तब वहां भी इसी पद्धति को अपनाया गया था। वह इसे वन रूम स्कूल बोलते थे। प्रधानमंत्री जी ने उसी रिपोर्ट को मानते हुए कहा कि इसी पद्धति पर काम होगा। लेकिन भाऊराव जी की बात पर हम लोगों को विश्वास नही हुआ कि जो ये कह रहे हैं वो होगा कैसे? उधर 1986 में पोप भारत आये, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री की पत्नी कैथोलिक थीं इसलिए पोप को राजकीय सम्मान के साथ बुलाया गया था। पोप जब भारत के लिए वेटिकेन सिटी से चले तो पत्रकारों ने पूछा आप भारत क्यों जा रहे हैं? उन्होंने कहा कि भारत में करोड़ों आत्माएँ अन्धकार में हैं, उनको प्रकाश दिखाने जा रहा हूँ। उसके कुछ समय बाद उनका भारत में कार्यक्रम छपा, जिसमे पहला कार्यक्रम रांची के मोराबादी मैदान में एक जनसभा का था। जिसमे लिखा था की इस सभा में 1 लाख लोगों का धर्मपरिवर्तन होगा। इस खबर के आने के बाद सैकड़ो स्वंयसेवकों ने घर छोड़ दिए और गावं-गावं में जा कर उनको समझाया की तुमको वहां क्यों बुलाया जा रहा है? धर्म क्या होता है? हिन्दू क्या होता है? इसाई क्या होता है? और देखते देखते इतना उग्र आन्दोलन खड़ा हो गया कि रांची की कमिशनर ने बिहार सरकार और केंद्र की सरकार को सूचित किया की हम पोप की सुरक्षा नही कर सकते। लेकिन जैसे रिपोर्ट जाती थी वैसे जवाब आता था कि किसी भी प्रकार से कार्यक्रम करना है। वैसे ही फिर से रांची से कहा जाता था की बिलकुल नही हो सकता। बाद में यह निर्णय हुआ की पोप एयरपोर्ट में ही कुछ लोगों की सभा में बोल कर वापस जायेंगे। इस बात ने स्वयंसेवकों के मन में बहुत उत्साह भर दिया कि इतने दिनों में ही पोप को प्रधानमंत्री के अतिथि को वापस जाना पड़ा। मतलब वनवासियों से मिलो उनका विश्वास जीतो स्थिति सुधर जाएगी।

यहीं से एकल अभियान का जन्म हुआ। आज कोई भी अखबार उठा लो सुर्ख़ियों से लेकर अन्दर की ख़बरों तक 99 प्रतिशत ख़बरें व्यथित करने वाली होती हैं। इसका परिवर्तन कैसे होगा? इस प्रश्न का उत्तर है एकल अभियान। जब एकल अभियान शुरू हुआ तो लगभग 30 करोड लोग आभाव ग्रस्त थे। 400 गावं ऐसे थे जहां शिक्षा मुश्किल थी। यह ऐसे लोग थे जिनके द्वारा भारत का निर्माण होना था। भारत सरकार के आकड़ों के मुताबिक ढाई करोड़ लोगों ने देश की उन्नति के लिए अपनी जमीन दे दी। जिसे भारत सरकार ने देश की औद्योगिक प्रगति के लिए उनसे माँगा। जब उनकी जमीन छिनी जाती है तो तेल और कोयला निकलता है। जब उनकी जमीन डुबोई जाती है तो बिजली बनती है। पर उनके घरों में अँधेरा ही है। जब भी मैं उनके पास गया उन्होंने बस इतना ही कहा कि दिल्ली वालों को बता दो की हम भी आदमी ही हैं। हम बस इतना ही चाहते हैं कि वो हमको प्यार करें। शिक्षित होना भी उनकी मांग नही थी। यह हमारी मांग थी क्योंकि यह उनके लिए देश के लिए आवश्यक है। लेकिन जब हम लोगों ने काम शुरू किया, उस समय एक बात दिमाग में आई की बच्चा शिक्षित हो भी जायेगा तो सुखी कैसे रहेगा? 12 में से 10 महीने वो बुखार में है मलेरिया डाईरिया से पीड़ित है। उनके लिए जरुरी है स्वस्थ होना, तो एकल ने प्राथमिक शिक्षा के साथ आरोग्य शिक्षा जोड़ी। आरोग्य शिक्षा के बाद बात आई की बच्चा बच तो जायेगा पर भूखा रहेगा तो क्या फायदा? फिर हमने विकास शिक्षा की शुरुआत की जिसमें गाय का गोबर, गोमूत्र, केचुआ खाद आदि के उपयोग और व्यवसाय के बारे में उनको बताया। लेकिन यह सब हो जाने के बाद भी सवाल यह था की उनका सम्मान कैसे बचे? जिसे लूटने के लिए रावण अलग-अलग भेष में आ रहा है। जब गावंवालों से पूछा गया की आपका सबसे बड़ा दुशमन कौन है? तो गावं वालों ने सबसे बड़ा दुश्मन उस व्यापारी को बताया जो उनका शोषण करता है, हमारी आँखें खुल गई। इनसे कैसे निपटे? इस शिक्षा का नाम रखा जागरण शिक्षा, जब हमने संविधान में देखा तो गांव के लोगों के अधिकारों की लंबी सूची है। लेकिन गांव वालों को कौन बताएगा की तुम्हारा कौन सा अधिकार है, जाहिर है नेता तो बताएगा नही, उसका स्वार्थ जुड़ सकता है। कर्मचारी बताएगा नही। फिर हमने तय किया की इस संविधान को गावं गावं पहुचाएंगें। गावं वालों में जागरण के माध्यम से स्वाभिमान जगायेंगे।

गावों को शराब मुक्त बनाओं गरीबी नहीं रहेगी

जब मैं गावं गया तब पता चला की गावं को गरीब बनाने वाला दुशमन गावं के बहार नही गावं के अन्दर रहता है। उनके परिवार को नरक बनाने वाला दुश्मन बहार नही परिवार के भीतर रहता है। वह महिलओं से दुर्व्यहवार करने वाला दुशमन उनके पुरषों के हाँथ में रहता है, उसको शराब की बोतल कहते हैं। यह एक बहुत बड़ी बात है कि हिंदुस्तान के गावों को शराब मुक्त बनाओ, एक भी परिवार गरीबी रेखा से नीचे नही रहेगा। आखिर वह क्या कारण थे की गावों का नौजवान शराब की और रुख करता है? हमने इसका पता लगाने के लिए सर्वेक्षण कराये तो जो कारण आये, वह मन को ग्लानी से भर देने वाले थे। शहर के लोग काम से थककर जब आते हैं तो उनके पास मनोरंजन के कई साधन हैं। पर गावं का नौजवान जब हाड़ तोड़ मेहनत कर के आता है तो उसके पास क्या मनोरंजन का साधन है। इसका उपाय हमको अकबर बीरबल की कहानी में मिला। शराब के नशे के छोटा करना है तो उससे बड़ा नशा पैदा करो, और सबसे बड़ा नशा है भगवत भक्ति का नशा। शराब का नशा करने जा रहे युवक को भजन में लगा लो, नशा छूट जायेगा तो उसको पता चलेगा कि आर्थिक रूप से वह खुद सबल हो गया। दूसरा हर घर में तुलसी का पौधा लगवाना क्योंकि गावं में तुलसी को माँ मानते हैं। तुलसी का पौधा लगवाने में हम लोगों को पसीने आ गये। क्योंकि वो बोलते की माँ के सामने शराब पी कर कैसे जायेंगे। पानी कौन देगा और अगर सूख गईं तो पाप लगेगा। आखिरकार गावं में तुलसी चौराहा बनाने का तय हुआ। हर व्यक्ति का हफ्ते में एक दिन तय हुआ, अब कम से हफ्ते में एक दिन शराब के पैसे बचने लगे तो कम से कम 70-80 रूपए हफ्ते के बचने लगे। जिससे बच्चों के अच्छे कपडे आ गये। गावं में चर्चा शुरू हो गई कि तुलसी माँ की कृपा हो गई। इनके घर में देखो बच्चों के अच्छे कपडे आ गये।

जब संतों ने सुनी वनवासियों से कथा

अब संस्कार शिक्षा देने के लिए उसी गावं के लोगों को अयोध्या, वृन्दावन ला कर शिक्षा देने का काम किया। उस वक़्त नीची जाति के लोगों को व्यासपीठ पर बैठने का अधिकार नही था। जब पहली बार मैं यह प्रस्ताव लेकर अयोध्या गया, तो राम कृष्ण परमहंस ने सहर्ष स्वीकारा और बाकी संतों को भी साथ लिया। समापन के दिन ऐसा भी हुआ कि रामकृष्ण परमहंस समेत सारे संत जमीन पर बैठे हैं और यह वनवासी दबीकुचली जाति के लोग ज्ञानपीठ पर बैठ कर कथा कह रहे हैं। और इसका जो स्वाभिमान उन गावं वालों को हुआ उसको कहना मुशकिल है। उनके दीक्षित होने के बाद एक दिन उनमें से एक लड़की आई अनीता मैंने उससे पूछा कोई तकलीफ तो नही उसने कहा एक तकलीफ है। हम जब कथा कहते हैं तो लोग हमें प्रणाम करते हैं, इतना तो ठीक है पर हमारे माता पिता हमसे बड़ी उम्र के लोग हमारे पैर धो कर चरणामृत पिते हैं। यह अच्छा नहीं लगता आप उनको मना कर दीजिये आज जब कथा हो वह ऐसा ना करें। अगले दिन महिलाओं के सम्मलेन में मैंने जैसे ही भाषण दिया मुझे कर्ष और दूधों की कहानी याद आ गई। उन महिलाओं ने कहा आप दिल्ली से आये हैं ना, मैंने कहा हां क्या हो गया, तो उन्होंने कहा की हमारे यहाँ गावं में जब कोई वृन्दावन से आता है तो कृष्ण बन जाता है। और कृष्ण हमारे गावं में आयें और हम उनके पैर ना धोएं ये आप समझा रहे हैं हमको। एक संत थे उनकी कथा गोहाटी में हो रही थी मैंने उनसे यह कहा तो उनकी आँखों में आंसू आ गये उन्होंने कहा कि मैंने इतनी कथा कही है आज तक ऐसा प्रसंग मेरे सामने नही आया। तो मित्रों इस पंचमुखी शिक्षा से हमने गावं वालों का मन बनाया। यह सरकारी योजनायें, एन.जी.ओ विफल इसलिए हो रहे हैं क्योकि ये लोग उनके ऊपर लाद रहे हैं की क्या करो, उनका दिल नही जीत रहे। आज हम गर्व से कह सकते हैं कि 25 साल के एकल ने। जिसमे हम 1990 से लेकर 1999 तक तो झारखण्ड में प्रयोग ही करते रहे(1990 से पहले के आकड़े अनुपलब्ध हैं)। 2000 में हमारा आन्दोलन देशव्यापी बना। तो ये जो आकड़े हैं उनमें 15-16 लाख बच्चे पढ़ कर जा चुके हैं। आज 54,000 विद्यालयों में 15-16 लाख बच्चे पढ़ कर रहे हैं। 30 लाख बच्चों का एकल अभियान, हम सोचते थे बाकी स्कूलों की तरह यहाँ भी बच्चे आयेंगे पढ़ कर चले जायेंगे। यही होगा हमने अपनी परीक्षा कराइ यह देखने के लिए की हमारा बच्चा सामाजिक बदलाव का प्रतिनिधि बन सकता है कि नहीं। हमने बच्चों को कहा पहले एक पेड़ लगाओ धरती माँ को बचाओ। आप विश्वास करेंगे 2010 से यह अभियान शुरू हुआ और वह अभी तक 50-55 लाख पेड़ लगा चुके हैं, हर बच्चा हर साल 1 पेड़ लगता है। फिर दूसरा हमने प्रयोग किया मेरी पंचायत मेरा भारत उनको समझया की दिल्ली वाला भारत तुम्हारा नही है। यह सरकार तुम्हारी नही है गावं वाला भारत तुम्हारा है। हमने समितियां बनाई उनको समझाया और 30 लाख बच्चों ने अपने माँ-बाप, भाई-बहन को पंचायत की सदस्यता दिलवाई। हमारे पास ग्राम समिति में संख्या 30 लाख है यह हमारी सफलता है। उससे बड़ी सफलता एक और भी है, कि 60 हजार संपन्न समाज के लोगों ने एक-एक गावं गोद ले कर हमको इस लायक बनाया है।

एकल ने जलाई राष्ट्रवाद की अलख

हमने माताओं के साथ अभियान चलाया। मंजू जी ने घर घर जा कर माताओं से कहा की संक्रांति पर ब्राह्मणों को वस्त्र देने का रिवाज है। क्या यह जरुरी है की जो जाति से ब्राह्मण हो? जो गावं के लोग हैं वह भी मन से ब्राह्मण हैं। आज 1 लाख माताएँ संक्रांति पर करोड़ों रूपए का उपहार एकल के बच्चों को देतीं हैं। आज देश और विदेश में एकल अभियान ने अपनी पहचान बनाई है। लद्दाख के कारगिल के गावं में एक एकल बस्ती है, जिसने कारगिल युद्ध में सहायत की। इसी तरह कन्याकुमारी में रामसेतु को बचाने का अभियान चलाया। आज जम्मू-कश्मीर में भाजपा सरकार में है, किसी भाजपा के व्यक्ति को बुला के पूछो कि इसका श्रेय किसे है, हर व्यक्ति बताएगा गावं के एकल विद्यालय को। अब तक हम जिस समाज में काम कर रहे थे वह ये मानते थे की जाति से बड़ा कुछ नही। उनमें से कुछ लोगों को हमने समझाने की कोशिश की, कि जाति से बड़ा देश है। आज जो मोदी जी बैठे हैं, उनमे थोड़ा योगदान उन बच्चों का भी हैं, जिन्होंने 4 करोड़ मतदाताओं से संपर्क कर के 2 करोड़ को भाजपा की तरफ मोड़ा। हमने नगरवासी वनवासी दोनों को आपस में प्यार करना सिखाया। उनके बीच समरसता बनाई।

प्रकृति संपन्न भारत आईसीयू में क्यों?

भारत के पास प्राकृतिक रूप से वह सब कुछ है जो संपन्न होने के लिए चाहिए। फिर भी भारत आईसीयू में भरती क्यों है? क्योंकि जो किसान उत्पादक है, मालिक है उसको हमने नौकर बना दिया है। आज 42 प्रतिशत किसान गावं छोड़ चुका है। सरकार भी यही समझा रही है। आज गावं के 100 पढ़े लिखे नौजवान में से 80 शहर आ गये, 20 ही गावं में हैं, और एकल के पढ़े 100 नौजवानों में से 80 गावं में हैं। उनको यह सिखाया की गावं में रह कर इतना कमाओ कि नौकरी करने वाले लोग शर्मा जाएँ। सरकार ने कौन सी शिक्षा सिखाई की पढो खूब पढो मिलेगा क्या एक सिर्टिफिकेट। जिसे लेकर नौकरी खोजो हमने सिखाया स्वभिमान के साथ अपने गावं में रह कर उसका उत्पादन बढाओ। हमने तय किया कि आठवीं दसवीं तक पढ़ाएंगे तो उसे 5000 महीना कमाने लायक बनायेंगे, और उसके बाद 50 हजार रुपया महीना कमाने लायक बनायेंगे। आज नक्सलवाद जिससे हर कोई चिंतित है उसका समाधान सिर्फ एकल के पास है। क्योंकि इसके लिए उनका दिल जीतना होगा। मित्रों हम 25 वर्ष के हो गए, और 10-15 साल में हम हिंदुस्तान को दिखाएंगे कि हिंदुस्तान को बड़ा बनाने का तरीका क्या है? अब हम 2019 में उन गावं वालों को दिल्ली लायेंगे और दिखायेंगे की धरती की ताकत क्या होती है?

 

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