कांग्रेस के भीतर ही भरोसा खो रहे राहुल

रामबहादुर राय

कांग्रेस की कमान किसके हाथ में है? अगर किसी को यह भ्रम है कि राहुल गांधी कांग्रेस को चला रहे हैं तो उसे दिल्ली की घटना को ध्यान से देखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले कांग्रेस ने आप का समर्थन नहीं किया। शीला दीक्षित ने जो लाइन ली, उसी पर कांग्रेस चली। क्या शीला दीक्षित ने राहुल गांधी से बात की?

अगर ऐसा हुआ होता तो कांग्रेस की लाइन वह नहीं होती जो सामने आई। कांग्रेस ने शीला दीक्षित के अनुभव से अपनी लाइन तय की। साफ कहा कि दिल्ली न तो पूरी तरह राज्य है और न भविष्य में भी ऐसा संभव है।

अरविंद केजरीवाल और आप इस पर ही दांव खेल रहे हैं कि वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाकर ही मानेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्याख्या कर दी है। संविधान की जो व्यवस्था है,उसे सुप्रीम कोर्ट ने दोहरा दिया है। निशान लगाकर बता दिया है कि किसकी क्या सीमा रेखा है। राहुल गांधी कोई सीमा रेखा नहीं मानते।

सुप्रीम  कोर्ट के फैसले से पहले कांग्रेस ने आप का समर्थन नहीं किया। शीला दीक्षित ने जो लाइन ली, उसी पर कांग्रेस चली। क्या शीला दीक्षित ने राहुल गांधी से बात की?”

इस मायने में वे अरविंद केजरीवाल जैसे ही हैं। इसके बावजूद कांग्रेस ने दिल्ली में जो लाइन ली, वह सीमा रेखा को बताती है। अरविंद केजरीवाल को नकारती है। जाहिर है कि दिल्ली में राहुल गांधी की नहीं, सोनिया गांधी की चली। निरंकुशता और अराजकता के बीच लोकतंत्र की बस्ती को मान्यता मिली।

इससे साफ हुआ है कि जहां विवाद है वहां राहुल गांधी का नेतृत्व काम का नहीं है। वहां तो सोनिया गांधी ही कांग्रेस के नेतृत्व के स्थान पर बनी हुई हैं।

यह केवल कांग्रेस के संगठनात्मक और नीतिगत मामलों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका संबंध भविष्य की राजनीति से भी है। पिछले दिनों अनेक ऐसे अवसर आए जब राहुल गांधी को कांग्रेस ने नकारा।

जहां विवाद है वहां राहुल गांधी का नेतृत्व काम का नहीं है। वहां तो सोनिया गांधी ही कांग्रेस के नेतृत्व के स्थान पर बनी हुई हैं।

किसी पार्टी अध्यक्ष के लिए इससे बड़ा अपमान और कुछ नहीं हो सकता। लोगों की निगाह में यह अपमान है। राहुल गांधी उसे देखते हैं, सहते हैं और चुप रह जाते हैं तो इसे राजनीति में सहनशीलता, उदारता और बड़प्पन का लक्षण नहीं माना जाएगा।

इन सद्गुणों का इसे प्रमाण नहीं माना जाएगा। यह माना जाएगा कि राहुल गांधी अपनी लघुता से परिचित हो रहे हैं। बड़े होने का पाखंड पाल रहे हैं। नेतृत्व के दावे का खुद ही मजाक उड़ा रहे हैं।

राहुल गांधी अपने पाखंड को खुद समझ रहे हैं या नहीं, वे ही जानते हैं। जो सबके सामने प्रकट है, उसके दो रूप हैं। पहला कि क्या कांग्रेस ने उनके नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है? केवल दिल्ली की ही बात नहीं है, ज्यादातर राज्यों में जहां कांग्रेस, भाजपा से सीधे मुकाबले में है वहां राहुल गांधी की नहीं चल रही है।

उन राज्यों के नेता अपनी चला रहे हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के उदाहरण सामने हैं। मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह की राजनीतिक विरासत पर हमला एक ऐसा उदाहरण है जो राहुल गांधी के नेतृत्व पर बड़ा प्रश्न खड़ा करता है।

उन्हें यह मालूम है कि ऐसा कौन कर रहा है? फिर भी वे तमाशा देख रहे हैं। ऐसा ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हो रहा है। दूसरे रूप का संबंध विपक्ष की राजनीति से है।

 

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