केरल से चेतावनी : हाथी गलियारा बने नेपाल सीमा पर !!

के .विक्रम रावआखिरकार अरिकंपन पकड़ लिया गया। मगर बेहोश कर दिए जाने के बाद ही। अब केरल से तमिलनाडू सीमावर्ती कुंबुम घाटी के पास कलक्काड राष्ट्रीय बाघ संरक्षण क्षेत्र में वह रखा गया है। अरिकंपन एक जंगली हाथी है जिसकी दोनों तटवर्ती दक्षिणी राज्यों, केरल तथा तमिलनाडु की सरकारें (मार्क्सवादी और द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम) गत कई सप्ताहों से पीछा कर रही है। यह गजराज सबको झांसा देकर जगहें बदल देता है। याद आया किस्सा चंदन तस्कर कुसा मुनिस्वामी वीरप्पन का जो डाकू और आतंकी था। उसको कर्नाटक और तमिलनाडु के सशस्त्र बल पकड़ने में सालों तक नाकारा रहे। इस अपराधी ने 180 नागरिकों की हत्या की थी। करोड़ों रुपए के चंदन वृक्ष काट डाले थे। वह श्रीलंका के लिट्टे नेता प्रभाकरन का प्रशंसक था। वीरप्पन को तमिलनाडु पुलिस ने जंगल में घेरकर भून दिया था (18 अक्टूबर 2004)। तब कहीं अंतर्राज्यीय आतंक का खात्मा हुआ था।

पर अरिकंपन के लिए जीवित पकड़ने के प्रयास निरंतर चलते रहे। हालांकि इस दरम्यान इस हिंसक हाथी ने ग्यारह इंसानों को कुचल कर मार डाला, कई राशन की दुकाने तोड़ डाली, बस्तियों में हंगामा बरपा। अपने नाम को वह सार्थक करता रहा। मलयालम मे अरी मतलब चावल और कंपन मतलब हाथी। चावल खाने के लिए वह कई राशन की दुकानों को वह तोड़ चुका है। मगर इडुक्की जिले में उसके कई फैन हैं। हिल स्टेशन अन्नकारा में ऑटो चालकों के एक समूह ने अरिकंपन फैंस एसोसिएशन का गठन किया है। यहीं पर हाथी को बेहोश करके इंसानों की बस्ती से दूर जंगल में छोड़ा गया था। इसके लिए वन विभाग के अधिकारियों के साथ बड़ी संख्या में पुलिस और स्थानीय लोगों को लंबी मशक्कत करनी पड़ी थी।

 हाथी का ही एक और हादसा था। तब धर्मराज युधिष्ठिर को असत्य का आचरण करना पड़ा था। महाभारत में अश्वत्थामा नामक हाथी को महाबली भीम द्वारा मारे जाने के बाद कौरव सेनापति गुरु द्रोणाचार्य की द्रुपदपुत्र द्वारा हत्या तभी संभव हो पाई थी। अब शायद ही कोई हाथी इतना चर्चित रहा हो जितना अरिकंपन ! संभवतः इतिहास में झेलम तट पर महाराजा पोरस के हाथियों का एक जिक्र महत्वपूर्ण है। तब सिकंदर की धनुर्धारियों ने सूंड पर बाण मारकर भगदड़ मचा दी थी। नतीजन हाथी सेना ने अपने ही पैदल सेना को कुचल डाला था।

इतनी हानि अरिकंपन ने जन-धन की तो नहीं की, पर वह दक्षिण भारतीय मीडिया पर तीन महीनों से छाया रहा। शासकीय आदेश था कि उसका वध न किया जाए। तमिलनाडु के द्रमुक सरकार के वन मंत्री डॉ. मायावन मतिवेंथन, जो पेशे से चिकित्सक हैं, ने स्वयं निश्चित किया कि इस हाथी को सही सलामत वन विचरण हेतु मुक्त रखा जाए। मारा न जाए। तमिलनाडु शासन में अपर मुख्य सचिव सुप्रिया साहू (पूर्व महानिदेशक : दूरदर्शन) के भी ऐसे ही निर्देश थे।

 शायद इन्हीं अहिंसक प्रयासों का परिणाम था कि इस चावल-भक्षी गजराज को निहायत सावधानी और सहृदयता से कल (5 जून 2023) पकड़ा जा सका। वन पशु चिकित्सा सर्जन और वन विभाग के अधिकारियों की एक टीम द्वारा तमिलनाडु के कुंबुम ईस्ट रेंज में सोमवार के शुरुआती घंटों में जंगली हाथी अरिकंपन को सुरक्षित रूप से ट्रैंकुलाइज (बेसुध) किया गया। मदद के लिए तीन कुमकी हाथियों को भी बुलाया था। इन कुमकी हाथियों को प्रशिक्षित किया जाता है ताकि जंगली हाथियों को पकड़ने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सके। अब अरिकंपन एक उपयुक्त स्थान में स्थानांतरित किया गया जहां तमिलनाडु वन विभाग उसकी निगरानी कर रहा है। कैद होने के पूर्व अरिकंपन, तमिलनाडु के जंगल में प्रवेश करने के बाद, मेगामलाई लोअर कैंप, कंबम, सुरुलापट्टी, यानाई गजम और कूथनैची वन रेंज में घूम रहा था। उसे बेहोश करने के बाद एक पशु चिकित्सा दल ने यह देखने के लिए कि क्या उसे कोई अन्य चोट लगी है, अतः अरिकंपन के वाईटल्स की जाँच की। उसके बाद उसे एक विशेष वाहन में लाद दिया गया। जिस रास्ते से अरिकंपन को ले जाया गया, उस पर बिजली की आपूर्ति बंद कर दी गई। तमिलनाडु के वन अधिकारियों ने कंबम क्षेत्र में पिछले सप्ताह के बाद ही इस जंगली हाथी को घने जंगल क्षेत्र में छोड़ने की योजना पहले ही बना ली थी। नवीन सूचना के अनुसार अरिकंपन को कलक्काड टाइगर रिजर्व में रखा गया है। यह कलक्काड़ मुंडनतुरई टाइगर रिजर्व तिरुनेलवेली जिले के दक्षिणी पश्चिमी घाट में (तमिलनाडु) के कन्याकुमारी जिले में है। यह इस राज्य का दूसरा सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। केवल इरोड का सत्यमंगलम वन्यजीव अभयारण्य ही इससे बड़ा है। यह वन्यजीव अभयारण्य (251 वर्ग किमी) और मुंडनतुरई वन्यजीव अभयारण्य (567 वर्ग किमी) की स्थापना 1962 में हुई थी। इन दोनों को मिलाकर वीरपुली और किलामलाई रिजर्व फॉरेस्ट के कुछ हिस्सों को जोड़ा गया था। 

अरिकंपन को बाघ संरक्षण वन मे भेजने का वहां की जनजाति “कानी” के लोगों ने विरोध किया था। ये आदिवासी कानी पारंपरिक रूप से खानाबदोश समुदाय हैं, जो अब केरल और तमिलनाडु के पश्चिमी घाटों के जंगलों में मुख्य रूप से बसे हैं। कानी ज्यादातर त्रिवेंद्रम और कोल्लम जिलों के निवासी हैं। शहरीकरण, तेजी से औद्योगीकरण और अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण यह आदिवासी परंपराएं तेजी से लुप्त हो रही हैं। जनजातीय ज्ञान के उचित शोधकार्य का अभाव है। कानी जनजाति के पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता है।

 यूं इस मदमस्त गजराज अरिकंपन द्वारा दक्षिण भारत में हुए नुकसान के संदर्भ में उत्तर प्रदेश से प्रचारित हाथी गलियारा पर शीघ्रकार्य होना चाहिए। नेपाल और भारत की सीमा पर ऐसी वीथिका रूप ले रही है। दोनों पड़ोसी राष्ट्रों के वनाधिकारी पीलीभीत में वार्ता कर चुके हैं। पिछले वर्ष 2022 में योगी सरकार ने एलिफेंट कॉरिडोर को मंजूरी दी थी। इसके बाद अब इसे विकसित करने की प्रक्रिया होनी है। इसमें नेपाल के शुक्लाफांटा का भी कुछ भाग पीलीभीत टाइगर रिजर्व से जुड़ा रहेगा। वन प्रबंधन के अंतर्गत हाथी गलियारा की व्यवस्था को लेकर रणनीति बननी है। अक्सर नेपाल क्षेत्र के हाथी भारतीय क्षेत्र में आते जाते हैं। बचाव आवश्यक हो गया है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *