बीसवीं सदी और भारतीय जलमार्ग

ऋषिराज सिंह

भाप का इंजन आने से पहले भारत ही नहीं पूरी दुनिया में जल परिवहन ही यात्रा और माल ढुलाई का प्रमुख माध्यम था। कम दूरी की यात्रा और कम सामान को ले आने-जाने में तो लोग घोड़े,खच्चर आदि का उपयोग करते थे, लेकिन नदियों को नाव से ही पार किया जाता था। 19वीं सदी से लेकर 20वीं सदी के आखिर तक दुनिया भर में जल परिवहन की निर्णायक भूमिका थी। रेलमार्ग के उदय के बाद जलमार्गों को उपेक्षित कर दिया गया। साथ ही मोटर वाहनों के विस्तार से भी भारत में जल परिवहन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

20वीं सदी में असम, गोवा, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य तटीय क्षेत्रों में ज्यादातर जल परिवहन का उपयोग किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे यहां भी नगण्य स्तर पर पहुंचा दिया गया। जल परिवहन किसी भी देश को सबसे सस्ता यातायात प्रदान करता है। जल परिवहन के सस्ता होने का कारण भी है। कारण साफ है, जहां सड़क परिवहन और रेल परिवहन के लिए सड़क और रेलमार्ग बनाने पर बड़ा निवेश करना पड़ता है, जबकि जल परिवहन में जलमार्ग प्रकृति उपहार स्वरूप हमें देती है। हमारे देश में आंतरिक और सामुद्रिक जल परिवहन का इस्तेमाल होता है।

इतनी विशेषताओं के बावजूद लंबे समय तक देश में जलमार्गों एव जल परिवहन की उपेक्षा की गयी। आजादी के बाद  जल परिवहन के फायदों को देखते हुए इस क्षेत्र के क्रमिक विकास की आवश्यकता महसूस की गई। राष्ट्रीय परिवहन नीति (1980) की अनुशंसा पर अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और विनियमन हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण का वर्ष 1986 में गठन किया गया। प्राधिकरण ने कुछ राष्ट्रीय जलमार्गों की घोषणा की। साथ ही इन राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास को गति प्रदान किया।

इस कुछ वर्षों में ईंधन की कम खपत करने, पर्यानुकूल और सस्ते परिवहन के साधन के कारण अंतर्देशीय जल परिवहन के जरिए कार्गो ढुलाई का रुझान काफी बढ़ा है। साथ ही सरकार ने भी इस क्षेत्र में विशेष प्रयास किए। इसमें सरकार के ‘जलमार्ग विकास परियोजना’ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके अंतर्गत इलाहाबाद एवं हल्दिया के बीच (राष्ट्रीय जलमार्ग-1) पर मार्च, 2016 में कार्य आरंभ हुआ। मार्च, 2016 में हल्दिया से इलाहाबाद के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग-1 की 1620 किलोमीटर दूरी को व्यापारिक उद्देश्य से सुगम बनाने हेतु विश्व बैंक के आर्थिक सहयोग वाली ‘जलमार्ग विकास योजना’ पर कार्य शुरू हो चुका है।

इस योजना के तहत इलाहाबाद से हल्दिया के बीच 1620 किलोमीटर लंबा जलमार्ग विकसित किया जाना है। इससे इस मार्ग पर कम से कम 1500-2000 टन तक के भार वाले पोत चल सकेंगे। इस परियोजना का कार्यान्वयन भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण कर रहा है। परियोजना को छह वर्षों के अंदर पूरा किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसका विस्तार हल्दिया-वाराणसी के मध्य तक है। योजना के अंतर्गत नदी परिवहन तकनीक को विकसित करने, नदी परिरक्षण तथा संरक्षण, संरचनात्मक सुधार, आधुनिक नदी सूचना प्रणाली (आरआईएस), डिजिटल जीपीएस, रात्रि जलपोत सुविधाएं एवं चैनल अंकन प्रणाली, फरक्का में नवीन नौवहन ताले का निर्माण शामिल है।

रेल और सड़क संपर्क के साथ मल्टीमॉडल र्टिमनल का निर्माण हल्दिया, वाराणसी एवं साहिबगंज में किया जाएगा। वर्तमान में देश में पांच राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। जिसमें  इलाहाबाद से हल्दिया तक (1620 किमी) गंगा-भागीरथी-हुगली नदी के हिस्से को वर्ष 1986 में राष्ट्रीय जलमार्ग-1 घोषित किया गया। सदिया से धुबरी तक (891 किमी.) ब्रह्मपुत्र नदी को वर्ष 1988 में राष्ट्रीय जलमार्ग-2 घोषित किया गया। चम्पाकारा और उद्योग मंडल कैनाल सहित कोल्लम से कोट्टापुरम तक (205 किमी.) पश्चिम तट कैनाल को वर्ष 1993 में राष्ट्रीय जलमार्ग-3 घोषित किया गया।

कृष्णा नदी का वजीराबाद-विजयवाड़ा प्रखंड और गोदावरी नदी का भद्रचलम-राजामुंदरी प्रखंड तथा कालूवैली टैंक एवं कैनालो का काकीनाड़ा-पुडुचेरी प्रखंड राष्ट्रीय जलमार्ग-4 (1095 किमी.) वर्ष 2008 में घोषित किया गया। ब्राह्मणी नदी का तलचर-धमरा प्रखंड, पूर्व तट कैनाल के जियोनरवली-चरबतिया प्रखंड, मताई नदी के चरबतिया-धमरा प्रखंड और महानदी डेल्टा नदियों का मंगलगढ़ी पारादीप प्रखंड राष्ट्रीय जलमार्ग-5 (623 किमी) वर्ष 2008 में घोषित किया गया।

साल 1987 में केन्द्रीय अन्तर्देशीय जल परिवहन निगम की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र के एक संस्थान के रूप में की गयी। इसका मुख्यालय कोलकाता में हैं। इसके तहत बांग्लादेश होकर कोलकाता तथा असम के बीच एवं इल्दिया-पटना जलमार्ग की परिवहन सेवाओं का प्रबन्धन किया जाता है।

सामुद्रिक जल मार्ग की दृष्टि से भारत का पूरा तटीय भाग काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। देश की मुख्य भूमि की 5600 किमी तटरेखा पर 11 बड़े तथा 139 छोटे बंदरगाह हैं। बड़े बंदरगाहों का नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है। छोटे एवं मझोले बंदरगाहों का प्रबंधन राज्य सरकारों के पास रहता है। बन्दरगाहों पर समुद्री जहाजों के रुकने, ईंधन लेने तथा समानों को चढ़ाने-उतराने का कार्य किया जाता है, इसलिए इनका विकास सागरतटीय क्रीकों, लैगूनों, छोटी खाडि़यों, नदियों की तलहटी आदि स्थानों पर होता है। ये प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों प्रकार के हो सकते हैं। हमारे देश में पूर्वी समुद्र तट पर तूतीकोरिन, चेन्नई, विशाखापत्तनम्, पारादीप, कोलकाता, हल्दिया जैसे बड़े बन्दरगाह हैं। इसी प्रकार पश्चिमी तट पर कांडला, मुंबई, न्हावाशेवा, न्यू  मंगलौर, कोचीन और मर्मागोवा को शामिल किया जाता है।

भारत सरकार के भूतल परिवहन मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के मुताबिक देश में 10 नदी मार्ग ऐसे हैं, जहां साल भर पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध रहता है। ऐसे नदी मार्गो को ही राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है। ऐसी नदी घाटियां गोवा, महानदी, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, ताप्ती तथा पश्चिमी तट एवं सुन्दर वन क्षेत्र में स्थित हैं। राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास एवं रख रखाव का काम इनलैण्ड वाटरवेज अथॉरिटी ऑफ इण्डिया का होता है। देश के प्रमुख बन्दरगाहों, छोटे बन्दरगाहों, गोदियों, जहाजरानी बन्दरगाहों, नौ-सेना आदि के रेख-रखाव तथा उनकी तलहटी की सफाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मार्च, 1976 में ड्रेजिंग कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना की गयी, जिसने से अपनी व्यावसायिक गतिविधियां प्रारम्भ की।

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