पाकिस्तान का भारत विरोध

प्रज्ञा संस्थानफौज और हुकूमत ने पाकिस्तान के आमजन को तरह-तरह से बरगला रखा है। वहां के शिक्षण संस्थान नई पीढ़ी के मन में भारत के प्रति जहर भरने का अभियान चला रहे हैं। नतीजतन, एक गरीब देश लगातार बर्बादी के गर्त में डूबता जा रहा है। पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकी हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप भारत सरकार ने पाकिस्तान को दंडित करने के लिए उसके सैन्य ठिकानों पर हमला करने सहित कई कदम उठाए, जिनमें सिंधु जल संधि निलंबित करना भी शामिल है। इस संधि के तहत भारत से होकर जाने वाली छह नदियों से पाकिस्तान की खेती-बाड़ी के लिए सिंचाई, पनबिजली एवं पेयजल की बहुत बड़ी जरूरत पूरी होती है। इस व्यवस्था में कोई व्यवधान पाकिस्तान की आम अवाम को बदहाल कर देगा, इसमें कोई शक नहीं है। कई लोग इसे आम पाकिस्तानी, जिसकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका पाक प्रायोजित आतंकवाद के फैलाने में नहीं है, पर अत्याचार करना भी बता रहे हैं। लेकिन, पाकिस्तान की जनता इतनी मासूम नहीं है कि उसे गुनहगार समझा ही न जाए! अधिकांश पाकिस्तानियों की जाहिल और नापाक जेहनियत भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के दौरान पाकिस्तान की हार की स्थिति में साफ तौर पर उभर कर सामने आ जाती है। पाकिस्तानियों की भारत विरोधी मानसिकता, जो निस्संदेह हिंदू विरोधी भी है, को वहां के सत्ताधीशों के निर्देशन में उनके समाज ने गढ़ा है।

 पाकिस्तान बनने से लेकर अब तक कई पीढ़ियां आईं-गईं, लेकिन पाकिस्तानी दादा-पोता और नाना-नाती के सोचने का तरीका लगभग एक समान है। दादा-नाना गुजर गए, लेकिन उनके विचार नहीं मर सके। शरीर बदल कर नाती-पोते के माथे पर सवार हो गए। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि पाकिस्तान के स्कूलों में बच्चों के सामने भारत को शत्रु देश के रूप में प्रस्तुत करने की परंपरा बदस्तूर आज तक चालू है। विभाजन की कड़वी कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनता आया वहां का जनसामान्य घृणा के साथ भारत को देखने के लिए मजबूर हो जाता है। एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान को गढ़ने की कमजोर कोशिशों ने वहां के पूरे सामाजिक माहौल को दूषित कर रखा है। यह सर्वज्ञात तथ्य है कि पाकिस्तान का निर्माण हिंदू-मुस्लिम हितों के कथित टकराव की बुनियाद पर किया गया था। अविभाजित भारत के पंजाब में व्यापार पर हिंदू कारोबारियों का दबदबा था, जिसे इस तरह प्रचारित किया गया कि यदि अलग देश बन जाए तो मुस्लिम कारोबारियों को आगे बढ़ने के लिए प्रतिस्पर्धा मुक्त खुला मैदान मिलेगा।

इसी तरह राजनीति में सक्रिय मुस्लिमों को समझाया गया कि हिंदुओं की बहुसंख्यक आबादी के होते चुनावी राजनीति में उनका भविष्य उज्ज्वल नहीं है। अधिकांश जनता ऐसा नहीं सोचती थी। जनसामान्य के स्तर पर विभाजन का विचार बहुत गहरे तक पैठा नहीं था। ऐसी स्थिति का आकलन करके हताशा में मुस्लिम लीग ने जनता को बांटने के लिए दंगे कराए। लीग का एजेंडा सफल हो गया। भारत से अलग होकर एक स्वतंत्र देश के रूप में वजूद में आए पाकिस्तान की सारी कथित समस्याएं अगले एक-दो दशक में खत्म हो जानी चाहिए थीं, लेकिन यह नहीं हो सका। पाकिस्तान की फौज और मौलवियों ने ऐसी कोई जमीन तैयार नहीं होने दी, जो वहां की जनता को जहालत, गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और बीमारी से उबार कर भौतिक प्रगति की राह पर ले जा सके। पाकिस्तान हिंदू विरोध से जन्मा हुआ राष्ट्र था। यानी पाकिस्तान को बनाने और चलाने वालों ने अपने निजी हितों को साधने के लिए एक लुटेरे समूह को बनने दिया, जो कमजोर, गरीब एवं निम्न मध्यमवर्गीय जनता को जमकर लूट रहा है। इस प्रक्रिया में उपजने वाले जनता के विरोध और असंतोष को संभालने के लिए उन्होंने छद्म राष्ट्रवाद यानी हिंदू विरोध पर आधारित भारत विरोधी भावना की खेती भी चालू कर दी।

जब कोई देश इतनी नकारात्मक सोच के साथ संचालित हो रहा हो, तो भारत जैसा उसका पड़ोसी देश सुकून से भला कैसे रह सकता है! पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें गहरी न होने देने के लिए निर्विवाद रूप से सेना और उसके  अधिकारियों की महत्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं। पाकिस्तानी जनता के औपचारिक शिक्षण केंद्र यानी स्कूल-कॉलेजों के दूषित पाठ्यक्रम बच्चों के दिमाग में जो जहर बोते हैं, उससे वहां की फौज का काम बेहद आसान हो जाता है। पाकिस्तान द्वारा अपने हथियारों, जैसे मिसाइल का नाम बाबर, गौरी, गजनवी, अब्दाली रखे जाने को इसी दूषित मानसिकता के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। ये ऐसे लोगों के नाम हैं, जिन्होंने अविभाजित भारत की अस्मिता को रौंदा। पाकिस्तानी शिक्षण संस्थानों में वहां के नागरिकों को यह बात समझाने-बताने की कोई कोशिश नहीं की जाती कि उक्त हमलावर हमारी मिट्टी के नहीं थे। उन्होंने बड़े पैमाने पर कत्लेआम मचाया, संपत्ति लूटी, महिलाओं के साथ बलात्कार किए, जबरिया हिंदुओं-सिखों का धर्मांतरण कराकर उन्हें मुसलमान बनाया। यह नहीं समझाया-सिखाया जाता कि भारतीय उपमहाद्वीप के सभी वाशिंदों के पूर्वज हिंदू थे। और, आज जो मुसलमान हैं, उनमें से अधिकांश परिस्थितियों वश मुसलमान बने हैं।

पाकिस्तान में अवाम को यह नहीं बताया जाता कि उसे इंडोनेशिया की संस्कृति की तरह अपनी मिट्टी से मोहब्बत करनी चाहिए। यह नहीं बताया जाता कि मीर कासिम पहला पाकिस्तानी न होकर एक धर्मांध हमलावर था। यह भी नहीं बताया जाता कि पाकिस्तान 1965 एवं 1971 के युद्ध में भारत से बुरी तरह पराजित हो चुका है और युद्ध किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकालता। एक गरीब मुल्क को हथियारों की दौड़ का बोझ नहीं उठाना चाहिए। पाकिस्तान को यह समझने की जरूरत है कि इस्लाम आधारित द्विराष्ट्र का सिद्धांत बांग्लादेश के बनते विफल हो चुका है। इस चुके हुए सिद्धांत के बल पर बलूचिस्तान एवं खैबर पख्तूनख्वा को पाकिस्तान के साथ बांधकर नहीं रखा जा सकता। कुल मिलाकर, पाकिस्तान में स्वतंत्र, तार्किक, प्रगतिशील, वैज्ञानिक सोच और संस्कारों को पनपने देने का कोई संस्थागत प्रयास नहीं दिखता। इसी वजह से 1947 से लेकर अब तक इस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। आज की इस वैश्विक दुनिया में इंटरनेट जैसे अनौपचारिक शिक्षण के कई माध्यम पाकिस्तान में मौजूद हैं।

पाकिस्तान के नागरिक देख सकते हैं कि उनके देश और शेष दुनिया में अंतर की वजहें क्या-क्या हैं? उससे अलग हुआ बांग्लादेश और पड़ोसी भारत हर तरह से श्रेष्ठ क्यों हैं? लेकिन थोड़े अपवादों को छोड़कर पाकिस्तान में ऐसे तुलनात्मक विश्लेषण और जीवन की मूलभूत सुविधाओं तक आम जनता की पहुंच के तरीकों की बेहतरी से जुड़े प्रश्नों पर विचार नहीं किया जाता। आज सोशल मीडिया पर आम पाकिस्तानी अवाम की मंशा देखकर आप समझ सकते हैं कि घृणा का जहर कितनी गहराई तक उन्हें जकड़े हुए है। कुछ पढे़-लिखे युवा जरूर पाकिस्तान की सच्चाई से अवगत हैं और हालात में बदलाव लाने के लिए अपने स्तर पर अवाम को जागरूक भी कर रहे हैं। लेकिन, पाकिस्तान की लगभग 25 करोड़ आबादी के बीच उनके प्रयासों की अपनी सीमा है। ऐसे में, भारत द्वारा की गई वाटर स्ट्राइक निश्चय ही आम पाकिस्तानियों को अपने हितों की पहचान के लिए अनौपचारिक ढंग से शिक्षित करने का सामर्थ्य रखती है। पाकिस्तानी पंजाबियों को एहसास कराया जाना जरूरी है कि उनके मौन ने पाकिस्तान की सेना और उसकी कठपुतली सरकार को उच्छृंखल बना दिया है। उन्हें सही और गलत का भेद पता लगना ही चाहिए।

वाटर स्ट्राइक से जब पाकिस्तानी पंजाब की स्थिति बदतर होने लगेगी तो बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, सिंध एवं पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे जनांदोलन की भांति वहां की जनता सड़कों पर निकल कर अपनी सरकार के खिलाफ खड़ी हो सकती है। सरकार और सेना, जिनमें पाकिस्तानी पंजाबियों का वर्चस्व है, पर भारत से संबंध अच्छे करने के लिए दबाव बना सकती है। और, आतंकियों की संरक्षक एवं पाकिस्तान की असली दुश्मन सेना की चौहद्दी तय कर सकती है। पंजाब, जो अब तक अलगाववादियों की चपेट में नहीं आया है, की स्थिति जब जनांदोलन के प्रभाव वाली हो जाएगी तो पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान की आधारशिला खतरे में पड़ जाएगी। पाकिस्तान के भाग्य विधाताओं को उसकी नई पहचान के साथ दुनिया में कदम रखना पड़ेगा। वह पहचान एकीकृत पाकिस्तान की भी हो सकती है अथवा विखंडित पाकिस्तान की। 

पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें गहरी न होने देने के लिए निर्विवाद रूप से सेना और उसके अधिकारियों की महत्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं। वहां के शिक्षण केंद्र यानी स्कूल-कॉलेजों के दूषित पाठ्यक्रम बच्चों के दिमाग में जो जहर बोते हैं, उससे फौज का काम बेहद आसान हो जाता है।

( साभार युगवार्ता) 

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