प्रचुर प्राकृतिक संपदा

अनादिकाल से भारत भूमि एवं भारतीय सभ्यता परमात्मा की विशिष्ट कृपा की पात्र रही है। यह राष्ट्र अनंत प्राकृतिक एवं सभ्यतागत संसाधनो से मंडित रहा है। किंतु, कालांतर में हम स्मृतिलोप के ऐसे भंवर में फंसे कि अपनी अनुपम प्राकृतिक संपदा का न तो हमें ज्ञान रहा और न ही अभिमान। अपने बच्चों को हम भारतभूमि की अद्वितीय संपदाओं की जानकारी देने की बजाय उन्हें भारतभूूमि की झूूठी-सच्ची दरिद्रता एवं यहां आने वाली संभावित आपदाओं का ही पाठ पढ़ाते रहते हैं। आज इस बात की जरूरत है कि हम भारत भूमि के वैभव से न केवल स्वयं अवगत हों, बल्कि अपनी संतानों का भी इससे परिचय करवाएं।

भारतीय भूखंड की समृद्धि का रहस्य उत्तर में स्थित हिमालय में निहित है। हिमालय विश्व की महानतम पर्वत श्रृंखला है। लगता है किसी बुजुर्ग ने अपनी दोनों भुजाएं फैलाकर इस भूमि को अपने वक्ष में समेट रखा हो और इस भारत भूमि का अत्यंत उदारता पूर्वक पोषण एवं संरक्षण करता रहा हो। भौगोलिक विस्तार में भारतवर्ष का स्थान चाहे विश्व में आठवां हो, परंतु प्राकृतिक सम्पदा की दृष्टि से यह भूमि विश्व के समृद्धतम भूखंडों में से एक है। भारतवर्ष के प्रायः 60 प्रतिशत भाग पर कृषि संभव है। जबकि विश्व के अन्य बड़े सम्पन्न क्षेत्रों का 20 प्रतिशत से अधिक भाग कृषि योग्य नहीं है।

उपजाऊ मिट्टी के साथ-साथ जल की उपलब्धता के मामले में भी भारत अत्यंत समृद्ध देश है। अपने उत्तरी तथा दक्षिणी विस्तारों पर बरसने वाली और ग्लेशियरों की पिघलती संपूूर्ण जलराशि को समेटकर हिमालय उसे भारत भूमि पर सदियों से उचीलता चला आ रहा है। भारतभूूमि पर प्रतिवर्ष 105 से.मी. औसत वर्षा होती है। विश्व के किसी और पर्याप्त बड़े भूूखंड पर इतना जल नहीं बरसता। चीन एवं संयुक् राज्य अमेरिका विश्व के समृद्धतम क्षेत्रों में से हैं, किंतु वहां औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा क्रमशः 40 एवं 60 से.मी. ही है। हम अनादि काल से वर्षा के जल को एकत्र करने, उसके प्रवाह को विभिन्न दिशाओं में नहरों-नालों के रूप में मोड़कर खेतों एवं बस्तियों तक पहुंचाने की विविध व्यवस्थाएं करते रहे हैं। जल प्रबंधन की दृष्टि से हमारा पारंपरिक ज्ञान उत्तम कोटि का रहा है। मिट्टी और पानी के साथ-साथ ईश्वर ने हमें पर्याप्त धूप दी है। हमारे यहां प्रायः वर्ष भर धूप रहती है। इस कारण हम वर्ष में दो से तीन फसलें ले सकते हैं। विश्व के किसी अन्य बड़े भू-भाग में यह संभव नहीं होता। जीवन के लिए आवश्यक तीन मूलभूत जरूरतों-मिट्टी, पानी और धूप की प्रचुरता के कारण ही जैव विविधता की दृष्टि से भारत अत्यंत समृद्ध है।

भारत भूमि केवल ऊपर से ही नहीं नीचे से भी अत्यंत समृद्ध है। इसकी गहराइयों में अपार खनिज सम्पदा उपलब्ध है। इस सम्पदा के आधार पर भारत के औद्योगिक विकास की संभावनाएं विश्व में तीसरे स्थान पर आंकी जाती हैं। लौह अयस्क के प्रामाणिक भंडारों की मात्रा 12 अरब टन है। आज की उपयोगिता के अनुसार ये भंडार 300 वर्षों के लिए पर्याप्त हैं। हमारे पास 2 खरब 20 अरब टन कोयले एवं भूरे कोयले के भंडार हैं। उत्खनन और उपयोग क वर्तमान स्तर पर ये भंडार 750 वर्ष के लिए पर्याप्त हैं। एल्युमिनियम-अयस्क बाक्साईट के भारतीय भंडार विश्व के सबसे बड़े भंडारों में गिने जाते हैं। टाईटेनियम-अयस्क इल्मेनाईट के प्रमाणित भारतीय भंडार भी विश्व में सर्वाधिक हैं। ‘विरल-मृदा’ नामक विशिष्ट खनिजों के भारतीय भंडार केवल चीन से कम पड़ते हैं। विरल-मृदाओं में से एक थोरियम के भारत में 3 लाख 60 हजार टन के भंडार हैं। ये भंडार 10 लाख मेगावाट की नाभिकीय ऊर्जा की क्षमता स्थापित करने और उसे 240 वर्षों तक चलाते रहने में सक्षम हैं। हमारे पास कमी केवल कच्चे तेल की है। परंतु इस कमी को भी सौर-ऊर्जा, जल ऊर्जा पवन उर्जा, पशुजनित गोबर गैस ऊर्जा, कोयले एवं नाभिकीय ऊर्जा के लिए आवश्यक खनिजों के प्रचुर भंडारों के सम्यक उपयोग आदि से पूरा किया जा सकता है। जरूरत है कि हम अपने इन संसाधनों को अपारंपरिक ऊर्जा का स्रोत मानने की बजाय उन्हें पारंपरक ऊर्जा का स्रोत बनाएं।

संक्षेप में कहें तो भारतभूमि प्राकृतिक रूप से इतनी समृद्ध है कि इसके द्वारा संपूर्ण विश्व का भरण-पोषण हो सकता है। किंतु, विदेशी शासन के कुछ सौ वर्षों के का क उपेक्षा एवं बर्बरता तथा स्वतंत्रता पश्चात की हमारी नासमझी के कारण यह भूमि अपनी सहज उदारता से इस राष्ट्र का पोषण करने में असमर्थ हुई है। यदि हम मिलजुल कर अपने वनों, अपने खेतों, अपनी मिट्टी, अपनी नदियों, अपने पानी, अपने जंगल, पहाड़, गोवंश, अपने खनिजों आदि को पुनः संजोने का प्रयास करें, परिश्रमपूर्वक इन समस्त प्राकृतिक संपदाओं को अपने सहज-स्वस्थ रूप में ले आएं ते कुछ ही वर्षों में यह भूमि अपनी सहज उदारता से हमें पुनः समृद्ध करने लगेगी। सहज समृद्धि की यह संभावना ही आज की स्थिति में आशा का सबसे प्रमुख स्रोत है।

(व्यवस्था परिवर्तन की राह) पुस्तक से

 

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