वक्फ़ बोर्ड नहीं भू माफिया

प्रज्ञा संस्थानवक्फ़ बोर्ड को नियंत्रित करने वाले क़ानून में प्रस्तावित संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश कर दिया गया है. वक़्फ़ क़ानून का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ़ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम’ कर दिया गया है. ये संशोधन ‘क़ानून में मौजूद ख़ामियों को दूर करने और वक्फ़ की संपत्तियों के प्रबंधन और संचालन’ को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी हैं.

वक्फ़ की 8.72 लाख संपत्तियां और 3.56 लाख जायदादें कुल 9.4 लाख एकड़ ज़मीन में फैली हुई हैं. रक्षा मंत्रालय और भारतीय रेलवे के बाद अगर सबसे अधिक संपत्तियां किसी के अधीन हैं तो वह वक्फ़ ही है. इन तीनों के पास देश में सबसे अधिक ज़मीनों का मालिकाना हक़ है.पिछले दो सालों में देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में वक्फ़ से जुड़ी करीब 120 याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसके बाद इस क़ानून में संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं.अदालत में दी गई अर्ज़ियों में वक्फ़ क़ानून की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि जैन, सिख और अन्य अल्पसंख्यकों समेत दूसरे धर्मों में ऐसे क़ानून लागू नहीं होते.

“धार्मिक आधार पर कोई ट्रिब्यूनल नहीं रह सकता. भारत ऐसा राष्ट्र नहीं हो सकता, जहां दो क़ानून हों. यहां एक देश और संपत्ति के लिए एक क़ानून हो. अदालतों में दायर 120 याचिकाओं में से तकरीबन 15 मुसलमानों की ओर से भी दायर की गई है. दान और परोपकार वाले काम कभी भी धर्म के आधार पर नहीं होने चाहिए.”वक़्फ़ बोर्ड से जुड़ी कई ईकाइयों में भ्रष्टाचार की बात को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता है. इसका प्रबंधन भी ठीक से नहीं हो रहा है.”

वक्फ़ अधिनियम में प्रस्तावित 44 संशोधनों से पहले ही कई छोटे शहरों, कस्बों, ख़ासतौर पर उत्तर भारत के राज्यों में वक्फ़ बोर्ड को ख़त्म करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन देखे जा चुके हैं.पिछले दो सालों में देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में वक्फ़ से जुड़ी करीब 120 याचिकाएं दायर की गई थीं,इसका प्रबंधन भी ठीक से नहीं हो रहा है.”वक्फ़ अधिनियम में प्रस्तावित 44 संशोधनों से पहले ही कई छोटे शहरों, कस्बों, ख़ासतौर पर उत्तर भारत के राज्यों में वक्फ़ बोर्ड को ख़त्म करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन देखे जा चुके हैं.वक़्फ़ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है जिसे कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम को मानता हैं अल्लाह के नाम पर या धार्मिक मक़सद या परोपकार के मक़सद से दान करता है.

संशोधन विधेयक के ‘उद्देश्यों और कारणों’ के अनुसार वक्फ़ को ऐसा कोई भी व्यक्ति संपत्ति दान दे सकता है जो कम से कम पाँच सालों से इस्लाम का पालन करता हो और जिसका संबंधित ज़मीन पर मालिकाना हक़  हो.प्रस्तावित संशोधन के तहत अतिरिक्त कमीश्नर के पास मौजूद वक्फ़ की ज़मीन का सर्वे करने के अधिकार को वापस ले लिया गया और उनकी बजाय ये ज़िम्मेदारी अब ज़िला कलेक्टर या डिप्टी कमीश्नर को दे दी गई है.

केंद्रीय वक्फ़ परिषद और राज्य स्तर पर वक्फ़ बोर्ड में दो ग़ैर मुसलमान प्रतिनिधि रखने का प्रावधान किया गया है. नए संशोधनों के तहत बोहरा और आग़ाख़ानी समुदायों के लिए अलग वक्फ़ बोर्ड की स्थापना की भी बात कही गई है.वक्फ़ का पंजीकरण सेंट्रल पोर्टल और डेटाबेस के ज़रिए होगा. इस पोर्टल के ज़रिए मुतवल्ली यानी वक्फ़ संपत्ति की देखरेख करने वालों को ख़ातों की जानकारी देनी होगी. इसी के साथ सालाना पाँच हज़ार रुपये से कम आय वाली संपत्ति के लिए मुतवल्ली की ओर से वक्फ़ बोर्ड को दी जाने वाली राशि को भी सात फ़ीसदी से घटाकर पाँच फ़ीसदी कर दिया गया है.

किसी संपत्ति के वक्फ़ के तहत आने या न आने का फ़ैसला लेने का वक्फ़ बोर्ड का अधिकार वापस ले लिया गया है. नए प्रस्ताव के अनुसार मौजूद तीन सदस्यों वाली वक्फ़ ट्राइब्यूनल को भी दो सदस्यों तक सीमित कर दिया गया है. लेकिन इस ट्राइब्यूनल के फ़ैसलों को अंतिम नहीं माना जाएगा और 90 दिन के भीतर ट्राइब्यूनल के फ़ैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.नए विधेयक में सीमा अधिनियम को लागू करने की अनिवार्यता को हटाने का प्रावधान है.

इसका मतलब है कि जिन लोगों का 12 साल से वक्फ़ की ज़मीन पर अतिक्रमण करके कब्ज़ा किया हुआ है, वे इस संशोधन के आधार पर मालिक बन सकते हैं.वक्फ़ एक्ट 1995 में के रहमान ख़ान की अगुवाई वाली समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर साल 2013 में बड़े बदलाव हुए थे. उस समय इस पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) और फिर राज्यसभा की सिलेक्ट कमिटी ने विचार-विमर्श किया, संयोगवश जिसकी अगुवाई एक बीजेपी नेता कर रहे थे.

वक्फ़ बोर्ड की कार्यशैली को साफ़-सुथरा बनाने के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ ही कई वकीलों की राय भी एक समान है. लेकिन वक्फ़ अधिनियम की वैधता को अदालतों में चुनौती देने वाले 119 याचिकाकर्ताओं ने भी इस क़ानून की ख़ामियों को रेखांकित किया है.

राजस्थान के बूंदी में रहने वाले शहज़ाद मोहम्मद शाह ने कोर्ट का दरवाज़ा इसलिए खटखटाया क्योंकि फ़कीर समुदाय की 90 बीघा ज़मीन वक्फ़ बोर्ड ने अपने कब्ज़े में ले ली.उन्होंने कहा कि राजस्थान कोटा और बारण ज़िलों में रहने वाले उनके समुदाय के कुछ और लोगों ने भी इसी तरह की याचिकाएं अदालत में दी हैं. वह कहते हैं, “हम मध्य प्रदेश में एक मुजावर सेना के बारे में भी जानते हैं, जो वक्फ़ बोर्ड के ऐसे ही कामों से परेशान है.”

मोहम्मद शाह ने कहा, “यही वजह है कि हमने हाई कोर्ट में अपनी याचिकाओं में ये कहा है कि धर्मार्थ ट्रस्टों और ट्रस्टियों के लिए समान कानून की ज़रूरत है. इसकी बजाय केंद्र और राज्य ने मनमाने ढंग से धर्म आधारित वक्फ़ अधिनियम बनाया है जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है.”सरकार मंदिरों से एक लाख करोड़ रुपये पाती है लेकिन किसी दरगाह या मस्जिद से नहीं. जबकि वह वक्फ़ के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को वेतन देती है. सभी धार्मिक संपत्तियों पर फ़ैसला सिविल क़ानून से हो न कि वक्फ़ ट्राइब्यूनल के ज़रिए.”

 

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