
मान लीजिए कि गत जुलाई में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अचानक संसद भवन में पहुंच जाते हैं। वे महेश्वर नाथ कौल को भी बुला लेते हैं। उन्हें ही क्यों बुलाया? इसलिए कि वे ही लोकसभा के प्रथम महासचिव रहे। एक प्रथम ने दूसरे प्रथम को बुलाया। पहला दूसरे से पूछता है कि 21 जुलाई, 1975 को लोकसभा में क्या हुआ? दूसरे ने यह नहीं कहा कि अपनी याद में जितना है उतना बताता हूं, बल्कि यह कहा कि लोकसभा की पूरी कार्यवाही सुरक्षित है। उसके आधार पर मैं आपको लोकसभा के उस सत्र की महत्वपूर्ण बातों को संक्षेप में बता रहा हूं।उन्होंने बताया कि इमरजेंसी में उस दिन संसद का पहला दिन था।
वह पांचवी लोकसभा का चौदहवां सत्र था। उसमें सबसे पहले संसदीय कार्यमंत्री के. रघु रमैया ने एक संकल्प प्रस्ताव रखा। पंडित नेहरू पूछते हैं कि क्या वह वैसा ही संकल्प प्रस्ताव था जैसा मैंने संविधान सभा में रखा था? महेश्वर नाथ कौल की परेशानी इस प्रश्न से बढ़ गई। उनका ब्लडप्रेसर बेकाबू होने लगा। स्वयं को संभालकर उन्होंने कहा कि आपका संकल्प प्रस्ताव भारत में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना के लक्ष्य से प्रेरित था। रघु रमैया का प्रस्ताव तो लोकतंत्र को फांसी पर लटकाने के लिए था। पंडित नेहरू ने अगला प्रश्न पूछा कि उस समय प्रधानमंत्री कौन था? इस प्रश्न से महेश्वर नाथ कौल बेसुध होते–होते बचे। वे यह नहीं कह सकते थे कि मुझे पता नहीं है। आखिर यह सब उनके जीवन में ही तो हुआ था! कांपते स्वरों में वे बोले कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं जो आपकी बेटी होने के कारण बनाई गई थी। पंडित नेहरू के अगले प्रश्न को भांपकर उन्होंने कहा कि इमरजेंसी लगाई ही इसलिए गई कि आपकी बेटी प्रधानमंत्री पद पर बनी रहे। उन्हीं के निर्देश पर रघु रमैया ने जो प्रस्ताव रखा वह लोकसभा के मूल प्रयोजन को समाप्त करता है।
उस प्रस्ताव से लोकसभा सदस्यों की सदन में भी स्वतंत्रता छीन ली गई। पंडित नेहरू ने अगला प्रश्न पूछा कि उस दिन और क्या–क्या हुआ? इसके लिए महेश्वर नाथ कौल तैयार थे। वे बोले बाबू जगजीवन राम ने एक प्रस्ताव रखा कि इमरजेंसी की घोषणा का सदन अनुमोदन करे। यह किसी के गले उतरने वाली बात नहीं थी। इंदिरा गांधी की सरकार लोकसभा का उस पर अनुमोदन चाहती थी। इस पर 21, 22 और 23 जुलाई, 1975 को लोकसभा में भीषण बहस हुई। विपक्ष ने प्रश्न उठाए। सत्ता पक्ष के सदस्य मजबूरन और आधे मन से समर्थन में बोले। विपक्षी सदस्यों ने जो कुछ कहा उसमें वजन था। उसमें सत्यांश ज्यादा था। लेकिन प्रेस सेंसरशिप के कारण रेडियो से वही प्रसारित हुआ जो सरकार चाहती थी। अखबारों ने पुलिस राज के भय से सरकार का ही पक्ष छापा। देशभर के लोग नहीं जान सके कि सदन में विपक्ष ने क्या कहा!
बाबू जगजीवन राम के भाषण का सार था कि ‘हम यहां आज अपने देश के इतिहास के एक कठिन मोड़ पर एकत्रित हुए हैं।’…‘हमारे देश की राजनीति में 1969 एक ऐतिहासिक वर्ष रहा था। यद्यपि यह घटनाक्रम अधिकतर कांग्रेसी दल से संबंधित था परंतु उसने देश के राजनीतिक तथा आर्थिक जीवन को भी प्रभावित किया।’…‘हमारे संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों का घेराव किया जाए। हमारे संविधान में यह भी प्रावधान नहीं है जिसके माध्यम से हम अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले वापस बुला सकें।’
…‘यह सत्य है कि संसद सर्वोच्च है, परंतु भारत के लोग संसद से कहीं अधिक ताकतवर हैं। विरोधी दलों का भारत के लोगों में कोई भरोसा नहीं है। यह भी कहा गया कि ‘‘सत्ता बंदूक की नली से निकलती है।’’ परंतु ऐसा हमारे संविधान में नहीं कहा गया। उसमें कहा गया कि ‘‘शक्ति बैलेट से आती है’’, परंतु विरोधी दलों को प्रजातांत्रिक रास्तों और लोगों में भरोसा नहीं था। इसीलिए सेना और पुलिस को लोकतंत्र को उलटने के लिए भड़काया गया। कोई भी सरकार ऐसे कृत्यों को सहन नहीं कर सकती है।’
महेश्वर नाथ कौल ने बाबू जगजीवन राम के प्रस्तावित भाषण का यह सार पंडित नेहरू को सुनाया। उन्होंने पूछा कि विपक्ष से पहला वक्ता कौन था? महेश्वर नाथ कौल बोले–ए.के.गोपालन। पंडित नेहरू को अचंभा नहीं हुआ। वे उन्हें कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के दिनों से जानते थे। पंडित नेहरू के वे पुराने सहयोगी थे। पंडित नेहरू को यह भी याद आया कि ए.के. गोपालन उस समय भी लोकसभा सदस्य थे जब वे लोकसभा के नेता थे और प्रधानमंत्री थे। उनकी उत्सुकता बढ़ी। बोले, गोपालन ने क्या कहा?
महेश्वर नाथ कौल को इसी प्रश्न की उम्मीद थी। वे तैयार थे। उन्होंने ए.के. गोपालन के भाषण के महत्वूपर्ण अंश उन्हें सुनाए। वे इस प्रकार हैं, ‘जगजीवन राम ने जो कुछ कहा है जिस प्रकार वह बीच–बीच में कभी–कभी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर देखते रहे हैं उससे ऐसा प्रतीत होता कि यह उनके अपने विचार नहीं हैं। मुझे मालूम है कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं और इसलिए मेरी उनसे सहानुभूति है। स्थिति बड़ी ही गंभीर है।’…‘इंदिरा गांधी और उनके साथियों ने संसद को एक मजाक बनाकर रख दिया है।’
…‘यह आकस्मिक घोषणा आंतरिक सुरक्षा संबंधी किसी वास्तविक खतरे के कारण नहीं की गई है बल्कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय और गुजरात में कांग्रेस की हार के कारण की गई।’…‘इसके द्वारा संसदीय प्रजातंत्र का स्थान तानाशाही ने ग्रहण कर लिया है, जिसके पूर्ण अधिकार एक नेता इंदिरा गांधी के हाथ में केंद्रित हैं।’…
इस पर पंडित नेहरू की टिप्पणी थी कि ए.के. गोपालन ने सीधी सच्ची बात कह दी। उन्होंने जिज्ञासावश पूछा कि गोपालन ने अपने भाषण में और कुछ भी कहा? महेश्वर नाथ कौल ने तब ये अंश उन्हें सुनाए।…‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आनंद मार्ग के प्रति, जिन पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है, सरकार ने अपने लाभ के लिए समय–समय पर अपना रवैया बदला है।’ इसके अनेक उदाहरण दिए। जिससे कांगेसी बौखला गए।
पंडित नेहरू ने जानना चाहा कि उस दिन कौन–कौन बोले। महेश्वर नाथ कौल ने बताया कि सी.एम. स्टीफन, इंद्रजीत गुप्त, बलिराम भगत, जगन्नाथ राव जोशी, भगवत झा आजाद, एरा सेझियन, दिनेष चंद्र गोस्वामी, प्रसन्न भाई मेहता, वसंत साठे बोले। इन नामों को सुनने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने जानना चाहा कि इंद्रजीत गुप्त, जगन्नाथ राव जोशी, एरा सेझियन और प्रसन्न भाई मेहता के भाशणों में क्या कुछ रहा। महेश्वर नाथ कौल ने उन्हें क्रमवार हर व्यक्ति के भाषण से कुछ अंश सुनाए। इंद्रजीत गुप्तः(सीपीआई)ः ‘हमारे दल की यह निश्चित धारणा है कि 26 जून को जो इमरजेंसी घोषित की गई है वह बिल्कुल न्यायोचित है। फिर भी मैं चाहता हूं कि सरकार समूचे देश को उन तथ्यों से अवगत कराए जिनसे विवश होकर उसे यह कदम उठाना पड़ा।’
महेश्वर नाथ कौल ने पंडित नेहरू को बताया कि इंद्रजीत गुप्त के यह कहते ही गृह मंत्रालय में उपमंत्री एफ.एच. सिंह ने ‘इमरजेंसी क्यों’ पुस्तिका सभा पटल पर रखी। यह इंद्रजीत गुप्त के भाषण के दौरान हुआ। महेश्वर नाथ कौल ने पंडित नेहरू को सीपीआई नेता इंद्रजीत गुप्त के भाषण का यह अंश विशेषकर सुनाया।’… ‘डेढ़ वर्ष पहले जब जयप्रकाश नारायण ने सेना तथा पुलिस से आदेश न मानने का आह्वान किया था, तब मैंने इस बात को इसी सदन में उठाया था।’… ‘इस संबंध में जो कुछ हुआ है उसके पीछे एक सम्बद्ध अंतर्राष्ट्रीय पृष्ठभूमि है। इसके पीछे अमेरिकी साम्राज्यवाद अपना खेल खेल रहा है। अमेरिकी सरकार भारत को ‘नरम देश’ समझती है।’…‘जहां सी.आई.ए. जैसी तोड़फोड़ करने वाली एजेंसियों को लगा सकते हैं और वित्तीय तथा फौजी दबाव डाल सकते हैं।’
जगन्नाथ राव जोशी (जनसंघ)…‘जहां तक इस बात का प्रश्न है कि एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई थी इसलिए लोगों को गिरफ्तार करना पड़ा, इस पर मैं अपने विद्वान मित्र इंद्रजीत गुप्त को कहना चाहूंगा कि राजनीति में विचित्र साथी मिला करते हैं। सन् 1930 में यह महाशय इंद्रजीत गुप्त महात्मा गांधी को ब्रिटिश साम्राज्यवाद का एक एजेंट कहा करते थे। 1942 में ये लोग कहां थे? जब 1962 में चीन ने आक्रमण किया तो हमने इस राष्ट्रीय संकट के समय अपने सभी विवादों को भूलकर बैंगलोर में कांग्रेस अध्यक्ष के साथ एक मंच पर खड़े होकर लोगों को संबोधित किया था। उस समय ये लोग अपने दिमाग में यह मंथन कर रहे थे कि क्या इसे आक्रमण कहा जाए या धावा। उसके बाद उन्होंने राजमहल की क्रांति का एक नया तरीका निकाला जो कांग्रेस में चंद्रजीत यादव के प्रवेष करने के साथ शुरू हुआ। क्या हमें बंबई के रजनी पटेल से कांग्रेसी विचारधारा को समझना पड़ेगा?’…‘प्रश्न तो यह है कि इस बात का निर्णय कौन करेगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकलाप देश के लिए हानिकारक हैं अथवा नहीं? लोकतंत्र में हर एक को सहमत और असहमत होने और न्यायालय में जाने का अधिकार प्राप्त है।’ (व्यवधान)
एरा सेझियन (द्रमुक)…‘यह माना जा सकता है कि जेपी ने सेना और पुलिस को उकसाया है और उससे देश को हानि पहुंच सकती है। सरकार को चाहिए कि वह जयप्रकाश नारायण को न्यायालय में पेश करे और उनका अपराध सिद्ध करे और अपराध सिद्ध होने पर उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दे।’… ‘यदि कोई संगठन इस देश की जनता के हितों के विरूद्ध है तो उनके विरूद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, पर यह कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से किया जाना चाहिए। अब मैं यहां उपस्थित सदस्यों से कहना चाहता हूं कि वह दिन दूर नहीं जब देश के प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्रता कम हो जाएगी, खतरे में पड़ जाएगी।’…‘मैं यह मानने को तैयार हूं कि जो कुछ किया गया वह पूर्णतः संवैधानिक है। संविधान के अंतर्गत आप जो काम करते हैं वह कानूनी हो सकता है पर वह सदैव लोकतांत्रिक नहीं होता।’
प्रसन्न भाई मेहता (संगठन कांग्रेस)…‘यदि जयप्रकाश नारायण राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलग्न थे तो उन्हें दंड दिया जाना चाहिए। उन्हें न्यायालय में पेश किया जाना चाहिए और उन्हें यह सिद्ध करने का अवसर दिया जाना चाहिए कि वह दोषी हैं अथवा नहीं। किंतु यहां तो जनता और जन नेताओं के अधिकार छीन लिए गए हैं।’ महेश्वर नाथ कौल ने पंडित नेहरू को बताया कि बहस अधूरी रही। अगले दिन भी चली। कौल ने नेहरू से कहा कि इतना समय नहीं है कि हर भाषण का सार आपको बताऊ। संसद में सुरक्षा की चौकसी भी है। हमें दूसरे लोक में शीघ्र पहुंचना है। इसलिए आवश्यक भाषणों के कुछ अंश बताउंगा।
इंदिरा गांधी…‘मैंने कभी यह दावा नहीं किया है कि मैं एक सिद्धांतवादी समाजवादी हूं। समाजवाद के बारे में मेरा अपना मत है कि भारतीय समाज में कैसा समाजवाद होना चाहिए और उस लक्ष्य की ओर मैं तत्परता से अग्रसर होती जा रही हूं।’…‘हमने संविधान के अनुसार कार्रवाई की है। किंतु इस बारे में भी यह कहा जा रहा है कि हिटलर ने भी ऐसा ही किया था। किंतु बात बिल्कुल ऐसी नहीं है। अगर आप यह जानना चाहते हैं तो आप इतिहास की पुस्तकें पढ़ें और आपको पता चल जाएगा कि दोनों स्थितियों में कोई समानता नहीं है। मुझे इतिहास की पुस्तकें पढ़ने की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि उस समय मैं जर्मनी में थी और जो कुछ हो रहा था, मैं जानती हूं।’ …‘संसद का सत्र बुलाना ही इस बात को सिद्ध करता है कि भारत में लोकतंत्र विद्यमान है। विपक्षी दल के सदस्यों का अधिक संख्या में यहां उपस्थित होना इस बात का प्रमाण है कि सभी सदस्यों को गिरफ्तार नहीं किया गया है। यह कार्रवाई पूर्णतः हमारे संविधान के अंतर्गत है। यह संविधान को नष्ट करने के लिए नहीं बल्कि इसकी सुरक्षा और अनुरक्षण तथा लोकतंत्र की रक्षा के लिए की गई है।’
एच.एम. पटेल… ‘मूल प्रश्न यह है कि इमरजेंसी की घोषणा क्यों की गई? सरकार का कहना यह है कि उसे ऐसी कार्रवाई की आशंका थी जिससे सरकार का कार्य ठप्प हो जाता।’… ‘यदि षडयंत्र शक्तिशाली होता तो क्या इमरजेंसी की घोषणा करने के बाद षडयंत्रकारियों की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती? कहीं कोई हिंसात्मक घटना नहीं हुई और न ही कहीं प्रदर्शन हुआ। लोग यह देखकर स्तब्ध रह गए कि ऐसे समय में इमरजेंसी की घोषणा की गई जबकि स्थिति सामान्य थीं।’…‘यह बहुत ही आवश्यक है कि सरकार इमरजेंसी की उद्घोषणा को यथाशीघ्र समाप्त करने के मामले पर गंभीरतापूर्वक विचार करे। यह देश मूल रूप में हिंसक नहीं है। प्रेस सेंसर और अन्य उठाए गए कदमों से आप एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं जिसमें हिंसा की स्थिति हो सकती है।’
रामदेव सिंह…‘वास्तविकता यह है कि 12 जून को प्रधानमंत्री ने देखा कि उनकी कुर्सी हिल रही है और अपने आपको इस खतरे से बचाने के लिए उन्होंने इमरजेंसी का नाटक रचा है। यह कहा गया है कि गुजरात विधानसभा को भंग कराने के लिए हिंसा हुई और बिहार में भी जनसंघ की गतिविधियों से विधानसभा भंग कराने के लिए हिंसक घटनाएं हुईं परंतु उस समय आप कहां थे? आपने केरल की विधानसभा भंग की, उत्तर प्रदेश विधानसभा तथा बिहार विधानसभा भंग की। ये सब गतिविधियां लोकतांत्रिक थीं, परंतु जब लोगों ने भंग करने की मांग की तो शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को हिंसक कहा गया।’… ‘आज प्रधानमंत्री ने गलत तरीके से चर्चा में भाग लिया है, उनको इसमें भाग लेने का कोई अधिकार नहीं है।’ …‘लोगों की आंखों में धूल झोंक कर आप कब तक प्रधानमंत्री बने रह सकते हो!’…‘जयप्रकाश नारायण के विषय में कई बातें कही जा रही हैं। ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे वह सबसे अनुशासनहीन व्यक्ति हों। देश के लिए उनकी सेवाओं को भुला दिया गया है। मेरी सलाह है कि इमरजेंसी को हटा लिया जाए तथा सभी नेताओं को रिहा कर उनसे सहयोग लिया जाए।’
कौल ने याद दिलाया कि सिब्बन लाल जी संविधान सभा के मुखर सदस्य रहेे और मणिबेन पटेल सरदार पटेल की पुत्री हैं। प्रो. सिब्बन लाल सक्सेना…‘मैं 30 जून को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिला था और उन्हें कहा कि मैंने 25 जून तक उनका समर्थन किया परंतु इमरजेंसी की उद्घोषणा होने के बाद मैं यह समझने में सक्षम नहीं हूं कि मैं उनका किस तरह से बचाव कर सकता हूं!’
कुमारी मणिबेन पटेल…‘इमरजेंसी लगाए जाने की क्या आवश्यकता थी? यदि आपके पास जनता का भरपूर समर्थन है तब आप क्यों डरते हो? आजकल प्रतिदिन जो अत्याचार हो रहे हैं उन्होंने ब्रिटिश राज को भी मात दे दी है। जब 1942 में कुछ नेताओं की गिरफ्तारी की गई थी तब उसका समाचार समाचारपत्रों में छपा था। परंतु अब जो लोग गिरफ्तार हुए हैं उनकी खबर की चर्चा नहीं हुई है।’… ‘इंदिरा गांधी के मोरारजी देसाई को लिखे गए एक पत्र में यह आश्वासन दिया गया था कि राजनीतिक नेताओं के विरूद्ध मीसा नहीं लगाया जाएगा। परंतु क्या हुआ? मोरारजी देसाई को मीसा के अधीन गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ्तारी के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है। तब आप यह दोष लगाते हो कि एक कानाफूसी अभियान चल रहा है। जब समाचारपत्रों में किसी बात की कोई चर्चा नहीं होगी तो इस तरह की घटनाएं घटेंगी।’…‘इमरजेंसी लगाने का वास्तविक कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय है।’
मोहन धारिया…‘26 जून, 1975 का दिन था जब इमरजेंसी की घोषणा की गई, अनेक राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया गया, प्रेस और व्यक्तिगत स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई, भारतीय लोकतंत्र और इतिहास में सबसे अधिक काला दिन माना जाएगा। मैं इस घोषणा की भर्त्सना करना हूं।’
महेश्वर नाथ कौल ने पंडित नेहरू को बताया कि 23 जुलाई को जब बहस पूरी हुई तो अध्यक्ष गुरूदयाल सिंह ढिल्लो ने प्रस्ताव पर मतदान कराया। प्रस्ताव था, ‘यह सभा संविधान के अनुच्छेद-352 के खंड (1) के अधीन राष्ट्रपति द्वारा 25 जून, 1975 को जारी की गई इमरजेंसी की उदघोषणा का और जम्मू और कश्मीर राज्य में यथाप्रवृत्त, संविधान के अनुच्छेद-352 के खंड (4) के उपखंड (ख) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, उक्त उदघोषणा को जम्मू और कश्मीर राज्य में लागू करने हेतु जारी किए गए राष्ट्रपति के दिनांक 29 जून, 1975 के आदेश का अनुमोदन करती है।’ मतदान में 336 पक्ष में और 59 विपक्ष में मत पड़े।
यह प्रक्रिया जैसे ही पूरी हुई कि त्रिदिब चौधरी ने इमरजेंसी के कुराज में लोकसभा की पतली हालत को शब्दबद्ध किया और घोषणा की कि ‘…सभी प्रसिद्ध संसद सदस्य बंदी बनाए जा चुके हैं, हमें अब यह विश्वास हो गया है कि संसद के इस सत्र की कार्यवाही में हमारे भाग लेने का कोई अर्थ नहीं होगा, क्योंकि संसद स्वतंत्र और लोकतांत्रिक ढंग से कार्य करने की स्थिति में नहीं है।’ महेश्वर नाथ कौल से इमरजेंसी के कुराज में लोकसभा का हाल सुनकर पंडित नेहरू बोल पड़े-‘जेपी स्वीकार, इंदिरा को धिक्कार और महेश्वर तुम्हारा बड़ा उपकार।’