तलाक का अलाप कब तक ? एक देश में एक ही कानून हो !!

के .विक्रम रावतीन तलाक के खिलाफ जंग में  (1 नवंबर 2023) से तीसरा आयाम भी जुड़ गया है। पहला था शाह बानो की गुजारा भत्ता की लड़ाई वाला। फिर आया शायरा बानो वाला। उसके पति ने तार द्वारा उसे तलाक दिया था। लड़ी और जीती। अब अपनी मनपसंद श्रृंगार के हक के खातिर कल गुलसबा ने कानपुर में युद्ध की ललकारा भी। सिद्ध हो गया कि भारतीय मुस्लिम महिला अब दकियानूसी, पुरुष-प्रधान, एकतरफा रिवाज का शिकार नहीं रहेंगी।
   
 क्या था यह ताजा, तीसरा संघर्ष ? निहायत मामूली। बस अपनी पसंद की आजादी के अधिकार हेतु। कानपुर में एक गृहणी है गुलसबा। गत वर्ष उसका निकाह हुआ था। वह एक ब्यूटीपार्लर में गई थी। फिर उसके पति सलीम ने सवा बारह हजार किलोमीटर दूर जेद्दा (सऊदी) से वीडियो फोन पर बात की। उसने देखा बीवी ने भौ का मेकअप कराया था। पति को पसंद नहीं आया। बस शादी तोड़ डाली। सारा मामला फोन पर ही हो गया। पुलिस को गुलसबा ने बताया भी : “मेरे शौहर थोड़े पुराने ख्यालात के हैं। उन्हें मेरा मेकअप करना पसंद नहीं है। मुझे लगा वो बस थोड़ी देर ही नाराज रहेंगे। फिर मान जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनसे जब दोबारा बात हुई तो वो इसी बात को लेकर लड़ने लगे और कहा कि तुझे तीन तलाक देता हूं। इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया। मैंने उन्हें कई बार फोन किया, लेकिन उन्होंने मेरा कॉल नहीं उठाया। फिर जब मैंने इस बारे में अपने ससुराल वालों से बात की तो वो भी मेरे शौहर का ही साथ देने लगे। कहने लगे कि हमारे बेटे ने जो भी किया वो सही किया।”
दरगाह आला हजरत से जुड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने एक फतवा जारी किया है। उन्होंने कहा कि एसएमएस द्वारा दी गई तलाक शौहर की तस्दीक के बाद मान ली जाएगी। वहीं मौलाना ने औरतों का आइब्रो (भौंहों) को बनवाना और बाल प्रत्यर्पण करवाने को भी नाजायज करार दिया है।
 लेकिन अपने कौटुंबिक अधिकारों के लिए गुलसबा भी कमर कसे है। लद गया वह दौर जब मुस्लिम युवतियाँ चुपचाप सब सह लेती थीं। सेक्युलर गणराज्य में यही चेतना उभरी है। गुलसबा की शिकायत पर उसके पति, सास समेत पांच अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। “मेरी शादी को केवल एक साल ही हुआ था। मेरे पति, जिन्होंने पहले मेरा अपमान किया था, ने अब मुझे तीन तलाक दे दिया है। मैं चाहती हूं कि पुलिस उसके खिलाफ उचित कार्रवाई करे।”
 तनिक गौर कर लें कि कैसे और कितने क्षुद्र तथा वाहियात कारणों से निकाह सरीखे पवित्र बंधन को चंद खुदगर्ज पतियों ने तोड़ा। व्याहता को छोड़ा। लखनऊ की अलीगंज थाना में मियां कलीम पर मुकदमा दर्ज है (3 मई 2023 से)। उसकी पत्नी ने पिता से मिला मकान पति के नाम नहीं लिखा तो तीन बार तलाक सुनना पड़ा। कलीम ने उसे घर से निकाल दिया। दो नंनदों के नाम भी एफआईआर दर्ज है। हैदराबाद का 38-वर्षीय मोहम्मद हनीफ ने पोस्टकार्ड पर ही (3 अप्रैल 2017) अपनी पत्नी को छोड़ दिया। तीन तलाक सुनते ही बीवी ने भी दफा 376 (बलात्कार) का मुकदमा कायम कराया।
अब जान लें कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की क्या राय है ? उसने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि तीन तलाक को अवैध करार देने के मायने हैं कि कुरान का पुनः लेखन किया जा रहा है। इन सभी पहलुओं पर 30 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट विस्तार से विचार कर चुकी है। तीन तलाक की प्रथा एक मुस्लिम पुरुष को तीन बार “तलाक” शब्द बोलकर अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति देती थी, जो मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और असंवैधानिक था।
 मामले की सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ बनाई। इसमें मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ , आरएफ नरीमन , यूयू ललित और अब्दुल नजीर शामिल थे। बेंच ने 22 अगस्त, 2017 को फैसला सुनाया, 3:2 के विभाजन में, बहुमत ने माना कि तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा ‘ स्पष्ट रूप से मनमानी ‘ और असंवैधानिक थी। मुख्य न्यायाधीश खेहर और न्यायमूर्ति नजीर ने असहमति जताते हुए कहा कि तलाक-ए-बिद्दत धर्म के अधिकार द्वारा संरक्षित है और इस प्रथा को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाना संसद का काम है। दो साल बाद जुलाई में, संसद ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू किया, जिसने तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा को एक आपराधिक कृत्य बना दिया, जिसमें तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है। 
मुस्लिम महिला अधिकार हेतु संघर्षशील लेखिका नाइश हसन (मोबाइल नं. : 9839562674) ने बड़ी प्रभावी शैली से इस ज्वलंत मसले पर राय लिखी है। उन्होंने कहा : “क्या शरीयत केवल तलाक, शादी, मेहेर, इद्दत पर ही लागू है ? चोरी, डकैती, लूट, बलात्कार, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, जमीन हड़प लेना, टैक्स चोरी, बिजली चोरी आदि मामलों में शरीयत कानून लागू करने की मांग क्यों नहीं होती ? क्योंकि वो कानून बहुत सख्त हैं, जिनका पालन इनके बस की बात नहीं। अंग्रेजों ने 1937 शरीयत एप्लीकेशन एक्ट पास किया और उसे लागू किया तो मुसलमानों ने हंगामा क्यों नहीं किया ?”
मुसलमान नेता, खासकर मियां असदुद्दीन ओवैसी सरीखे जो भी कहें नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया कि नया भारत अब धर्म विषमता को बर्दाश्त नहीं करेगा। मुसलमान भी आम भारतीय नागरिक की भांति रहेंगे। नेहरू-इंदिरा दौर के नहीं जब वे अतिविशिष्ट वर्ग के माने जाते थे। विप्रकुल सरीखे। वोट बैंक जो था ? युग बदला है। अब सभी हिंदुस्तानी बराबर हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *