हिंद-स्वराज का नया आयाम

पत्रकारिता के साथ इस यायावर जीवन में सबसे विश्वसनीय मित्र किताबें ही साबित हुई हैं. ऐसे ही दोस्तों की तलाश में दिल्ली के प्रगति मैदान में 25 फरवरी से विश्व पुस्तक मेला शुरू होगा। नौ दिवसीय मेले की थीम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ था। फ्रांस सहयोगी देश के रूप में मेले में भाग ले रहा था। इसी मेले में प्रशंसित किताब ‘आज का हिन्द’ के निमित्त पुस्तक चर्चा के लिए जाना हुआ. वहाँ मंच पर लेखक संदीप जोशी और तेजतर्रार पत्रकार रहे राकेश सिंह की उपस्थिती के कारण उत्सुकता सहज़ भी थी. किताब के विषय में उत्सुकता का दूसरी वजह लेखक के निजी जीवन से भी जुड़ी है. वे प्रख्यात पत्रकार और जनसत्ता के संपादक रहे प्रभाष जोशी जी के बेटे हैं. अब उस परंपरा की लेखनी को समझने का सहज़ उत्साह भी किताब की ओर आकर्षित करती है.
दार्शनिक एवं चित्रकार लियोनार्दो द विंची लिखते हैं, ‘अच्छे चित्रकार को दो प्रमुख चीजों का चित्रण करना होता है, ‘मनुष्य और उसके मन की भावनाएं.’ लेकिन लेखक का दायरा अधिक विस्तृत होता है उसे मनुष्यता के अतिरिक्त अर्थ-राजनीति और समाज जैसे अन्य पक्षों के शाब्दिक चित्रण की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. ऐसी ही कोशिश संदीप जोशी ने अपनी पुस्तक ‘आज का हिंद स्वराज’ में की है.रजा पुस्तक माला की श्रृंखला के अंतर्गत प्रकाशित यह किताब राजकमल प्रकाशन और और रजा फाउंडेशन का सह-प्रकाशन है.
  कुल 20 अध्यायों में विभाजित 204 पृष्ठों की  ‘आज का हिंद स्वराज’ नामक यह पुस्तक अपने नाम के अनुरूप किताब अपना लक्ष्य स्पष्ट करती है. लेखक महात्मा गाँधी के ‘हिंद-स्वराज’ को आत्मसात करके वर्तमान के संदर्भ में विवेचनारत हैं. जैसा कि पुस्तक के आमुख में साहित्यकार ‘अशोक वाजपेयी’ लिखते हैं, ‘संदीप जोशी हमारे समय के कुछ जरूरी प्रश्न और उसके बेचैन उत्तर खोजने की ‘गुस्ताखी’ कर रहें हैं. यह गांधी की दृष्टि का हमारे कठिन समय के लिए पुनराविष्कार है.’
किताब प्रश्नोत्तर शैली में है. पाठक के रूप में प्रश्नकर्ता देश का आम जनमानस, विशेषकर युवा वर्ग है और संपादक के रूप में समाधानकर्ता लेखक हैं जो गाँधीवाद के आलोक में जवाब तलाशतें है. तो यूँ कह सकते हैं कि संदीप जोशी खुद प्रश्नकर्ता भी हैं और उत्तरदाता भी.प्रश्नकर्ता समालोचक भी है. वह सवालों में उस आलोचना को स्वर देता है जो आम भारतीयों के मन में है. वह तर्क करता है जिसमें आवेश भी है तथा सत्यान्वेषण की व्यग्रता भी. किताब प्रश्नोत्तर या वार्तालाप शैली में है.चूंकि यह दोनों भूमिकायें लेखक स्वयं निभाते हैं इसलिए किताब उनके अंतर्द्वंद का मुजाहिरा कराती है. जैसा कि मूल प्रस्तावना में लेखक लिखते हैं, ‘जो विचार यहां रखे गए हैं, वह मेरे हैं और मेरे नहीं भी हैं. वह मेरे हैं, क्योंकि उनके मुताबिक बरतने की मैं उम्मीद रखता हूं, वे मेरी आत्मा में गढ़े-जुड़े हुए जैसे हैं. वे मेरे नहीं हैं, क्योंकि सिर्फ मैंने ही उन्हें सोचा हो सो बात नहीं. कुछ किताबें पढ़ने के बाद में बने हैं. दिल में भीतर जो महसूस करता था उसका इन किताबों ने समर्थन किया.’
 लेखक की भाषागत समझ, तर्कपूर्ण लेखनी एवं मुद्दों की गहरी समझ सहज़ आकर्षित करती है. संदीप जोशी भाषाई विद्वता बरतने का प्रयास नहीं करते, फिर भी उनका भाषा स्तर उच्च है. किताब की भाषा में रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाले अंग्रेजी, उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का समावेश है. कई जगह अपभ्रश शब्दों का प्रयोग हुआ है जैसे कलजुग, अपन, बावलेपन, सीमेंटी, बौरा आदि तथा उर्दू-फ़ारसी के शब्दों में कुसूर, नशा, लत, मंजिल इत्यादि अंग्रेजी शब्दों में डॉक्टर, पार्लियामेंट, प्रीएम्बलम्, सेक्यूलर आदि का यथा स्थान प्रयोग किया गया है.यह लेखकीय मांग है जिससे विषय के परिपेक्ष्य में इससे भाषा चलायमान रहती है.
संदीप जोशी कोई पेशेवर पत्रकार या लेखक नहीं है लेकिन उनकी भाषागत समझ, तर्कपूर्ण लेखनी एवं मुद्दों की गहरी समझ सहज़ आकर्षित करती है.कहीं-कहीं प्रश्नोत्तर के क्रम की निरंतरता टूटती है और संपादक लंबे व्याख्यान देता है लेकिन वे बोझिल नहीं बल्कि रुचिपूर्ण हैं. जोशी जी समस्याओं के गहन विश्लेषण में नहीं जाते, अपनी बात कहते हैं अपना तर्क रखते हैं और अगले मुद्दे की और बढ़ जाते है. अपने तर्कों के समर्थन में वे मार्क्स, जॉन रस्किन से लेकर राहत इंदौरी और तुलसीदास कबीर और राहत इंदौरी तक के लेखन से उदाहरण उद्धृत करते हैं. लेखक ऐतिहासिक मुद्दों से वर्तमान का सामंजस्य स्थापित करते हैं. आलोच्य पुस्तक तर्कों और विमर्श पर आधारित है. जहाँ लेखक संवैधानिक विवादों पर तक़रीरें करते हैं. वे सभ्यता की बात करते हैं, संस्कृति की विवेचना करते है, धर्म-पंथ के आख्यान से जुड़ते है और अंततः हिंदुस्तानियत को तलाशते हैं.
 जोशी जी के तर्क चुटिले हैं. वे पाठक की समझ का परिमार्जन करेंगे.वे सभ्यता की बात करते हैं. वे संस्कृति की विवेचना करते है. वे धर्म-पंथ के विवादों पर तक़रीरें करते हैं. वे हिंदुस्तानियत को तलाशते हैं. यहाँ तक कि वे उपनिषद की कथा का उल्लेख भी प्रसंगवश करतें हैं. जैसे प्रजापति द्वारा देव, दानव और मानव को दिया गया उपदेश. ना सिर्फ पौराणिक इतिहास बल्कि जोशी जी वर्तमान को भी टटोल रहें हैं. ऐतिहासिक मुद्दों के संदर्भ में वर्तमान की विवेचना कर जाते हैं. इतिहास के संदर्भ में पाठक इसमें तथ्य तलाशेंगे तो निराश होंगे. यह तथ्यों के बजाय विमर्श और तर्कों पर आधारित है. जोशी जी असमानता गरीबी आदि की विवेचना करते हैं. अपने तर्कों के पक्ष में वे आंकड़े देते हैं. अपने तर्कों के पक्ष में लेखक आंकड़े देते हैं. जैसे, ‘जब केवल 5 प्रतिशत हिंदुस्तान की जनता के पास मोटरगाड़ी है तो विकास की सड़कों के नाम पर 95 प्रतिशत जनता को क्यों नजरअंदाज किया जाता है.’ ‘2018 के ही आंकड़े बताते हैं कि हिंदुस्तान के 1 प्रतिशत रईस पिछले साल 39 प्रतिशत और रईस हुए. वही सबसे निचले पायदान पर खड़े गरीब केवल 3 प्रतिशत संपन्न हुए हैं.
यह लेखक की वैचारिक यात्रा है जो आधुनिक परिपेक्ष्य में गाँधीवाद को व्याख्यायित करतें हैं. वे वर्तमान भारतीय के राजनीति-सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र के हर संदर्भ को समझने और समझाने की कोशिश करते हैं. विषयगत मुद्दे पर लेखक कहीं भी भटकते नहीं है. किताब को पढ़कर पाठक अपने नित्य जीवन से जुड़े हर पहलू यानि राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक विमर्श से ऐक्य महसूस करेंगे.वर्तमान के प्रासंगिक विमर्श को यह किताब बहुत ही सामान्य ढंग से समझाती है. युवाओं, विशेषकर नई पीढ़ी के लेखक और पत्रकारों के लिए यह पुस्तक विशेष पठनीय है.
 पुस्तक – आज का हिन्द स्वराज: समाज-संवाद
लेखक- संदीप जोशी
प्रकाशन- राजकमल प्रकाशन
मूल्य- ₹250

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