क्या जैविक हथियार है कोरोना?

ऋषिराज सिंह

कोराना वायरस दुनिया की नींद उड़ा चुका है। इसे जैविक हथियार के रूप में देखने वालों की कमी नहीं है। चीन के जिस वुहान शहर से यह वायरस दुनिया में हाहाकार मचा रहा उस चीन की गतिविधियां भी इस ओर इशारा करती है। वहीं कई मुल्क ऐसे भी हैं जो इस वायरस को अमेरिका की देन बता रहे। एक तरह से अब दुनिया की राजनीति करवट ले रही है। यह राजनीति आने वाले दिनों में भयावह होने के संकेत भी दे रही। पहले हम समझते हैं कि जैविक हथियार क्या होते हैं।

जीवाणुओं, वीषाणुओं,कीटों या फंगस जैसे एजेंटों के जरिए खतरनाक किस्म के संक्रमण को जब हमले के तौर पर इस्तेमाल किया जाए तो इसे जैविक युद्ध माना जाता है। केन एलिबेक की किताब ‘बायोहैजार्ड’ के मुताबिक रिफ्ट वैली फीवर वायरस,एबोला वायरस, जापानी नसेफलाइटिस वायरस, माचुपो, मारवर्ग, येलो फीवर और वैरिओला जैसे वायरसों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा चुका है। “द हिस्ट्री आफ बायोलाजिकल वारफेयर” जैसी रिपोर्ट की माने तो बीसवीं सदी में संक्रामक बीमारियों से 50 कोरड से ज्यादा मौते हुईं। इसमें लाखों मौतो का कारण जानबूझकर किए गए हमले थे।

हम सभी ने नाजियों के डाक्टर जोसेफ मेनजेल के मनुष्यों पर भयानक क्रूर प्रयोगों के बारे मे तो सभी ने सुना होगा। लेकिन नाजी मनुष्यों पर क्रूर प्रयोग करने वाले अकेले नहीं थे। जैविक हथियारों का इतिहास जापान का चीन पर हमले के बिना पूरा नहीं होता। जापान ने चीन पर 1932 में जैविक हमला किया था। इस हमले में एक हवाई जहाज से विषाक्त प्लेग के विषाणु छोड़े गए थे। पूर्वी चीन के गांवों के ऊपर जापानी विमानों ने कीटों और गेहूं के दानों का छिड़काव किया था। कुछ दिनों बाद इलाके में प्लेग फैल गया। इसका पुराना इतिहास है। करीब करीब 1500 ईसा पूर्व तक पीछे जाना पड़ेगा। यह वह समय था जब हित्तियों ने अपने विरोधियों पर ऐसे हथियार का इस्तेमाल किया था। जर्मनी की सेना ने पहले विश्व युद्ध में एन्थ्रेक्स नाम के जैविक हथियार को आजमाया।

जैविक हथियार बहुत खतरनाक होते हैं। अनियंत्रित होते हैं। जैविक हथियारों के हमले के लिए मंहगे साधनों की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए हवा,पानी, जानवर,पक्षी और मनुष्य का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके प्रयोग से हजारों लाखों लोगों को पल भर में मारा जा सकता है या बीमारियों के प्रभाव में तिल-तिल करके मरने के लिए छोड़ा जा सकता है। जैविक हथियार के प्रकार भी अलग-अलग हैं। खेती, पशुपालन आदि को तहसनहस करने वाले जैविक हथियार भी होते हैं। ऐसी हालत में उस इलाके की जनता भूख से मर जाए।

दुसरे विश्व युद्ध में दोनो ओर से जैविक हथियार का इस्तेमाल किया गया। जापान ने आंतों को टाईफाईड से ग्रस्त कर देने वाले वाइरस को सोवियत संघ के जल आपूर्ति करने वाले पाइपों में मिला दिया था। यही पहला युद्ध था जिसमें दोनों ओर से जैविक हथियारों का उपयोग किया गया। यही नहीं इसके पहले भी जैविक हथियारों का जिक्र मिलता है। जैविक हथियारो का प्रयोग 1346 में भी हुआ। यूरोपीय सेनाओं के खिलाफ प्लेग पैदा करने वाले जैविक हथियार का प्रयोग किया गया। इस हथियार का प्रयोग कर दोनो ने देख लिया था कि यह तो बहुत ही खतरनाक हथियार है। ऐसे में युद्ध के बाद दोनो पक्षों ने चिकित्सा के क्षेत्र में कई अविष्कार किए। इसी कड़ी में कई टीकों का अविष्ककार हुआ। ऐसे टीकों से कई बीमारियों से बचा जा सकता है, जिनसे यह बीमारियां पनपती है। इससे संबंधित कई कड़े कानून भी बने। दुनिया यह समझ गई थी कि यह एक विनाशक हथियार है। कई देशों ने इस हथियार का प्रयोग न करने की घोषणा भी की। यह अनियंत्रित है इसलिए इसके पक्ष में आमराय बनने में देरी भी नहीं हुई।

फिलहाल चीन कठघरे में है। वह कोरोना के त्रस्त देशों को अपनी दवाइयां बेचने के फिराक में है। इसका मतलब है कोरोना को व्यावसायिक रूप से चीन देख रहा है। लेकिन खबरों के मुताबिक चीन राज्यों को हड़पने की नीति पर चल रहा है। माओं के शासन के बाद तिब्बत को हड़प लिया। ताइवान और हांगकांग को हड़पना चाहता है लेकिन उसके सिर पर अमेरिका का हाथ है। सामारिक शक्ति उतनी नही कि वह अमेरिका से टक्कर ले सके। ऐसे में इस कोरोना हथियार पर चीन ने अपने वैज्ञानिकों को लगाया। क्रूर चीन इसे हांगकांग पर आजमाना चाहता था लेकिन उसमें वह सफल नही हुआ। विश्व विरादरी इसे बड़ी पैनी नजर से देख रहा है। वहीं चीन ने भी अमेरिका की घेराबंदी शुरू कर दी है। चीन समर्थक देश कोरोना के लिए अमेरिका का जिम्मेदार मान रहे हैं।

सीरिया के दैनिक पत्र अल थौरा, तेशरीन की रिपोर्ट और लेख इसे अमेरिका में तैयार किया गया बताते हैं। अरब डेली इसे चीन और ईरान की अर्थव्यवस्था तबाह करने के लिए अमेरिका ने कोरोना वायरस रचा। यही नही लेबनान,इराक,फीलिस्तीन,जार्डन आदि के अखबार भी अमेरिका को कोरोना का जिम्मेदार बता रहे है। हालांकि ये सभी देश अमेरिका विरोधी है। कोरोना को लेकर अभी राजनीति जारी है

 

इन कहानियों को अगर सही माना जाए तो अहम सवाल खड़ा होता है कि अमेरिका में ही इस वायरस का कहर इस कदर क्यों टूट रहा है? क्या अमेरिका अपने पर शक ज़ाहिर न करने के लिए अपने लोगों की इतनी बड़ी कुर्बानी दे रहा है? एक जवाब तो यही है कि यह अमेरिका की साज़िश नहीं है और उस पर जैविक हमले के आरोप गलत हैं क्योंकि अमेरिका साज़िश रचता तो इस वायरस की चपेट में खुद नहीं आता या इसका इलाज तैयार रखता.

दूसरी कहानी भी है, जो कहती है कि चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यह अमेरिका की ही साज़िश है. ग्लोबलरिसर्च पोर्टल का एक लेख कहता है कि जांचें जारी हैं और सच क्या है, पुष्ट नहीं है लेकिन ऐसा हो सकता है कि अमेरिका ने इस जैविक हमले की साज़िश रची हो और चाल गलत पड़ गई हो, जिससे उसका भी नुकसान हो रहा है और हालात बहुत बिगड़ चुके हैं.

दुनिया भर में 16 देशों को जैविक हथियारों के उत्पादन के लिए शक के दायरे में रखा जाता है. एनटीआई.ओआरजी पोर्टल की रिपोर्ट की मानें तो कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, ईरान, इराक, इज़रायल, जापान, लीबिया, उत्तर कोरिया, रूस, दक्षिण अफ्रीका, सीरिया, यूके और यूएसए के साथ ही ताईवान पर संदेह किया जाता है कि यहां जैविक हथियार संबंधी कार्यक्रम चल रहे हैं.

 

 

 

 

 

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