समाज के दबे-कुचले और गरीब वर्गों को पैसों का प्रलोभन देकर या फिर डरा-धमका कर उनका धर्मांतरण कराने की षड्यंत्रकारी गतिविधियां हिंदू जनमानस के लिए चिंता का विषय बनती जा रही हैं। देश के कई राज्यों ने इस संदर्भ में कानून बनाए हैं। लेकिन, इससे ज्यादा सख्ती की जरूरत है।
राजस्थान के श्रीगंगानगर से अत्यंत चिंताजनक समाचार प्रकाश में आया है। यहां हिंदू धर्म के लोगों के धर्मांतरण के लिए सक्रिय ‘फ्रेंड्स मिशनरी प्रेयर बैंड’ के इंचार्ज पौलुस बारजो का कहना है कि वह बीते 11 वर्षों में 454 हिंदुओं का ईसाईयत में मतांतरण करा चुका है। आखिर यह कैसे संभव हुआ? दरअसल, यह यूरोपीय शक्तियों के भारत भूमि पर आगमन और उपनिवेशवाद के दौर में प्रारंभ एक सुनियोजित योजना का परिणाम है, जो अब सार्वजनिक है। इसके लिए भारतीय धर्म-संस्कृति के विरुद्ध अनर्गल विचारों का प्रसार, प्राचीन भारतीय शिक्षण परंपरा का नाश और शिक्षा में यूरोपीय आधुनिकता के रोपण जैसे कई कार्य शामिल रहे हैं. इसकी पुष्टि भारत में आंग्ल शिक्षा के जन्मदाता लार्ड मैकाले द्वारा वर्ष 1836 में अपने पिता को लिखे गए एक पत्र से होती है। इसमें वह कहता है, ‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा नीति सफल हो जाती है तो 30 वर्षों के अंदर बंगाल के उच्च घराने में एक भी मूर्तिपूजक (हिंदू) नहीं बचेगा।’
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन काल में मतांतरण की गतिविधियों से कुपित होकर 1935 में महात्मा गांधी ने कहा था, ‘अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं, तो मतांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूं।’ मिशनरियों के मतांतरण के दुराग्रह को लक्षित करते हुए गांधी जी ने जब यह क्रोधपूर्ण भाव व्यक्त किया होगा, तब वह जरूर उनकी षड़यंत्रकारी मानसिकता के विरुद्ध आवेश में होंगे। यह अत्यंत चिंताजनक तथ्य है कि देश के प्राय: प्रत्येक राज्य में हिंदुओं के मतांतरण के लिए संगठित गतिविधियां चल रही हैं। यह ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के बाद से संगठित रूप से चलने वाला देश विरोधी कृत्य है। ऐसा नहीं है कि सरकारें इससे अनभिज्ञ रही हैं, बल्कि इन सब कृत्यों के प्रामाणिक दस्तावेज उपस्थित हैं। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जांच के लिए गठित ‘नियोगी समिति’ के प्रतिवेदन (1956-57) के अनुसार, ‘इन गतिविधियों के मूल में उनकी यह महत्वाकांक्षा है कि संख्या की शक्ति के आधार पर अपने लिए एक अलग ईसाई राज्य बना लिया जाए। वे इसी एक उद्देश्य से करोड़ों रुपए व्यय कर रहे हैं।’
एक समय अपने संबोधन में श्री गुरुजी (द्वितीय सरसंघचालक) ने सांप्रदायिकता के विविध स्वरूपों की विवेचना की थी, जिसके अनुसार हिंदू समाज की जीवनधारा के विरुद्ध व्यूह रचना में लिप्त अहिंदू समाज, क्षेत्रीयता की संकुचित भावना और अन्य प्रांतीय लोगों के प्रति अस्वस्थ दृष्टिकोण अपनाना भी शामिल है। मतांतरण द्वारा ऐसी ही सांप्रदायिकता का प्रसार किया जाता है। देश में मतांतरण का एक सबसे बड़ा परोक्ष संकट है, मतांतरित वर्ग में राष्ट्रीयता के विरुद्ध भावना का बीजारोपण। असल में धर्मांतरण केवल आस्था या धार्मिक विश्वास का परिवर्तन नहीं होता, बल्कि इसके साथ राष्ट्र विरोधी विघटनवादी प्रवृत्ति भी पैदा होती है। आधुनिक भारत के इतिहास में इसके प्रमाण उपलब्ध हैं कि मतांतरण का परिणाम सदैव राष्ट्र के लिए विघटनकारी स्वरूप में प्रकट हुआ है। नगा विद्रोह इसका ज्वलंत उदाहरण है। 1836-40 के बीच ईसाई मिशनरियों को नागा इलाकों में प्रवेश की अनुमति, बड़े पैमाने पर धर्मांतरण और जनवरी 1946 में नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) की स्थापना एवं आत्मनिर्णय के अधिकार की घोषणा के साथ नागा अलगाववाद का पदार्पण हुआ।
1953 में फिजो के नेतृत्व में सशस्त्र विद्रोह की शुरुआत और आजाद नगालैंड की स्थापना की घोषणा जैसी घटनाएं पूर्वोत्तर में मिशनरी पोषित अलगाववाद के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। 1963-64 में लालडेंगा के नेतृत्व में मिजो विद्रोह इसका अगला
पड़ाव था। कोहिमा प्रवास के समय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार किया था कि यह खुला विद्रोह ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित है। विदेशी ईसाई मिशनरी भारत में राष्ट्र विरोधी षड्यंत्र रच रहे हैं। एक अन्य उदाहरण ‘पृथक झारखंड आंदोलन’ का है। संयोगवश उसके नेतृत्वकर्ता एवं संविधान सभा के सदस्य रहे जयपाल सिंह भी मिशनरीज परंपरा में ‘दीक्षित’ हुए थे। वह मिशनरियों द्वारा ही आॅक्सफोर्ड पढ़ने भेजे गए थे। वर्तमान में कश्मीर घाटी में पैठा इस्लामिक आतंकवाद इसी मतांतरण का परिणाम है, जहां मूल हिंदू समाज से परिवर्तित लोग ही अब भारतीय राष्ट्रीयता के विरोधी हो गए हैं।
पंजाब में जिस तेजी के साथ मतांतरण हो रहा है, उससे आशंका जताई जा रही है कि अगले एक दशक में वहां सिख पंथ के अनुयायी अल्पसंख्यक हो जाएंगे। यही मतांतरित वर्ग खालिस्तान मूवमेंट का विदेशों से संचालन कर रहा है। भारत में हिंदू समाज पर मतांतरण की मार दोतरफा पड़ रही है। ईसाई मिशनरियों के अलावा इस्लामिक धर्मांतरण गिरोह भी सक्रिय हैं। हाल में उत्तर प्रदेश में एसआईटी की जांच में हुए खुलासे चौंकाने वाले थे। बलरामपुर में छांगुर और आगरा में अब्दुल कुरैशी गिरोह पैसे, झूठे पुलिस केस, लव-ट्रैप जैसे हथकंडे अपनाकर हिंदुओं का मतांतरण करने में लगे हुए थे। कुरैशी गिरोह द्वारा जिन दो सगी बहनों को इस्लाम में मतांतरण कराया गया, उनके पिता ने बताया कि इसके लिए उनकी बेटियों को कोचिंग की कुछ सहपाठी कश्मीरी छात्राओं ने बरगलाया था। कुरैशी गैंग इस कार्य के लिए नियमित वेतन पर कार्यकर्ता रखता था।
छांगुर गिरोह ने बाकायदा प्रशिक्षित लोगों की टीम बना रखी थी, जो हिंदुओं को मतांतरण के लिए उसके पास लाती थी। वास्तव में मतांतरण की इन षड़यंत्रकारी गतिविधियों से सिर्फ राष्ट्र की सुरक्षा नहीं, बल्कि उसके ताने-बाने और स्थापित व्यवस्था पर संकट मंडरा रहा है। देश सीमाओं पर पड़ोसी देशों के विरुद्ध संघर्ष का सामना कर रहा है। वैसे ही उसे अंदरूनी रूप से खतरा मतांतरण की इन गतिविधियों से है। इसी के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 लागू किया गया है। राजस्थान सरकार द्वारा भी राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2025 अभी ही पारित किया गया है। जरूरत इस बात की है कि अन्य राज्य सरकारें भी इस दिशा में गंभीर पहल करें। कानून बनाने के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि पुलिस-प्रशासन ऐसी गतिविधियों के खिलाफ अपेक्षित सख्ती बरते। एक बार महात्मा गांधी ने क्रिश्चियन एसोसिएशन आॅफ मद्रास की सभा को संबोधित करते हुए चेताया था, ‘धर्मांतरण राष्ट्रांतरण है।’ भारत की राष्ट्रीयता के प्रति उपजे इस संकट के संदर्भ में गांधी जी की चेतावनी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मतांतरण ‘राष्ट्रांतरण’ का रूप ले, इससे पहले ही देश को इसके प्रति सचेत हो जाना चाहिए। इसके लिए कुछ प्रभावी रक्षा उपाय आवश्यक हैं। जैसे कि रोजगारोन्मुखी शिक्षा का व्यापक लक्ष्य आधारित प्रसार होना चाहिए। जिस प्रकार कौशल भारत योजना (2015) और आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (2020) आदि का संचालन सरकार द्वारा किया जा रहा है, उसी प्रकार शिक्षा पद्धति भी भारतीय मूल्यों के अनुरूप होनी चाहिए। यही प्रयास नई भारतीय शिक्षा नीति (2020) में किया गया है। परिवार के साथ-साथ हिंदू समाज के संतों एवं धार्मिक आचार्यों का दायित्व है कि वे नई पीढ़ी को संस्कारों से पुष्ट करें। तभी देश इस संकट से सुरक्षित रह सकता है।
महात्मा गांधी ने कहा था, ‘अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं, तो मतांतरण का सारा धंधा ही बंद करा दूं।’ उन्होंने जब ऐसा क्रोधपूर्ण भाव व्यक्त किया होगा, तब वह जरूर मिशनरियों की षड़यंत्रकारी मानसिकता के विरुद्ध आवेश में होंगे।
(साभार युगवार्ता )
