किष्किंधा के बजरंगबली बनाम जाखू के हनुमान : कर्नाटक चुनाव.

के .विक्रम राव सर्वाधिक विलक्षण वाकया हुआ था गत शनिवार (6 मई 2023) कर्नाटक के मतदान में। तब दोनों प्रतिद्वंदी पार्टियों ने एक ही ईश्वर की स्तुति की थी। सत्ता दिलाने का वर मांगा था। अंजनिपुत्र से उनका अनुनय था कि क्लेश-विकार-पीड़ा हर लें। संकट मोचन करा दें। मगर सोनिया-कांग्रेस तो पूरी तरह “बजरंग” शब्द से ही दूर रही। बजरंग मतलब केसर, जो भाजपा का वर्ण है। अतः कांग्रेसियों ने भारी जबड़ाधारी हनुमान का सूत्र उच्चारा। तो पवनपुत्र असमंजस में पड़ गए। द्वापर में कृष्ण बच गए थे जब दुर्योधन और अर्जुन एक साथ द्वारका पहुंच गए थे, क्योंकि उन दोनों की चाह भिन्न थी। बेंगलुरु में तो दोनों का बस एक तकाजा ही था। विधान सौधा पर कब्जा ! अतिविश्वास में भाजपाई कोताही कर बैठे। वंदन-पूजन बिसरा बैठे। तभी प्रियंका जाखू शिला (शिमला) पर हनुमान मंदिर जा पहुंची। तप करने लगी। (चित्र देखें।) अब कंचन वर्णवाले, कानन-कुंडलधारी, हाथ में वज्र, कांधे पर मूंज के जनेऊधारी, केसरीनंदन ने ध्यानमग्न भक्तिन को अपने समीपस्थ पाया। अनुकंपा कर दी। बंगलुरु में केसरिया लोग लटक गये। नतीजन बजरंगबली का न दल काम आया, न बाण चल पाया।

 भगवान के ऊहोपाह का कारण भी स्पष्ट था। दोनों उपासकों ने एक ही वर मांगा था : चुनाव में बहुमत ! अतः प्रियंका वाड्रा चतुराई से नारी-सहज प्रत्युत्पन्नमति के कारण बेंगलुरु से ढाई हजार किलोमीटर दूर शिमला के जाखू पर्वत पर गईं। अपने अग्रज के लिए दया मांगी। निकटता से स्नेह जन्माता है। इसी पावन शिला पर (शिमला) कभी त्रेता युग में लंका युद्ध के दौरान मेघनाथ के बाण से घायल लक्ष्मण के लिए हिमालय से संजीवनी खोजते हनुमान यहीं आए थे। यक्ष ऋषि से तफ्तीश की। फिर उनका मंदिर निर्मित हुआ। बड़ा जीवंत है, फलदायक भी। अतः इस पुजारिन प्रियंका की याचना परमकृपालु ने सुन ली। शंकर-सुवन ने सोचा भी नहीं होगा कि कैसे स्वीकारी जाए एक पारसी पितामह (फिरोज घाण्डी) की पौत्री, रोमन कैथोलिक माता की बेटी, स्व. स्टीफेनो मायनो (फासिस्ट मुसोलिनी के सैनिक जो हिटलर की नाजी सेना के साथ स्टालिन से लड़े थे) की नातिन, मुरादाबाद के पीतल विक्रेता अब बिल्डर, भू-व्यापारी (रॉबर्ट) की धर्मपत्नी, इस 51-वर्षीया प्रौढ़ा प्रियंका की विनती ? मगर उन्हें अंततः इस वज्रकाय से वरदान मिल ही गया। बजरंगभक्त भाजपा आखिर शिकस्त खा ही गई ! तारक नरेंद्र मोदी भी पार्टी बचा न सके। वे रामभक्त का करिश्मा देखते रह गए। 

अब कन्नड़-भाषी भाजपाई यदि याद कर लेते कि मैसूर के निकट ही हॉस्पेट है जिसके आगे ऋषिमूक पर्वत पर राजा सुग्रीव के साथ वायुपुत्र रहते थे तो कम से कम वहीं जाकर बजरंगबली के मंदिर में पूजा कर आते। तब प्रियंका द्वारा हिमालय पर अर्चना की भांति इन भाजपाइयों की किष्किंधा पर आराधना के फलस्वरूप हनुमानजी तटस्थ रह जाते। परिणाम में कर्नाटक विधानसभा त्रिशंकु हो जाती। तब “आपरेशन लोटस” का चक्कर चल जाता। फिर हनुमान जी भी कहकर छूट जाते कि : “होहिये वही जो राम रचि राखा।”

 तो यह गाथा रही हनुमान-भक्तिन प्रियंका वाड्रा की। अब जिक्र हो यीशु की पुजारिन सोनिया गांधी का। उन पर दैवी कृपा कतई नहीं हो पाई। वे कर्नाटक की विधानसभा क्षेत्र के 224 सीटों में केवल एक सीट पर ही प्रचार करने पधारीं थीं। यह सीट थी 15वें मुख्यमंत्री (2012-13) रहे जगदीश शिवप्पा शेट्टार की जो ऐन चुनाव के वक्त भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उनकी नाराजगी की वजह थी कि भाजपा ने इस लिंगायत नेता का टिकट काटकर राज्य पार्टी महासचिव महेश तेंगिनकायी को नामित कर दिया था। सोनिया गांधी ने शेट्टार के लिए धुआंधार प्रचार किया। फिर दिल्ली लौट गईं। मगर भाजपा का कुछ बिगाड़ नहीं पाई। कांग्रेसी शेट्टार को भाजपाई महेश ने 34000 वोट से हराया। इस संवेदनशील हुबली-धारवाड़ क्षेत्र में सोनिया का असर नगण्य रहा। यूं शेट्टार का कांग्रेस में आना ही एक गमनीय घटना रही। गत सात दशकों से शेट्टार के कुटुंब पर संघ का प्रभाव रहा। छः बार वे स्वयं जनसंघ तथा भाजपा के विधायक रहे। उनके ताऊ सदाशिव शेट्टार 1967 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ से चुने गए थे। जगदीश के पिता पांच दफा जनसंघ से पार्षद रहे। लिंगायत जाति के धारवाड़ में बीस प्रतिशत मतदाता हैं। इसी क्षेत्र से मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (तब जनता दल) 15000 वोटों से 1994 में हारे थे। उनके पिता मशहूर मुख्यमंत्री (जनता दल) एस. आर. बोम्मई का हुबली गढ़ रहा है। यह बोम्मई ही थे जिनकी याचिका पर ही सर्वोच्च न्यायालय ने तय किया था कि मुख्यमंत्री का बहुमत विधानसभा के सदन में, न कि राजभवन के आंगन में, तय होगा। तभी से संविधान की धारा 356 के तहत राज्य सरकार को अपदस्थ करना दूभर हो गया। 

भाजपा के हुबली से लोकसभाई सांसद प्रहलाद जोशी संप्रति मोदी सरकार में कोयला मंत्री हैं, वे 2019 में जगदीश शेट्टार की मदद से ही जीते थे। अर्थात सोनिया गांधी की पुरजोर मदद के बावजूद दलबदलू जगदीश शेट्टार चुनाव हार गए। खबर गर्म है कि सोनिया-कांग्रेस शेट्टार को विधानसभा परिषद में नामित कर काबीना मंत्री बनाएंगी। किन्तु अचरज तो होता है कि वयोवृद्ध सोनिया गांधी (अब 76 साल की) एक विधानसभा क्षेत्र में भी अपने चहेते को चुनाव नहीं जिता पाईं। भाजपा अब समझ गई होगी।

 विंध्याचल के दक्षिण में रिश्वतखोरी और कमीशनबाजी गंभीर असर डालते हैं। बिहार जैसा नहीं जहां चारा चोरी एक रिवाज माना जाता है। खासकर गौपूजकों द्वारा। गुजरात में अक्षम मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को नरेंद्र मोदी ने बर्खास्त कराया। भूपेंद्र पटेल को लाए थे। जनाक्रोश घाट गया। बहुमत मिला। एस. आर. बोम्माई के क्या सुरखाब के पर थे ? वे लूली लंगड़ी, अनैतिक काबीना के पुरोधा रहे। कन्नड़भाषी प्रजा का नीर क्षीर विवेक भरपूर है। वरना कर्नाटक में भाजपा को चार बार सत्ता क्यों सौंपती ? इस बार क्यों नहीं चुना ? अंतर्मुखी होना पड़ेगा भाजपा को।

 

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