न्याय को खरीदने की नाकाम कोशिश

प्रज्ञा संस्थानइंदिरा गांधी सत्तालिप्सा में इतना आगे बढ़ गई थीं कि उन्होंने अपनी चुनाव याचिका पर विचार करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को साम-दाम-दंड-भेद यानी किसी भी तरीके से वश में करने की कोशिश की। इसका पता इमरजेंसी के बाद 1977 में जनता पार्टी के शासनकाल में चला। यह रहस्योद्घाटन जस्टिस सिन्हा ने खुद किया। उन्हें पैसों से लेकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने तक का प्रलोभन दिया गया। लेकिन न्याय फिर भी नहीं बिका।

वर्ष 1977 में सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी की सरकार के गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने काफी सूझबूझ से एकत्र की गई जानकारी लोकसभा में पेश की। वह दिन 20 जुलाई 1977 का था। लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, मारुति जांच आयोग के अध्यक्ष एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी. एस. माथुर श्रीमती इंदिरा गांधी की याचिका पर निर्णय से पहले जस्टिस सिन्हा से मिलने उनके घर गए थे। उन्होंने उन्हें अवगत कराया कि आज आप श्रीमती गांधी के हक में फैसला दीजिए और कल आप सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बन जाएंगे।

हो सकता है आप पर हमला

यह जानकारी स्वयं जस्टिस सिन्हा ने जस्टिस माथुर की भूमिका के बारे में चरण सिंह के जिज्ञासा पत्र के उत्तर में दी थी। यह पत्र गृहमंत्री ने जोरदार अफवाहें फैलने के कारण जस्टिस सिन्हा से यह जानने के लिए लिखा था कि क्या वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की सद्य: प्रकाशित पुस्तक ‘द जजमेंट’ में इंगित न्यायाधीश जस्टिस माथुर ही थे। गृहमंत्री ने सदन में दोनों न्यायाधीशों को लिखे गए अपने पत्र पेश कर दिए। चौधरी चरण सिंह ने जस्टिस सिन्हा को 8 जुलाई 1977 को एक पत्र लिखकर कुलदीप नैयर की पुस्तक में छपी इस बात की पुष्टि करनी चाही थी कि जस्टिस सिन्हा के जिस सहयोगी जज का इसमें उल्लेख किया गया है, क्या वे जस्टिस डी. एस. माथुर हैं? अपने उत्तर में जस्टिस सिन्हा ने लिखा कि 23 मई 1975 के सप्ताहांत में न्यायाधीश माथुर और उनकी पत्नी काफी रात गए अचानक ही मेरे घर पर आए।

पहले श्रीमती माथुर ने जस्टिस सिन्हा से कहा, ‘श्रीमती गांधी बदले की भावना रखती हैं और वे आपको परेशानी में डाल सकती हैं। यहां तक कि आप पर हमला भी करवा सकती हैं।’ श्रीमती माथुर ने आगे कहा कि यदि यह फैसला श्रीमती गांधी के पक्ष में जाता है तो श्री सिन्हा को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया जाएगा। ठीक इसी वक्त जस्टिस माथुर भी कमरे में दाखिल हो गए, जो अपनी पत्नी को वहां बातचीत के लिए छोड़कर थोड़ी देर के लिए बाहर चले गए थे। जस्टिस माथुर ने भी स्पष्ट रूप से वही बात कही, जो उनकी पत्नी ने कही थी।

सुप्रीम कोर्ट का जज बना देने का लालच

जस्टिस सिन्हा का पत्र मिल जाने के बाद चौधरी चरण सिंह ने जस्टिस माथुर को पत्र लिखकर बताया कि जस्टिस सिन्हा ने मेरे संदेहों की पुष्टि कर दी है। चरण सिंह ने कहा कि जस्टिस माथुर ने जस्टिस सिन्हा को यह आश्वासन दिया था कि श्रीमती गांधी का एक दूत यह खबर लाया था कि जस्टिस सिन्हा को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाए जाने की संभावना है और कहा कि उन्हें इस मामले पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए। गृहमंत्री ने कहा कि इसलिए मैंने जस्टिस माथुर को सुझाव दिया कि यह अच्छा होगा कि वह मारुति जांच से अपने आपको अलग कर लें। अपने उत्तर में जस्टिस माथुर ने जांच आयोग को त्यागपत्र भेज दिया और कहा कि अगर मेरी निष्पक्षता के बारे में जरा भी संदेह है तो मैं एक क्षण के लिए भी जांच में शामिल नहीं रह सकता।

जस्टिस माथुर ने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने किसी भी तरह जस्टिस सिन्हा को प्रभावित करने की कोशिश की या उनके सामने कोई पेशकश की। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि वे जस्टिस सिन्हा से मिले थे और उन अफवाहों का जिक्र किया था, जो उन्हें चीफ जस्टिस बनाने के बारे में थीं। गृहमंत्री ने कहा कि इस घटना को लेकर निश्चित रूप से जनता के मन में उत्पन्न संदेहों को देखते हुए जस्टिस माथुर का इस्तीफा देना उचित है।

इस प्रकार देखा जाए तो जस्टिस माथुर ने जो वृत्तांत पेश किया और पक्ष में जो दलील दी, वह अजीबोगरीब थी। उनका कहना था कि वे जस्टिस सिन्हा को केवल यह बताने गए थे कि इस तरह की अफवाह उड़ रही है। पता नहीं, सच्चाई क्या है? लेकिन जस्टिस सिन्हा का कथन अधिक विश्वसनीय प्रतीत होता है। जस्टिस सिन्हा के पत्र की सच्चाई पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। जस्टिस माथुर का यह कदम बड़ा नासमझीपूर्ण माना जाएगा कि वह रात बीते जस्टिस सिन्हा के घर तथाकथित अफवाह की सूचना मात्र देने के विचार से अपनी पत्नी के साथ गए थे, जिन्होंने बातचीत की शुरूआत की। क्या जस्टिस माथुर इस बात से वाकिफ नहीं थे कि इस तरह वे जस्टिस सिन्हा की मन:स्थिति को अनावश्यक रूप से झकझोरते हुए और उन्हें अशांत करते हुए लौटेंगे।

एक सूत्र के अनुसार, जस्टिस सिन्हा से जस्टिस माथुर की भेंट से पहले उत्तर प्रदेश के एक सांसद इलाहाबाद गए थे और उन्होंने जस्टिस सिन्हा को इशारे से कहा था कि क्या पांच लाख रुपए पर्याप्त होंगे? जस्टिस सिन्हा ने उन्हें चलता कर दिया था। इसका भी उल्लेख कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक में किया है। स्पष्ट है कि न्यायपालिका को भ्रष्ट करने की दृष्टि से यह सर्वाधिक काला कालखंड था।

सिन्हा को सीआईए का एजेंट बताया

श्रीमती इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन लोकप्रिय व शक्तिशाली मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को अपने पद से हटा दिया था। बताया जाता है कि इसका एक बड़ा कारण यह था कि श्रीमती गांधी को इस बात का रंज था कि एक प्रभावशाली, चतुर एवं व्यवहार कुशल मुख्यमंत्री होते हुए भी वे जस्टिस सिन्हा को उनके हक में फैसला देने के लिए प्रेरित नहीं कर सके। फैसला आने के बाद दिल्ली में प्रधानमंत्री के निवास स्थान के बाहर कुछ कांग्रेसजनों ने एकत्र होकर जस्टिस सिन्हा के खिलाफ नारेबाजी की। उनके पुतले भी जलाए और उन्हें आरएसएस का आदमी बताया। दिल्ली के अंग्रेजी दैनिक ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने कांग्रेसजनों द्वारा जस्टिस सिन्हा को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का एजेंट बताकर उनकी भर्त्सना करने वाले पोस्टर का सचित्र समाचार भी छापा था।

  ( लेखक – बलबीर दत्त)

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