लोकसभा का यह आम चुनाव भविष्योन्मुखी है। कैसे और क्यों? यही जानने का विषय है। इससे पहले के ज्यादातर चुनाव अतीत की उलझनों पर केंद्रित होते थे। सिर्फ एक चुनाव अपवाद है। वह 1977 का है। उस चुनाव में यह प्रश्न था कि लोकतंत्र बहाल होगा या नहीं? जनता ने लोकतंत्र को चुना। इंदिरा गांधी की तानाशाही को पूरी तरह नकारा। उस चुनाव को भी एक हद तक भविष्योन्मुखी कह सकते हैं। उससे लोकतंत्र की नई यात्रा शुरू हुई। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपनी सभाओं में यह बताते हैं कि आपके एक वोट की ताकत से मैं यहां तक पहुंचा हूं, तो वे एक नागरिक को लोकतंत्र के प्रति सजग करते हैं और उसे अपने कर्तव्य पालन के लिए प्रेरित करते हैं।
लेकिन यह चुनाव भविष्योन्मुखी इसलिए है, क्योंकि देश विकसित भारत के लक्ष्य से प्रेरित है। पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ा है। इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मविष्वास से भर दिया है। कोई देश और उसका समाज जब अपने आत्मबल को पहचान लेता है, तो उसमें अपार क्षमता उत्पन्न हो जाती है। आजादी के अमृत महोत्सव से यह भाव हर नागरिक के मन में पैदा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में देश की आकांक्षा को जगाया। प्रषासन तंत्र को उस दिषा में चलने के लिए हर कदम पर सजग बनाया। सचेत बनाया। प्रशासन तंत्र आकांक्षी भारत का एक मजबूत उपकरण बनने की दिशा में बढ़ा।
अपने दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकांक्षा को आत्मबल में रूपांतरित किया। विचार को कार्यरूप में परिणत करने के लिए देष को जगाया। विकसित भारत का लक्ष्य सामने रखा। सिर्फ लक्ष्य निर्धारण काफी नहीं होता। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अधिक दूसरा कौन है जो जानता है। इसके अनेक उदाहरण आज लोगों को याद है। उन्हें यहां बताने की जरूरत नहीं है। लोग चकित होते हैं और स्वयं से यह सवाल पूछते हैं कि इतना अधिक उर्जावान प्रधानमंत्री क्या कभी पहले हुआ है? यह प्रश्न ही अपने आप में एक प्रसंषा भाव है। उस प्रसंशा भाव को इस लोकसभा चुनाव में हर जगह देखा जा सकता है। लोग यह अनुभव करने लगे हैं कि देश में जिसकी सबसे पहले जरूरत थी वह अब पूरी हुई है। वह है भारत बोध का जागरण। विकसित भारत के लक्ष्य को इसी बल से प्राप्त किया जा सकता है।
इन दिनों मीडिया में प्रधानमंत्री के इंटरव्यू छपे हैं। उन्हें खूब ध्यान से पढ़ा जा रहा है और सुना भी जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह पहला आम चुनाव है जो सरकार की उपलब्धियों से भरा हुआ है। अपनी उपलब्धियों के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुनः जनादेश के लिए चुनाव मैदान में है। लेकिन चुनाव तो चुनाव ही है। भले और बुरे का चुनाव। सकारात्मकता और नकारात्मकता के बीच चुनाव। भारतीयता और औपनिवेषिकता की नाजायज संतानों के बीच चुनाव। ऐसे दो के बीच चुनाव की लंबी सूची बनाई जा सकती है। वह इस चुनाव में भी है। जो बातें सतह पर तैरती हुई दिख रही हैं, वे क्या इस चुनाव को एक पहेली बनाने में सफल होंगी? यह प्रश्न है और बहुत स्वाभाविक लगता है।
लेकिन स्वभाविक लगना एक बात है और वास्तव में स्वाभाविक होना दूसरी बात है। कांग्रेस इस बार मुखौटे की राजनीति कर रही है। ऐसा जब होता है तब चेहरा छिप जाता है और वह दिखाया जाता है जो सिर्फ नाटक के मंच तक सीमित होता है। इसे जानने के लिए कांग्रेस के नेताओं द्वारा उछाले जा रहे कुछ बातों को साफ–साफ समझने की जरूरत है। जिसे कांग्रेस के नेता सबसे बड़ी बात अपनी समझ से बनाना चाहते हैं, वह क्या है? वह आरक्षण का विषय है। वे जो कुछ अनाप–सनाप बोल रहे हैं, उसकी ध्वनि डराने की है। एक असुरक्षा का भाव पैदा करने की वे कोशिश कर रहे हैं। ऐसा कौन करता है और कब करता है? जब वह स्वयं भयभीत हो। इस तरह यह समझें कि कांग्रेस इस चुनाव में बेतरह भयभीत है।
वह क्यों भयभीत है? इसका सीधा सा उत्तर है। कांग्रेस हताश और निराश है। उसके स्वर और उसकी बातें ही खुद इसका बयान कर रही है। लेकिन यह कहना अपने आप में काफी नहीं है, जब तक इसके कारण न खोज लें। इसके कारण खोजने के लिए हमें आस–पास भटकने की जरूरत नहीं है। सिर्फ यह जान लेना है कि मोटे तौर पर दो बडे़ कारण कौन से हैं? इसे जानने के लिए 2013 के दौर को अपनी याददास्त में एक बार ले आना ही काफी है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रहे थे। उसके आखिरी तीन साल भ्रष्टाचार, कुशासन और मनगढ़ंत हिन्दू आतंकवाद के घटाटोप में घिरा हुआ था। अन्ना आंदोलन किसे याद नहीं होगा! हिन्दू आतंकवाद की मनगढंत कल्पना किसकी थी? कौन था निशाने पर? शिकारी कौन था? यह उस शासन के दसवें साल का एक शब्दचित्र है।
कांग्रेस नेता अब पा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके प्रधानमंत्री के ठीक विपरीत उपलब्धियों के पहाड़ पर खड़े हैं। तभी तो जितने भी सर्वे आए हैं, वे बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता 2014 के मुकाबले कई गुना बढ़ी है। यह कांग्रेस की हताषा का पहला कारण है। इसी तरह दूसरा कारण भी खोजना बहुत सरल है। उसी तरह जैसे कोई अपनी आंख धीरे–धीरे खोले और सूरज की रोषनी को देखे–अनुभव करे। करीब पांच सौ साल से हर भारतीय की एक ही आकांक्षा थी कि अयोध्या में राम जन्म स्थान पर मंदिर बने। यह ऐसा सपना था जिसके पूरे होने में संदेह का अपार अंधेरा ही अंधेरा दिखता था। यह बात अवष्य याद करनी चाहिए कि हिन्दू समाज अपने सपने के लिए अनवरत लड़ता रहा।
वह सपना पूरा हुआ। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। जो चमत्कार घटित हुआ, वह अभी इतिहास नहीं बना है। लोगों की स्मृति में तरोताजा है। यह दूसरा कारण है कि कांग्रेस इस चुनाव में उम्मीदें छोड़ चुकी हैं। इसके कुछ प्रमाण साफ–साफ दिख रहे हैं। रोज कोई न कोई कांग्रेस छोड़कर भाजपा में दाखिल हो रहा है। कांग्रेस अब यह आरोप नहीं लगा सकती कि वे लोग किसी अपने स्वार्थ से भाजपा में जा रहे हैं। इस दौर में जितने लोग कांग्रेस से भाजपा में आए हैं, वे सभी एक ही बात कह रहे हैं कि उन्हें कांग्रेस में इसलिए प्रताड़ित, अपमानित और दंडित किया जा रहा था क्योंकि वे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हुए, या रामलला के दर्शन करने गए। दूसरी बात जो वे कह रहे हैं वह यह है कि कांग्रेस में वातावरण रामद्रोह का है। यह बात कांग्रेस पर इस कारण भी चिपक जाती है क्योंकि जवाहरलाल नेहरू से राहुल गांधी तक एक रामद्रोह की कलुषित कहानी है। उसमें नया काला पन्ना जुड़ा जब प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को सोनिया गांधी ने ठुकराया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस बारे में मीडिया ने पूछा है। उन्होंने जो उत्तर दिया है, वह सकारात्मक है। एक प्रश्न के उत्तर में उनका कहना है, ‘राम मंदिर हमारे देश के लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है। यह पांच सौ वर्षों की सभ्यता का संघर्ष है। जिसे सुलझा लिया गया है। भारतीयों की कई पीढ़ियों की प्रार्थनाओं का सुफल मिल गया है।’ कांग्रेस ने इसे नहीं समझा और अपनी भूल के लिए देष से माफी भी नहीं मांगी। इस कारण कांग्रेसी जड़ नेतृत्व से खुद को अलग कर रहे हैं। इसका चुनाव से संबंध बड़ा गहरा है। कांग्रेस पहली बार अपने इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वह 328 सीटों पर उम्मीदवार देने का दावा कर रही है। लेकिन सच्चाई बिल्कुल दूसरी है। वास्तव में कांग्रेस मात्र 150 सीटों पर ही लड़ रही है। पुरी लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार सुचरिता मोहंती ने जो खुलासा किया है वह कांग्रेस के दावे की पोल खोल देता है।
ऐसी कांग्रेस के नेता जनता को भ्रमित कर रहे हैं कि भाजपा 400 सीटें क्यों जीतना चाहती है। इस पर भ्रम के बादल बनाने के झूठे प्रयास कांग्रेस कर रही है। लेकिन उसे हर प्रयास में करारी चपत लग रही है। कांग्रेस मुद्दे उछाल कर समझती थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सफाई देंगे। लेकिन उसे कड़वी सच्चाई का घूंट पीकर बार–बार मायूस होना पड़ रहा है। इसे कुछ उदाहरणों से समझें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 400 सीटें की जरूरत को कई आयाम दे दिए हैं। पहला कि एस.सी, एस.टी और ओ.बी.सी. के अधिकारों की रक्षा करनी है। उन्हें जो आरक्षण मिला है, उसे कांग्रेस छीनना चाहती है और मुसलमानों में बाटना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे इस तरह कहा है, ‘कांग्रेस को मैंने तीन चुनौतियां दी हैं। आज कांग्रेस और सहयोगी जवाब दें कि वे धर्म के आधार पर आरक्षण के लिए संविधान नहीं बदलेंगे। वे जवाब दें कि एस.सी, एस.टी ओ.बी.सी का आरक्षण छीनकर धर्म के आधार पर नहीं बांटेंगे। मेरी तीसरी चुनौती है कि कांग्रेस लिखकर दे कि जहां उनकी राज्य सरकार है, वहां ओ.बी.सी कोटा कम करके धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण नहीं दिया जाएगा।’ इसमें एक नया आयाम उन्होंने यह कहकर जोड़ा कि भाजपा इसलिए 400 सीटें जीतना चाहती है ताकि कांग्रेस राम मंदिर पर बाबरी ताला न लगा सके। कांग्रेस के प्रलाप पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ–साफ जो कहा, वह सफाई नहीं हैं, सच है। सच ही जीतता है।