बिहार चुनाव की तैयारी दिखने लगी है। पाला बदलने का दौर शुरू हो गया है। शीत, मीत और पीत के दौर में कौन, कब और किसका साथ छोड़ जाए, कुछ भी कहना मुश्किल है। इसी कड़ी में प्रशांत किशोर की पार्टी ‘जनसुराज‘ में आरसीपी सिंह की पार्टी ‘आसा‘ का विलय किया गया है।आरसीपी सिंह की बेटी को जनसुराज से टिकट भी मिल गया है I
बिहार और राजनीति एक-दूसरे के पर्याय भी माने जाते हैं।अगले महीने बिहार में चुनाव होने वाला है। इसकी तपिश अभी से अनुभव किया जा सकता है। सारी पार्टियां अपने-अपने चौसर की गोटियां दुरुस्त करने में जुटी हैं। जोड़-तोड़ की राजनीतिक शुरू है। नेता एक को छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल हो रहे हैं। एक पार्टी का दूसरे में विलय हो रहा है। मतदाता इन्हें देख और समझ रही है। सब अपनी सीट, जीत और भविष्य को पक्का और मजबूत करने में लगे हैं। एनडीए और महागठबंधन में यह सब तो चल ही रहा है लेकिन नई नवेली पार्टी जनसुराज भी अब इससे अछूता नहीं रह गया है। पिछले उपचुनाव में कई सीटों पर हाथ आजमा चुके प्रशांत किशोर बहुत जल्दी यह समझ गए कि बंद कमरे के रणनीति से धरातल की राजनीति अलग होती है। इसी को ध्यान में रखकर कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अत्यंत विश्वस्त रहे आरसीपी सिंह (रामचंद्र प्रसाद सिंह) जनसुराज का दामन थाम लिए हैं।
अगस्त 2022 में जद(यू) से निलंबित होने के बाद इन्होंने अपनी खुद की नई पार्टी बनाई। नाम रखा था- आप सबकी आवाज (आसा)। आरसीपी सिंह ने अपनी पार्टी ‘आसा’ का जनसुराज में विलय कर दिया है। आरसीपी सिंह एक मंजे हुए नौकरशाह, राजनेता और नीतिकार रहे हैं। नीतीश कुमार उनकी इस प्रतिभा से ही प्रभावित होकर इन्हें जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बनाया था। लेकिन राजनीति ने अपना रंग बदला तो आरसीपी सिंह ने भी अपना रंग बदल लिया। वह खुलेआम जद(यू) और नीतीश कुमार की आलोचना करने लगे। वह भी सार्वजनिक मंच पर। नीतीश के विरुद्ध होकर केंद्र में मंत्री भी बने रहे। नीतीश की आलोचना कर वह जद(यू) में लंबे समय तक नहीं रह सकते थे। इसलिए जद(यू) ने हाथ खींच लिया तो भाजपा की टहनी पे जा बैठे। यह टहनी मजबूत तो बिल्कुल नहीं था। सो धड़ाम से गिरे और चारों खाने चित्त हो गए। पुराना तजुर्बा था तो कई पार्टियों से होते हुए खुद ही एक नई पार्टी बना डाला। फिर भी सफलता हाथ नहीं लग रही थी। बेचैनी सी थी। तभी उनकी ओर प्रशांत किशोर ने हाथ बढ़ाया उन्होंने भी आगे बढ़कर उस हाथ को थाम लिया।
जनसुराज का दामन थामने के बाद आरसीपी सिंह ने कहा, ‘देर से ही सही पर सही जगह आ गया हूं।‘ वह मानते हैं कि प्रशांत किशोर और मेरी राय बहुत हद तक मिलती-जुलती है। जहां थोड़ा-बहुत मतभेद है, उसे भविष्य में ठीक कर लिया जाएगा। वैसे बताते चलें कि जब आरसीपी सिंह जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे, तभी प्रशांत किशोर जद(यू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। 2020 में इनकी (प्रशांत किशोर) बगावती तेवरों से परेशान होकर नीतीश कुमार ने इन्हें पार्टी से निकाल बाहर किया। प्रशांत किशोर इससे पूर्व विभिन्न पार्टियों के चुनावी रणनीतिकार हुआ करते थे, तो आरसीपी सिंह भारतीय विदेश सेवा और बिहार राज्य के प्रधान मुख्य सचिव के दौरान नीतीश के अत्यंत विश्वस्त थे। दोनों को राजनीति का चस्का लगा तो वह अपनी प्रतिभा का उपयोग खुद को नेता बनाने में लगा दिया।
खैर, इस घटना पर प्रशांत किशोर का कहना है कि हम दोनों मिलकर बिहार का सूरत बदल देंगे। विकास के लिए मिलकर काम करेंगे। ट्रिपल सी (क्राईम, करप्शन और कम्युनलिज्म) को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए ही यह गठबंधन किया जा रहा है, न कि औरों की तरह सत्ता की मलाई खाने के लिए। देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि किस तरह से एक ही पार्टी से निष्कासित दो बागी नेता एक होकर, बिहार की राजनीति को प्रभावित और संचालित करते हैं।
(साभार युगवार्ता )