नरेंद्र मोदी
आपातकाल के दौरान गुजरात ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की तानाशाही के खिलाफ आमजन की आवाज राज्य की सतत सक्रियता के चलते मुखर हुई। देश को एकजुट करने का लक्ष्य इसी जमीन से साधा गया। कैसे? पढ़िए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कलम से…
गुजरात एक वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद विश्रांति ले रहा था। लोक नेता भी जनता सरकार बनने के बाद तनिक चैन की सांस ले रहे थे। तभी एकाएक 25 जून 1975 की ग्रीष्मकालीन रात्रि के पिछले पहर गुजरात के नेताओं के टेलीफोन बज उठे। एक अनापेक्षित घटना घटित हुई थी। इतना कठोर कदम सरकार उठाएगी, इसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। रात भर दिल्ली से फोन पर संदेश आते रहे…
४ जे. पी. गिरफ्तार।
४ मोरारजी भाई को पकड़ लिया गया।
४ नानाजी को ढूंढ़ा जा रहा है।
४ संघ के कार्यालय को पुलिस ने घेर लिया।
४ राजनीतिक दलों के कार्यालयों पर पुलिस के छापे।
४ सारे दिल्ली शहर में पुलिस की गाड़ियां घूम रही हैं। कहीं-कहीं पर सेना के वाहन भी दिखाई पड़ रहे हैं।
४ अखबारों का भी संपर्क नहीं हो पा रहा।
४ कहीं-कहीं पर टेलीफोन ‘रिसीव’ करने का काम पुलिस द्वारा ही किया जा रहा है।
४ माजरा समझ से बाहर है।
४ आप लोग अपने स्थान से हट जाएं।
४ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय को खाली कर दिया जाए।
४ महत्त्वपूर्ण कागजात और फाइलें सुरक्षित स्थान पर भेज दी जाएं।
४ दिल्ली आरएसएस कार्यालय से प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है।
४ इन समाचारों से बंबई को अवगत करवाएं।
दूसरा फोन:-
४ नागपुर की सूचना मिलते ही दिल्ली को अवगत करवाएं।
४ वस्तु स्थिति के स्पष्ट न होने तक गिरफ्तारी से बचें, सभी को सूचित करें।
४ अटल जी, आडवाणी जी बंगलौर में हैं।
४ तमिलनाडु सरकार की क्या स्थिति है?
– ४ अनजाने फोन आने पर कोई जानकारी न दी जाए।
रेडियो से तानाशाह अपना प्रथम वायु-प्रवचन प्रसारित करवाएं, उससे पहले कांकरिया मणीनगर क्षेत्र में स्थित आरएसएस का आंचलिक कार्यालय सुबह होने तक चहल-पहल से धमक उठा था। संघ प्रचारक एवं प्रदेश जनसंघ के मंत्री श्री नाथाभाई झघड़ा रात भर संदेशों का आदान-प्रदान करते रहे। हम सभी कार्यालय को ‘ठीक-ठाक’ करने में व्यस्त हो गए। सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख व्यक्तियों को सवेरे तक समाचार मिल चुके थे। स्थिति की गंभीरता की भनक सभी को लग चुकी थी। हालांकि गुजरात में मोरचा सरकार के होने से अन्य राज्यों की तरह प्रत्यक्ष हमलों को झेलने की नौबत अभी नहीं आ पाई थी। गुजरात में उपलब्ध इस ढील के कारण आपातकाल की प्रथम रात्रि से ही अहमदाबाद समाचार संदेशों के आदान-प्रदान का अखिल भारतीय केंद्र बन गया।
प्रात:काल से ही समग्र शहर में एवं गुजरात में इस घातक कृत्य के समाचार फैल चुके थे। सही समाचार को जानने की जिज्ञासावश अहमदाबाद में कांग्रेस भवन के कार्यालय पर लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। वातावरण अत्यंत उत्तेजनामय था। सारे अग्रगण्य राजनीतिज्ञ एवं पत्रकार वहां उपस्थित थे। भीड़ बढ़ती जा रही थी। लोग आदेश के इंतजार में खड़े थे। सभी के मन में किसी अनहोनी का अंदेशा था। तभी श्री वसंतभाई गजेंद्र गडकर बाहर निकले। हाथ में छोटा सा माइक्रोफोन था। उन्होंने सभी से शांति की अपील की। उपलब्ध सही समाचारों से सभी को अवगत कराया। संघर्ष समिति की आपातकालीन बैठक बुलाई गई। इस बैठक में आपातकाल के गुजरात व्यापी प्रतिकार का निर्णय किया गया। गुजरात भर में 26 व 27 जून को दो दिनों की हड़ताल का आदेश जारी किया गया। 26 को यथासंभव सभी गांवों, शहरों में जनसभाओं का आयोजन कर आपात स्थिति के विरोध में प्रदर्शनों का निर्णय लिया गया। उसी दिन अहमदाबाद में भी शाम छह बजे जयप्रकाश चौक में सभा का आयोजन किया गया।
हड़ताल
आपात स्थिति के समाचार जैसे-जैसे फैलते गए, वैसे-वैसे उसके विरोध का प्रभाव भी तीव्र होता गया। अहमदाबाद में बाजार खुलते ही बंद हो गए। विद्यार्थी स्कूल-कॉलेजों से बाहर आ गए। अहमदाबाद में उच्च न्यायालय सहित सभी कार्यालय बंद रहे। वकीलों ने आपात स्थिति का प्रतिकार करते हुए जुलूस निकाला और जनसभा का आयोजन कर इंदिरा के अलोकतांत्रिक आचरण की कड़ी भत्र्सना की। तुरंत ही बड़ौदा शहर में एक ‘जनता संघर्ष समिति’ गठित की गई। 26 जून को संस्था कांग्रेस के श्री मनूभाई पटेल की अध्यक्षता में आयोजित एक जनसभा में लोकतंत्र के पुन: स्थापन के लिए मुकाबला करने का प्रण किया गया।
गुजरात के हर छोटे-बड़े गांव में हड़ताल पूर्ण सफल रही। सूरत, वलसाड़, भरूच, वडोदरा, नडियाद, महेसाणा, भुज, जामनगर, राजकोट, जूनागढ़, भावनगर जैसे मुख्य शहरों में भी जनसभाएं आयोजित की गईं। अहमदाबाद में श्री बी. के. मजूमदार की अध्यक्षता में जयप्रकाश चौक में एक जनसभा आयोजित हुई। दिन भर के उत्तेजनापूर्ण वातावरण के पश्चात इस सभा में विशाल जनसमूह एकत्र हुआ था। सारे दिन बाबूभाई जशभाई पटेल की गिरफ्तारी की अफवाहें उड़ती रही थीं। श्री वसंतभाई गजेंद्र गडकर एवं श्री दिनेशभाई शाह ने सभा को संबोधित किया। अन्य राज्यों से प्राप्त समाचारों की जानकारी उन्होंने उपस्थित लोगों को दी। श्रीमती गांधी द्वारा भारत की प्रजा को दी गई चुनौती को स्वीकार करते हुए उसके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिए उन्होंने जनता का आह्वान किया। गुजरात में ‘मोरचे’ की लोकतांत्रिक सरकार होने के कारण इस संघर्ष में देश का नेतृत्व करने की नैतिक जिम्मेदारी गुजरात के कंधों पर थी। अत: इस जिम्मेदारी को निभाने का निर्णय किया गया। श्री वसंतभाई ने ‘नवनिर्माण’ के रंग से सराबोर युवाओं से अपील करते हुए कहा, ‘याद रहे, पथराव से वातावरण को कलुषित न किया जाए।’ इस अपील का प्रभाव भी आश्चर्यजनक रहा। खाड़िया जैसे उग्र क्षेत्र में भी शांतिपूर्ण प्रतिकार का परिचय दिया गया। मर मिटने पर उतारू गुजरात की यह संयम शक्ति अप्रतिम थी।
अधिकांश राष्ट्रीय नेता गिरफ्तार हो चुके थे। 26 जून की देर रात तक अनेक कोशिशों के बावजूद किसी राष्ट्रीय नेता का संपर्क न हो पाया था। ‘गुजरात लोक संघर्ष समिति’ और ‘केंद्रीय लोक संघर्ष समिति’ के बीच का संपर्क भी छिन्न-भिन्न हो गया था। गुजरात पर भी कब और कैसी आपत्ति आ जाए, इसका अनुमान लगाना कठिन हो गया था। देश की परिस्थिति को देखते हुए गुजरात तूफानी समुद्र के बीच स्थित द्वीप के समान बिलकुल अलग-थलग पड़ गया था। आपात स्थिति के प्रभाव को अधिकाधिक व्यापक बनाने के लिए सरकार की ओर से शुरू की गई कार्रवाइयों को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर किसी भी समय हमला हो सकता था। गुजरात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक श्री केशवरावजी देशमुख आपातकाल की घोषणा के समय जामनगर जिले के दौरे पर थे। वे भी अपने दौरे को बीच में ही रोककर अहमदाबाद वापस आ गए। संघ के कुछ प्रमुख कार्यकर्ता भी उपलब्ध जानकारी के सहारे वस्तुस्थिति का आकलन करने के लिए एकत्र हुए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित किया जाएगा, यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था।
नई व्यवस्थाएं
संघ पर प्रतिबंध लगाए जाने के पहले ही संगठन की संपर्क-श्रृंखला को आयोजनबद्ध कर लेने का निर्णय किया गया। इस नई व्यवस्था से संबद्ध आवश्यक सूचनाओं को लेकर कार्यकर्ता प्रत्येक जिले में पहुंच गए। 30 जून से पहले ही प्रांत के प्रमुख स्थानों के बीच नई व्यवस्था का तंत्र बिछा लिया गया। संघ के कार्यालयों को गुप्त स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया। तभी 30 जून के दिन श्री बालासाहब देवरस की गिरफ्तारी का समाचार आया। अब संघ पर प्रतिबंध लगना निश्चित था। 26 जून से ही भूमिगत हो चुके ‘केंद्रीय लोक संघर्ष समिति’ के मंत्री श्री नानाजी देशमुख एवं अन्य बचे हुए केंद्रीय नेता देश के सभी राज्यों से संपर्क करने को प्रयत्नशील थे। उन आरंभिक दिनों में दिल्ली में ही रहते हुए यह कार्य कर पाना बहुत ही कठिन था। दिल्ली में ही रहने वाले भूमिगत नेताओं के लिए भी परस्पर संपर्क स्थापित कर पाना संभव न हो पाया था। अत: इस कार्य में गुजरात कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है, इन संभावनाओं को जांचने के लिए दिल्ली से जनसंघ के एक भूमिगत कार्यकर्ता श्री रामभाई गोडबोले अहमदाबाद आए। उनके पास दिल्ली के वातावरण की विस्तृत जानकारी थी। उन्होंने गुजरात के सभी अग्रगण्य नेताओं से मुलाकात कर बदली हुई परिस्थिति पर उनके साथ विचार-विमर्श किया। गुजरात की अनुकूल परिस्थितियों का इस लड़ाई में कितना उपयोग किया जा सकता है, इस बारे में भी सोचा गया। उनके आने से गुजरात के लिए दिल्ली में रह रहे नानाजी देशमुख के साथ संपर्क स्थापित कर पाना संभव हो सका।
बदली हुई परिस्थिति पर विचार करके नई व्यूह-रचना करने के लिए अहमदाबाद में गुजरात जनसंघ के प्रांत भर के कार्यकर्ताओं की एक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में एक बात पर तो सभी एकमत थे कि श्रीमती गांधी गुजरात सरकार को पदच्युत करके सोते हुए सांप को जगाने का दु:साहस कदापि नहीं करेंगी। दूसरा मंतव्य यह भी था कि श्रीमती गांधी मोरचा सरकार को पदच्युत करने की बजाय अपनी स्थिति मजबूत होने पर पक्षांतरण के हथकंडों के जरिए मोरचा सरकार को परास्त करना अधिक पसंद करेंगी। इन संभावनाओं के बावजूद आने वाली किसी भी विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार रहने का निर्णय भी किया गया।
गुजरात के सामने अब दो प्रकार से आपात स्थिति का सामना करने की स्थिति आन पड़ी थी। सबसे पहले तो गुजरात की प्रतिकार शक्ति को निरंतर सचेतन बनाए रखना था। दूसरा कार्य था, देश के अन्य राज्यों में शुरू हुए भूमिगत आंदोलन एवं भूमिगत कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाए रखते हुए देश के साथ संयोजन स्थापित करने का। प्रतिकार शक्ति को सचेतन बनाए रखने के कार्य में तो ‘गुजरात लोक संघर्ष समिति’ पर्याप्त रूप से सक्रिय थी, परंतु केंद्र एवं अन्य राज्यों से संबंध बनाए रखने के लिए नए सिरे से विशेष व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता थी। सभी राज्यों से संपर्क स्थापित कर जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिए एक विशाल संगठन की आवश्यकता थी। आरएसएस एवं जनसंघ के लिए यह कार्य अधिक आसान था। उन्होंने गुजरात में प्रतिकार के आयोजनों के साथ-साथ अन्य राज्यों से संपर्क स्थापित करने का कार्य भी अपने जिम्मे ले लिया।
(प्रभात प्रकाशन से छपी पुस्तक ‘आपातकाल में गुजरात’ से)