तमिलनाडु में सनातनी देवालयों में अनधिकृत सरकारी हस्तक्षेप पर फिर एक बार सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिबंध लगा दिया है। इसी सप्ताह (25 सितंबर 2023) द्रमुक सरकार के अनीश्वरवादी मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के विवादित आदेश पर शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी है। यह न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश का आदेश था। द्रमुक शासनादेश के तहत नास्तिक भी मंदिर में अर्चक (पुजारी) नियुक्त हो सकता था। वंशानुगत अर्चक प्रणाली को खत्म कर दिया गया था। जबकि हिंदू आगम परंपरा के नियमानुसार ही समस्त धार्मिक नियुक्तियां होनी चाहिए।
ऐसा तमिलनाडु में दूसरी बार हुआ है। स्टालिन के पिता एम. करुणानिधि ने 1971 में भी तमिलनाडु हिन्दू धार्मिक अधिनियम को निरस्त कर वंशानुगत नामकरण की व्यवस्था को समाप्त कर डाला था। करुणानिधि को प्रेरणा उनके गुरु ई. रामास्वामी नायक्कर से मिली थी, जो हिन्दू मंदिरों को ध्वंस करने मे आगे रहते थे। स्टालिन को यह आदेश उस धर्म-विरोधी सिलसिले का ही तार्किक फल है जिसके तहत पूरे द्रमुक शासन ने सनातन धर्म पर खुला हमला बोला था।
मद्रास हाईकोर्ट ने सर्वप्रथम द्रमुक की राजाज्ञा पर रोक लगा दी थी। उसके विरुद्ध स्टालिन सरकार सर्वोच्च न्यायालय गई थी। आस्थावानों ने द्रमुक शासन के विरुद्ध अभियान चलाया था। तिरूचिरापल्ली-स्थित श्रीरंगम देवालय ने मद्रास हाईकोर्ट में पहले याचिका दायर की थी। यह मंदिर स्वयं-व्यक्त क्षेत्र का प्रमुख विष्णु आस्थास्थल है। यूनेस्को के अनुसार यह विश्व का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है। मद्रास हाईकोर्ट ने स्टालिन सरकार के विरुद्ध निर्णय दिया था।
साढ़े छः लाख वर्ग मीटर में निर्मित श्रीरंगम मंदिर कावेरी तथा कोल्लिदम नदियों के संगम पर बना है। एशिया का सबसे ऊंचा गोपुरम यहां है। विजयनगर के अच्युतदेव राय के राजकाल में यह स्थापित किया गया था। चोल सम्राट धर्मावलोचन ने इसका विस्तार किया था। तिरुपति के समकक्ष रहा। चार सदियों पुराना। रामानुजाचार्य (ग्यारहवीं सदी में) यहां पधारे थे। ब्रह्मसूत्र की रचना उन्होंने की थी। विशिष्टादैत के वे प्रतिपादक थे। स्वयं भगवान राम ने यहां आराधना की थी। अर्थात इतने प्राचीन, गौरवमय और पुनीत आस्थाकेद्रों को द्रमुक की नास्तिक सरकार ध्वस्त करना चाहती है। अतः सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम निर्देश कई मायनों में ऐतिहासिक है। सनातनी केन्द्रों पर लौकिक शासन द्वारा नियंत्रण का विरोध किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में तमिलनाडु में आगमिक मंदिरों में अर्चकों (पुजारी/प्रीस्ट) की नियुक्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। यूं मद्रास हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने भी अगस्त 2022 में तमिलनाडु हिंदू धार्मिक संस्थान कर्मचारी (सेवा की शर्तें) नियम, 2020 को इस प्रकार व्याख्या की थी कि अर्चकों/पुजारियों की योग्यता और नियुक्तियों के संबंध में नियम आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों पर लागू नहीं होंगे। नियमों के मुताबिक, अर्चकों के लिए एक साल के सर्टिफिकेट कोर्स की योग्यता निर्धारित की गई है। अगर कोई अर्चक कई वर्षों से पूजा-पाठ कर रहा है तो भी नियमों के तहत सर्टिफिकेट के अभाव में वह नियुक्ति का पात्र नहीं होगा। हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार, चूंकि अनागमिक मंदिरों के अपने रीति-रिवाज और उपयोग हैं, केवल उन संप्रदायों के व्यक्तियों को, जिन्होंने पारंपरिक रूप से पूजा की है, अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
परम्परा से आये हिन्दू धर्म के आगम महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये वेद के सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः शिवजी होते हैं। यह शास्त्र साधारणतया ‘तंत्रशास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध है। निगमागममूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (=वेद) है, उसी प्रकार आगम (=तंत्र) भी है। दोनों स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के पोषक हैं। निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है। ‘महानिर्वाण तंत्र’ के अनुसार कलियुग में प्राणी मेध्य (पवित्र) तथा अमेध्य (अपवित्र) के विचारों से बहुधा हीन होते हैं और इन्हीं के कल्याणार्थ महादेव ने आगमों का उपदेश पार्वती को स्वयं दिया। इसीलिए कलियुग में आगम की पूजापद्धति विशेष उपयोगी तथा लाभदायक मानी जाती है : कलौ आगमसम्मत:।
सुप्रीम कोर्ट को अखिल भारतीय आदिशैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन’ की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट गुरुकृष्ण कुमार ने बताया था कि हाईकोर्ट के प्रतिबंध वाले फैसले के बावजूद राज्य सरकार नियुक्तियां कर रही है। उन्होंने कहा : “राज्य ऐसे आगे बढ़ रहा है जैसे कि मद्रास डिवीजन बेंच ने कोई आदेश ही न दिया हो।” उन्होंने कहा : “तमिलनाडु में लगभग 42,500 मंदिर हैं और आगमिक मंदिर इनमें से 10 प्रतिशत से भी कम हैं। जहां तक अनागमिक मंदिरों का सवाल है, हमें कोई शिकायत नहीं है।”
हिंदू मंदिरों के विषय में एक मसला कई बार उठ चुका है। केरल की मार्क्सवादी सरकार ने तो पद्नाभ मंदिर की संपत्ति को हथियाकर बस स्टैंड तथा सड़क निर्माण में लगाने की योजना बनाई थी। अर्थात मुद्दा यह उठाना चाहिए कि चर्च और मस्जिद की संपत्ति को छूने की कोई भी सरकार हिम्मत नहीं कर सकती। बस हिंदू मंदिरों पर ही उसकी गिद्धदृष्टि रहती है।