अमेरिका में दूसरा ऐतिहासिक अवसर कल (रात्रि 8 बजे रविवार, 12 मार्च 2023) होगा जब विश्वभर के करोड़ों श्रोता (दर्शक भी) प्राचीन भारत की तेलुगु भाषा को सुनेंगे। विश्वविख्यात ऑस्कर फिल्म समारोह (फिल्मफेयर से कई गुना बड़ा) हॉलीवुड के डोल्बी थियेटर से प्रसारित होगा। इसमें फिल्म RRR का गीत “नाटू-नाटू” गूंजेगा। प्रस्तुतकर्ता होंगे एनटी रामाराव जूनियर जिनके पिता तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक तथा आंध्र के प्रथम गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे। नाम था : नंदमूरी तारक रामाराव। इसमे कंठस्वर होगा गायक-द्वय राहुल सिप्लीगुंज तथा कालभैरव का। भारत में इस कार्यक्रम का जीवंत प्रस्तुतीकरण, सोमवार प्रातः 5:30 बजे देखा तथा सुना जा सकता है।
पहला मौका तेलुगुभाषी को अमेरिका में 20 जनवरी 2021 को मिला था जब बाइडेन राष्ट्रपति पद की शपथ ले रहे थे। उनके इस 38—मिनट के भाषण में बाइडेन की एक उक्ति थी : “प्रकाश, न कि अंधकार, की ओर जायें।” यह एक सूचक है। भारत में पुरानी कहावत है : ”तमस्योर्मा ज्योतिर्गमय।” हमारी प्राचीन संस्कृतवाली यह उक्ति वाशिंगटन में प्रयुक्त हुई ! पता चला कि आठ हजार किलोमीटर दूर तेलंगाना के करीमनगर में एक किसान कुटुम्ब के डा. चोल्लेटि विनय रेड्डि गत बारह वर्षों से बाइडेन का भाषण लिख रहें हैं। इस बार का तो विशेष तौर पर विनय ने ही तैयार किया था। कौन है यह विनय जिन्हें इतना महत्वपूर्ण लेखन कार्य सौंपा गया है ? निजामशाही ग्राम पोतिरेड्डिपेटा के डा. चोल्लेटि नारायण रेड्डि दशकों पहले मेडिसिन पढ़ने ओहायो आये थे। वहां उनका पुत्र तेलुगुभाषी विनय जन्मा जो अब डेमोक्रेटिक पार्टी का अगुवा बना।
इस समस्त प्रसंग में गौरवशाली विषय भारत के लिए यह है कि दुनिया में बोली जाने वाली सात हजार भाषाओं (भारत की 122 मिलाकर) में तेलुगु भाषा का महत्व निरूपित हो रहा है। ईसा के चार सदियों पूर्व गुंटूर जिले के बौद्ध नगर प्रतिपालापुर (अब भट्टीप्रोलू मंडल) में जन्मी तेलुगु भाषा को अंग्रेजी शासकों ने “इतालियन ऑफ दि ईस्ट” कहा था। इतालवी की भांति तेलुगु में भी शब्द के अंत (पुछल्ले) में “दु, मु, बु, लु” आदि जुड़े रहते हैं। सब कोमलकांत पदावलि। सातवाहनों का तब साम्राज्य था।
अतः हॉलीवुड में “नाटू-नाटू” गीत गा रहे इन तेलुगू जनों को अमेरिका में बसे सवा आठ लाख तेलुगूभाषी तथा आंध्र-तेलंगाना आदि के नौ करोड़ जन अपनी मातृभाषा में सुनेंगे। यह मशहूर लोकगीत “नाटू-नाटू” निर्माता एसएस राजामौली की फिल्म RRR की है। इस पर लोग थिरकते हैं। यू ट्यूब पर इसे बारह करोड़ यूजर अब तक मिले हैं। इंस्टाग्राम पर अपार रील अपलोड मिली हैं। ऑस्कर में भी ये ऑरिजिनल सॉन्ग कैटेगिरी में शॉर्टलिस्ट है। इसकी शूटिंग यूक्रेन में उस दौरान की गई थी जब वहां रूस से जंग शुरू हुई थी। दरअसल आरआरआर की टीम यूक्रेन में कुछ सींस शूट करने के दौरान फंस गई थी जिसके बाद “नाटू-नाटू” की शूटिंग यूक्रेन के प्रेजिडेंट व्लादिमीर जेलेंस्की के महल में हुई थी।
अपार सफलता प्राप्त इस मूल तेलुगू फिल्म का नाम RRR कैसे पड़ा ? तेलुगु भाषा के तीन शब्दों के प्रथम अक्षर को मिलाकर यह रचित हुआ है : “रौद्रम”, रोर (गरजो) और “रुधिरम” (खून)। शुरुआती दिनों में राजामौली ने सबके बीच फिल्म के टाइटल से जुड़ा अपना एक आइडिया रखा। उन्होंने फिल्म के दोनों स्टार राम चरण और एनटी रामा राव के अलावा निर्देशक (राजामौली) के नाम के पहले अक्षर, यानी ‘R’ से फिल्म का टाइटल रखने का सुझाव दिया, जिसके बाद फिल्म का नाम ‘आरआरआर’ (RRR) रखा गया।
फिल्म देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत है। क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम पर बनाई गई है, जिन्होंने ब्रिटिश हुकुमत और हैदराबाद के निजाम के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अब चर्चा हो कि यह अद्भुत नायक कोमराम भीम कौन हैं ? वे एक आदिवासी क्रन्तिकारी थे जिन्होंने हैदराबाद के निजाम आसफ अली द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका जन्म 22 अक्टूबर1901 को वर्तमान तेलंगाना राज्य के संकेपल्ली गाँव के गोंड आदिवासी परिवार में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही अंग्रेज़ो और निज़ामों को उनके समाज के लोगों पर जुल्म करते देखा था। वे निरक्षर जरूर थे, लेकिन परिस्थितियों को संभालना वे सही से जानते थे। इस क्षेत्र के किसानों की फसलों का बड़ा हिस्सा निजाम को देना पड़ता था। इससे किसानों के हालत बद से बदतर होते जा रहे थे।
जंगल में पेड़ काटने के आरोप में आदिवासी महिला, पुरुष और बच्चों तक को यातनायें दी जाती थीं। उनके पिताजी ने लोगों की परेशानियों को समझा था। इस बीच एक जंगल अधिकारी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना से पीड़ित परिवार संकेपल्ली से सरदारपुर चला गया। वहां वे खेती करने लगे, लेकिन यहां भी निजाम शाही का खौफ उन्हें महसूस हुआ। निजाम के आदमी उनके पास आकर टैक्स के लिए डराते, धमकाते थे। निजाम के अत्याचार दिन ब दिन बढ़ते चले गए। कोमराम ने अब निजामशाही के विरुद्ध आवाज़ उठाने का निश्चय किया था। उन्होंने अपने आदिवासी मित्रों तथा किसानों को संगठित किया और उन्हें निजामशाही का विरोध करने के लिए प्रेरित किया। कोमराम भीम अब एक नेता के रूप में लोगों के बीच प्रकट हो चुके थे। धीरे-धीरे कोमराम की सेना तैयार की गयी जो निजाम से लड़ने के लिए तैयार थी। कोमराम के करतब से परेशान निजाम ने उन्हें पकड़ने के लिए सेना भेजी। कुछ समय बाद उन्हें आत्मसमर्पण के लिए कहा गया, परन्तु इन्होने आत्म समर्पण के बदले संघर्ष का पथ चुना। दोनों के बीच जबरदस्त संघर्ष हुआ और इसमें 8 अक्टूबर 1940 को कोमराम के साथ कुल 15 लोगो ने अपनी जान गवां दी। इस फिल्म से बताते हैं कि नक्सलवादियों को भी प्रेरणा मिली थी। मगर वास्तविकता यह है कि यह केवल एक ऐतिहासिक घटना है। आजादी के अमृतकाल में इसकी प्रासंगिकता है। श्रद्धा सुमन अर्पण करने की आवश्यकता है।