सवालों में सहजीवन रिश्ते

 

हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली के साथ ही आर्थिक राजधानी मुंबई में हुई दो हत्याओं ने युवा पीढ़ी द्वारा मन से चुने रिश्तों के हालातों का भयावह अंत समाज के सामने रखा है | बीते दिनों दिल्ली के मेहरोली में हुए श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड की तरह ही नजफ़गढ़ में भी 23 साल की एक युवती की हत्या का मामला सामने आया है। इस घटना में भी युवक ने अपनी लिव इन साथी की हत्या कर शव को फ्रिज में छिपा दिया। हैरान करने वाली बात है कि गला घोंटकर प्रेमिका की जान लेने के अगले ही दिन युवक ने परिजनों की पसंद को स्वीकार कर दूसरी लड़की से शादी भी कर ली | दिल्ली में ही एक और महिला की हत्या के स्तब्ध कर देने वाले मामले में 28 साल की महिला के लिव-इन पार्टनर ने आग लगाकर उसकी हत्या कर दी।

वहीं महाराष्ट्र के मुंबई में एक 40 वर्षीय प्रेमी ने लिव-इन में रह रही अपनी प्रेमिका की पैसों के लेन-देन को लेकर हुए झगड़े के बाद गला दबा कर हत्या कर दी | हत्या के बाद भाग निकलने की योजना बनाकर उसने शव को बेड में बने बॉक्स में छिपा दिया | दोनों ही घटनाओं को अंजाम देने वाले आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं, पर इन घटनाओं के बाद कुछ प्रश्न फिर से  समाज के सामने हैं | ऐसे सवाल जो इन सुविधाजनक सम्बन्धों से जुड़ी समस्याओं को रेखांकित करते हैं | प्रेमिल साथ के नाम पर जीये जा रहे सम्बन्धों की उन उलझनों से मिलवाते हैं, जिनके चलते कोई अपनी साथी का गला घोंट रहा है तो कोई टुकड़े-टुकड़े कर जंगल में फेंक देता है | दुखद यह भी कि रिश्तों का ऐसा भयावह अंत बरसों के साथ के बाद हो रहा है |

दरअसल, ऐसी आपराधिक घटनाओं के पीछे अनगिनत सामाजिक-पारिवारिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक कारण हैं | व्यावहारिक सोच के धरातल से परे युवा ऐसे संबंध जोड़ तो लेते हैं पर निबाह की राह आसान नहीं होती | तभी तो अपनी पसंद के चुनाव के बावजूद कभी आर्थिक कारण तो कभी परिजनों के दबाव के चलते लिव इन साथी से छुटकारा पाने का रास्ता तलाशने लगते हैं | दुखद है कि ऐसी हर वीभत्स घटना का खुलासा सामाजिक परिवेश और प्रशासनिक व्यवस्था के समक्ष जाने कितने ही प्रश्न खड़े कर देता है | अमानवीयता की हद पार करने वाली ऐसी घटनाओं की जांच एवं जानकारियाँ जुटाने से जुड़ी प्रक्रिया में इंसानी मन-जीवन के कितने भयावह और स्याह पक्ष उजागर होने लगते हैं | पहलू, जो सहजीवन साथी के भरोसे को तार-तार किए जाने का उदाहरण बनते हैं | समग्र समाज से विश्वास और जुड़ाव के भाव को कम करने वाले होते हैं | आमजन में एक अनचाहे भय और भ्रम को बढ़ावा देते हैं | बेटियों के लिए बन्दिशों का कारण बनते हैं | ऐसी स्थितियाँ सामाजिक सम्बन्धों से लेकर व्यक्तिगत रिश्तों तक आ रहे भयावह बिखराव की बानगी बन बहुत कुछ तहस-नहस कर देती हैं |
 विडम्बना ही है कि मौजूदा दौर की महानगरीय संस्कृति में विसंगतियों से भरे इन रिश्तों को क्रांतिकारी माना जा रहा है | जबकि ऐसे संबंध जीवन की व्यवहारिकता से कोसों दूर होते हैं | बदलती जीवनशैली और स्वार्थपरक सोच से उपजे इन सम्बन्धों ने तो युवाओं में मन-जीवन से जुड़ी जटिलताएँ और बढ़ा दी हैं | आमतौर पर परिवार और परिजन भी युवाओं के ऐसे रिश्तों से अनभिज्ञ रहते हैं | साझा जीवन जीने वाले दो लोगों का परिवारजनों से भी कोई जुड़ाव नहीं रहता | यही वजह है कि उलझनों में फंसे मन को ना तो कोई सलाह देने वाला होता है और ही ऐसे सम्बन्धों को सही मोड़ पर खत्म करने की राह सूझती है | मनोवैज्ञानिक रूप से सहजीवन भावनात्मक धरातल पर रिक्तता पैदा होने लगती है | नतीजतन ऐसे बर्बर मामले सामने आते हैं | कई मामलों में इन संबंधों की शुरुआत ही शोषण के इरादे से की जाती है | नजफ़गढ़ की हालिया घटना में भी युवती और युवक दोनों के ही परिवार नहीं जानते थे कि वे लिव इन में रहते हैं | जबकि दोनों बीते तीन साल से साथ रह रहे थे | यही वजह है कि परिजनों ने युवक की शादी दूसरी लड़की से तय कर दी | इसी बात को लेकर हुए झगड़े में उसने अपनी लिव साथी का जीवन छीन लिया | इसी तरह मुंबई की घटना में युवती आर्थिक ज़िम्मेदारी उठा रही थी और युवक बेरोजगार था | यहाँ पैसे को लेकर हुए झगड़े का अंत लिव इन पार्टनर की जान ले लेने के रूप में हुआ |
पारंपरिक और सामाजिक बंधनों को छोड़ स्वतंत्र जीवन जीने की चाह के लिए चुने गए लिव-इन सम्बन्धों में आए दिन बर्बरता से जान ले लेने के मामले सामने आ रहे हैं | अधिकतर घटनाओं को देखते हुए लगता है कि मन से चुने रिश्तों के साथ भी जीवन की जरूरतें और जद्दोजहद भी रहेगी, युवा यह विचार ही नहीं करते | यही वजह है कि अव्यावहारिक सोच और आत्मकेंद्रित होकर बनाए गए सहजीवन संबंध टिकाऊ भी नहीं होते | शिक्षित युवा भी लिव इन पार्टनर के साथ हिंसा, मारपीट और मौखिक दुर्व्यवहार करते हैं | दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्मार्ट गैजेट्स में गुम युवा खुद के चुने रिश्तों को निभाने में भी पीछे ही हैं | गौरतलब है कि आफताब भी श्रद्धा के साथ लंबे समय से मारपीट कर रहा था | मुंबई की ताज़ा घटना में भी बेरोजगार युवक अपनी लिव इन साथी से पैसे के लिए आए दिन झगड़ा करता था | कहना गलत नहीं होगा कि मनमर्जी के रिश्तों में खुलेपन की अति और दायित्वबोध की कमी के चलते समस्याएँ भी बढ़ रही हैं | स्नेह-साथ से जुड़ा संवेदनशील भाव कहीं गुम हो गया है | नतीजतन, जब तक मन-मुताबिक बात और हालात हों, ऐसे रिश्ते चलते रहते हैं | वरना ऐसे संबंधों में आया अलगाव अपराध की वजह बन जाता है |   
बिखराव की ऐसी परिस्थितियों में परिवार की भूमिका अहम होती है | दुखद है कि वह मौजूदा समय में आभासी संसार की दिखावटी दोस्ती, अनजाने रिश्ते और अनर्गल संवाद में गुम युवाओं की अपने अभिभावकों से भी दूरियाँ बढ़ी हैं | साझे जीवन के बजाय संवादहीनता का यह परिवेश एक ओर महिलाओं के लिए असुरक्षा का माहौल बना रहा है तो दूसरी और बर्बर मानसिकता वाले लोगों के लिए अपराध को अंजाम देने की सहज स्थितियां | ऐसी परिस्थितियाँ महिलाओं के साथ शोषण, प्रताड़ना और बर्बरता करने वालों की राह आसान करती हैं | अफसोस कि तथाकथित खुलेपन वाले सहजीवन में भी लड़कियां ही ज्यादा ठगी जाती हैं | कई बार बार तो सह-जीवन की राह बाकायदा शोषण करने के लिए ही चुनी जाती है | लड़कियां भी इस मोर्चे पर जरा देर से चेतती हैं | इसीलिए प्रेम के नाम पर किसी का भरोसा कर ऐसे रिश्तों में फंस जाने वाली लड़कियों को उस समय परिवार का संबल और सहयोग मिलना आवश्यक है |   
[लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]

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