चिरतारुण्य के देवता महावीर हनुमान के धरा पर अमरत्व का वरदान पाने वाली दिव्य विभूतियों में होती है। रुद्रांश हनुमान ने इस धरती पर भगवान राम की सहायता के लिये अवतार लिया था। पौराणिक व ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार महावीर हनुमान का जन्म अब से तकरीबन करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सूर्योदय काल में माता अंजना के गर्भ से हुआ था। तब से प्रति वर्ष चैत्र माह की पूर्णिमा को महावीर हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
भारतीय-दर्शन में सेवाभाव को सर्वोच्च मान्यता मिली हुई है जो मनुष्य को निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरीसुत और अंजनी नंदन महाबली हनुमान। महावीर हनुमान का जीवन हमें यह शिक्षण देता है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति भक्त ही नहीं, वरन भगवान तक बन सकता है। बलवानों में भी महाबलवान माने जाते हैं महावीर हनुमान। इन्होंने भीम ही नहीं रावण और मेघनाद के शक्तिमद को भी धूल चटायी थी। आप जानते हैं क्या था हनुमान के महाशक्तिशाली होने का राज? हनुमान चालीसा का एक दोहा है-“अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता अस वर दीन्ह जानकी माता।” इसी दोहे में छुपा हुआ है हनुमान जी की शक्ति का राज।
हनुमान जी रुद्र के अवतार माने जाते हैं और सूर्य नारायण के शिष्य। सूर्य से ज्ञान प्राप्त करते हुए हनुमान जी ने आठ सिद्धियां हासिल की थीं। यही आठ सिद्धियां हनुमान जी की ताकत का मूल स्रोत मानी जाती हैं। इन्हीं के बल पर हनुमान जी समूची दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर सकने की सामर्थ्य रखते हैं। इनमें पहली है ‘अणिमा’ सिद्धि। यह ऐसी सिद्धि है जिससे व्यक्ति अपने आकार में मनचाहा आकर दे सकता है। इसी सिद्धि के बल पर हनुमान जी ने सूक्ष्म रूप धर कर अशोक वाटिका में माता जानकी के सामने प्रकट हुए थे। दूसरी है ‘लघिमा’ सिद्धि- इसके बल से हनुमान जी सैकड़ों योजन का सागर एक ही छलांग में लांघ कर लंका में प्रवेश करने में सफल हुए थे। तीसरी है ‘गरिमा’ सिद्धि- इस सिद्धि से शरीर को जितना चाहे भारी बनाया जा सकता है। इसी सिद्धि से हनुमान जी ने अपनी पूंछ को इतना भारी बना दिया था कि भीम जैसा महाबलशाली भी उसे हिला तक नहीं सके। चौथी है ‘प्राप्ति’ सिद्धि- अपने नाम के अनुसार यह ऐसी सिद्धि है जिससे इच्छा मात्र से मनचाही वस्तु सामने आ जाती है। अपनी इसी सिद्धि के कारण हनुमान जी परम संतोषी कहलाए और उन्होंने भगवान राम के द्वारा दिए मोतियों को भी कंकड़ के समान माना और आजीवन श्रीराम की भक्ति में लीन रहे। पांचवीं है ‘प्राकाम्य’ सिद्धि- इस सिद्धि से व्यक्ति जो भी कामना करता है वह तुरन्त पूरी हो जाती है। छठी है ‘महिमा’ सिद्धि-यह ऐसी सिद्धि है जिसे हासिल करके व्यक्ति अपने व्यक्ति की महत्ता कहीं भी स्थापित कर सकता है। हनुमान जी ने लंका पर चढ़ाई के समय कई बार इस सिद्धि का प्रयोग किया था। सातवीं है-‘ईशित्व’ सिद्धि- इस सिद्धि से व्यक्ति में ईश्वरत्व का वास हो जाता है यानी व्यक्ति में ईश्वर की शक्ति आ जाती है और वह पूजनीय हो जाता है। इसी सिद्धि के कारण हनुमान जन-जन के आराध्य व पूज्य बन गये। आठवीं सिद्धि है ‘वशित्व’ सिद्धि- इस सिद्धि को प्राप्त करके किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है। हनुमान जी ने अपनी इस सिद्धि से मन, वचन, कर्म से काम, क्रोध, मद, लोभ लोभ, दंभ, दुर्भाव, द्वेष, आवेश, राग-अनुराग सभी को अपने वश में कर लिया था। इन्हीं सिद्धियों ने हनुमान जी को महावीर बनाया था।
श्री हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने श्री राम के आदर्शों को गढ़ने में मुख्य कड़ी की भूमिका निभायी है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के कई महत्वपूर्ण सूत्र हासिल कर सकते हैं। उनकी वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे गुणों को अपने जीवन में ह्दयंगम कर सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। हनुमान जी जहां एक ओर अतुलित बलशाली हैं वहीं दूसरी ओर तो विद्वता में भी उनका कोई सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंचमात्र भी अहंकार नहीं। जबकि आज के समय में थोड़ी सी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, ऐसे लोगों को हनुमान जी के प्रेरणा लेनी चाहिए। बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले महावीर हनुमान श्री राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे और अहंकारी रावण का मद चूर किया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसका दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने तुरंत चूर कर दिया।
शक्तिमत्ता का सर्वोच्च प्रतिमान रचने वाले महावीर मन से भी उतने ही बलशाली हैं। ब्रह्मचर्य के द्वारा वासना को जीतने वाले अंजना सुत का समूचा जीवन सेवा, त्याग, तप व बलिदान की अनुपम मिसाल है। हृदय से भी वे अत्यन्त निर्मल हैं। मनुष्य के शरीर व मन की शक्ति का समाज के विकास में किस तरह से नियोजन किया जा सकता है, राम के परम भक्त श्री हनुमान के जीवन से सहज ही इन प्रश्नों का समाधान मिल जाता है। शक्ति साधनों का उपयोग किसलिए? राम-सेवा के लिए। रामदूत बनने में ही हनुमान जी अपना गौरव समझते हैं। राम की आराधना का तात्पर्य आसुरी शक्तियों का उन्मूलन भी है। कहा जाता है कि भगवान राम तो त्रेतायुग में धर्म की स्थापना करके अपने बैकुण्ठ लोक वापस चले गये। लेकिन भगवान राम ने धर्म की रक्षा के लिए प्रलय काल तक हनुमान को पृथ्वी पर रहने का आग्रह किया और इसके लिए राम ने हनुमान ही को अमरता का वरदान भी दिया। माना जाता है कि इसी वरदान के कारण हनुमान जी आज भी जीवित हैं और भगवान के भक्तों और धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं। कहा जाता है कि 16वीं सदी में महान संत कवि तुलसीदास जी को हनुमान की कृपा से ही श्रीराम के दर्शन प्राप्त हुए। कथा है कि हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा था कि राम और लक्ष्मण चित्रकूट नियमित आते रहते हैं। मैं वृक्ष पर तोता बनकर बैठा रहूंगा और जब राम और लक्ष्मण आएंगे तो मैं आपको संकेत दे दूंगा। हनुमान जी की आज्ञा के अनुसार तुलसीदास जी चित्रकूट घाट पर बैठ गये और सभी आने जाने वालों को अपने हाथों से घिसकर चंदन लगाने लगे। राम और लक्ष्मण जब आये तो हनुमान जी गाने लगे “चित्रकूट के घाट पै, भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।” हनुमान के यह वचन सुनते ही तुलसीदास प्रभु राम और लक्ष्मण को निहारने लगे। इस प्रकार हनुमान जी की ही कृपा से तुलसीदास की प्रभु दर्शन की चिरप्रतीक्षित साध पूरी हो सकी।
महाबली की महिमा की बखान करने वाला एक ऐतिहासिक वाकया इस प्रकार है। कहा जाता है मध्ययुग में गोस्वामी तुलसीदास की दूर-दूर तक फैलती जा रही कीर्ति से प्रभावित होकर तत्कालीन मुगल शहंशाह अकबर ने एक बार उनको अपने दरबार में बुलवाया और अपनी रामभक्ति का कोई चमत्कार दिखाने का आग्रह किया। मगर तुलसीदास जी ने उनके मन के भावों को भांप कर उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस पर क्रोधित होकर बादशाह अकबर ने उनको जेल में डाल दिया। जेल में तुलसीदास जी ने हनुमान की आराधना शुरू कर दी। इतने में चमत्कार हुआ। लाखों की संख्या में बंदरों ने अकबर के महल पर आक्रमण कर भारी उत्पात मचाना शुरू कर दिया। बंदरों के उस आतंक से बादशाह अकबर व उसके सभी सैनिक असहाय साबित हो गये। पूरे महल में भय का वातावरण उत्पन्न हो गया। तब किसी के कहने पर अकबर को समझ में आया कि तुलसीदास जी को जेल में डालने के कारण हनुमान जी नाराज हो गये हैं और बंदरों के उत्पात का मूल कारण यही है। गलती का अहसास होने पर अकबर ने संत तुलसीदास जी से क्षमा मांगी और उन्हें जेल से मुक्त कर दिया.
[लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]