परिस्थितियों का इलाज धैर्य से होता है-दत्तोपंत ठेंगड़ी

परिस्थितियां आती हैं, हर चीज का इलाज एकदम नहीं होता। परिस्थितियों का इलाज होता है। इसको समय लगता है और इतने समय तक धीरज रखना सामान्य आदमी के लिए संभव नहीं। इसलिए वह आपको पूछता भी है कि अपने डंडे आप घुमा रहे हो? और उसका असर आपके ऊपर होगा, बड़ी कमाल की बात है। आप अपना और उसका स्तर एक ही समझते हैं क्या?

आप राष्ट्र के लिए अपने को जिम्मेदार मानते हैं, आपके सामने ध्येय है उस ध्येय के प्रकाश में आपको सोच-विचार करना है या दुकान, मकान, बैंक-बैलेंस का सोच-विचार करना है। आपके और उसके स्तर में अंतर है या नहीं? इस बैठक में हम बैठे हैं तो हमारी कुछ योग्यता है कि नहीं, इस बैठक में बैठने को? ये राष्ट्र निर्माताओं की बैठक है, दुकान, महान बनाने वालों की नहीं। इसके नाते हम सोचें और नेशनबिल्डर्स के नाते हम सोचें और समझें तो ऐसा दिखाई देगा कि इतिहास में बहुत बार ऐसे प्रसंग आते हैं कि जिसमें एकदम इलाज संभव नहीं होता। जैसे हमने कहा भी सरकार को विल-पॉवर जाग्रत करनी चाहिए। यह एकदम नहीं हो सकता।

कल मा. रज्जू भैया ने भी कहा कि बातचीत होती है। कल और भी दबाव लाएंगे, लेकिन समय लगेगा तब तक यह सारी गड़बड़ चलती रहेगी, तब तक सामान्य नागरिक का धैर्य छूट जाएगा, धीरज छूट जाएगा, आपका भी छूटना है क्या? विपरीत परिस्थिति में सामान्य नागरिक की प्रतिक्रिया की फिक्र न करते हुए ध्येय सामने रखकर ठीक राजनीतिक निर्णय लेना सही नेतृत्व का लक्षण है। लोग ग्या कह रहे हैं यदि इसी पर आप जाएंगे तो आप यशस्विता तक नहीं पहुंच सकते।

कल की बैठक में हमने एक उदाहरण दिया था छत्रपति शिवाजी का उदाहरण। अब तो शिवाजी बड़े सफल हो गए इसलिए सब उनका गुणगान करते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि आपको जो लोग कह रहे हैं पंजाब में, वे लोग शिवाजी के समय उस काल में शिवाजी के ऊपर वो सारे आरोप लगाए जाते थे जो आज संघ-वालों पर लगाए जा रहे हैं। शिवाजी पर जिस कालखंड में ये सारे आरोप लगाए गए। वह पहला कालखंड आया जब अफजल खान बहुत बड़ी सेना लेकर आया उस सेना का मुकाबला खुले मैदान में करना, जिसको कहते हैं पिचडबैठल। उधर हिंदू सेना। इसमें शिवाजी यशस्वी नहीं हो सकते थे, इसलिए शिवाजी ने सोचा कि हम पहाड़ी में छिप कर रहेंगे और हम अफजल खान को पहाड़ी क्षेत्र में लाएंगे।

हमेशा जो यशस्वी सेना होती है वह अपना रणक्षेत्र चुन लेती है। अपने रणक्षेत्र पर शत्रु को लाती है खुद शत्रु के रणक्षेत्र पर नहीं जाती। लेकिन पहाड़ी तक अफजल खान का आना कठिन था क्योंकि अफजल खान को बताया गया था कि बेटा सब करो पर पहाड़ी इलाके में मत जाओ। क्योंकि यह पहाड़ का चूहा है। एक बार पहाड़ी इलाके में चले गए तो फिर क्या होगा यह पता नहीं। अफजल खान की राजनीति थी कि शिवाजी को पहाड़ी इलाके के बाहर लाना कैसे ला सकते हैं?

अफजल खान ने हिंदुओं पर अत्याचार करना शुरू किया। महिलाओं का अपमान किया और फिर मंदिरों को तोड़ना शुरू किया तो भी वह बाहर नहीं आया। तब प्रचार करना शुरू किया कि वह कौन-सा तुम्हारा हिंदुओं का संरक्षक है? अरे! हिंदू महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है हिंदुओं के मंदिर की मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं, और शिवाजी अपनी जान बचाकर बैठा है वहां। यह कौन-सा हिंदुओं का संरक्षक है, यह तो कायर है। ये प्रचार हिंदुओं में शुरू किया गया। उसके बाद भी शिवाजी बाहर नहीं आया।

आखिरी बार उसने सोचा कि छत्रपति शिवाजी की कुल-देवता तुलजापुर की भवानी है। वहां अफजल खान की सेना आ गई। सोचा अब इसके कुल-देवता की मूर्ति ही हम तोड़ते हैं तो वह गुस्से में बाहर आएगा ही। जाएगा कहां? शिवाजी के कुल-देवता की मूर्ति भी तोड़ी। शिवाजी अपने पहाड़ी इलाके में ही रहे। चारों ओर प्रचार किया गया।

वह लोगों को जंचने लगा कि ये शिवाजी है ही क्या? हिंदुत्व का संरक्षक बोलता है। स्वयं उसकी कुल-देवता की मूर्ति का खंडन किया गया है और वह अपनी जान बचाकर बैठा है। यह क्या हिंदुओं का संरक्षक है? चारों ओर प्रचार शिवाजी के खिलाफ चला। वह सारा बरदाश्त किया। फिर वह आगे बढ़ा। अफजल खान जब पहाड़ी इलाके के नीचे आया। शिवाजी ने अपना वकील उसके पास भेजा, कहा कि साहब शिवाजी तो घबरा गया है। वह आपके मुकाबले में खड़ा ही नहीं हो सकता, वह लड़ाई क्या करेगा? उसने तय किया है आखिर आप उनके पिताजी के दोस्त हैं आपको वह चाचा कहते हैं। और कहता है कि चाचा मुझे प्राणदान दे दें, अभयदान दीजिए मेरी जान बचा लीजिए। अच्छा, शिवाजी घबरा गया? बोला घबराना ही है। इसमें आपकी सेनाएं कारण हैं।

स्वयं अफजल खान बड़ा लंबा-चौड़ा ऐसा था उसके सामने शिवाजी नाटा घबरा गया। अफजल खान ने कहा नहीं उनको यहां भेजो मैं अभयदान देता हूं। शिवाजी इतना घबराए हैं कि यहां उनके आने की हिम्मत नहीं। उनका सुझाव है कि आप आइए, आपका स्वागत होगा और आपको दावत देंगे। उसके बाद आत्मसमर्पण। आपको सारा राज्य हाथ में दे देंगे।

कुछ हलचल उसके मन में हुई होगी। उसने हंसते-हंसते मान लिया। अब जाना है तो क्या सेना लेकर जाना? वकील ने कहा साहब वह तो पहले ही घबराया है सेना लेकर जाएंगे तो और पीछे जाएगा आपको मिलेगा ही नहीं। अफजल खान को आशा थी कि जिंदा या मरा हुआ शिवाजी को लाना है वह बीजापुर बादशाह का हुक्म था। वह तो भाग जाएगा आपके हाथ में नहीं आएगा आप कैसे पकड़ेंगे? चलो ठीक है तो ये तय किया जाए दोनों के साथ कितने अंगरक्षक रहेंगे, कितनी संख्या होनी चाहिए।

तो निश्चय हुआ कि दो अंगरक्षक शिवाजी के साथ और दो अफजल खाने के साथ रहें। और कोई नहीं और पहले निरीक्षण किया जाए कि कोई और सेना के लोग तो नहीं हैं। अफजल खान निरीक्षण करे हिंदू सेना के लोगों की और हिंदू लोग निरीक्षण करें अफजल खान की सेना की और जहां शामियाना डाला था वहां निरीक्षण वगैरा हो चुका कि यहां पर और लोग नहीं हैं। हालांकि कुछ दूरी पर अफजल खान की सेना तैयार थी कि यदि शिवाजी मारा जाता है तो एकदम हमला करेंगे।

उधर शिवाजी की सेना खड़ी थी यदि अफजल खान मारा जाता है तो एकदम हमला करें। लेकिन सब दूरी पर थे। वहां केवल दो-दो अंगरक्षक लेकर जाना तय हुआ। अफजल खान का समाधान हुआ। अब उधर से शिवाजी उतरे टीले पर से, इधर से अफजल खान गया। बाकी जो हुआ आपको पता चला और उसके बाद अफजल खान की सेना को भी परास्त किया, वध किया गया। लेकिन ऐसा तब हुआ क्या जब अफजल खाने ने तुलजापुर भवानी की मूर्ति का खंडन किया? यह जोश में आ गया? तुम्हारे डंडे क्या कर रहे हैं पंजाब में? आए जोश में, और चला। जो होगा सो होगा। साले को देख लेंगे। ऐसा नहीं किया।

संयमपूर्वक, शांतिपूर्वक एक रणनीति तय की थी उस रणनीति के अंतर्गत। आज हमारे खिलाफ भले ही प्रचार चलता होगा, चलने दीजिए। लेकिन अपनी नीति के मुताबिक काम करेंगे। शिवाजी ने काम किया जिससे यशस्वी हुए। केवल भड़ास निकालने के लिए काम करते तो मैदान में चले आते फिर शिवाजी और हिंदवी-स्वराज्य खत्म हो जाता। भड़ास में आने का काम मकान, दुकान, बैंक-बैलेंस वालों का है हमारा नहीं यह जरा ध्यान में रखें। यहां इस बैठक में तुम्हारी कोई खास इज्जत है आप नेशन-बिल्डर्स में से एक हैं। इस इज्जत को निभाना है तो अपने सोचेन का ढंग उनके सोचने के ढंग से अलग होना चाहिए। आपको यह समझाना चाहिए।

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