इमरजेंसी का रहस्य

 चंद्रशेखर, पूर्व प्रधानमंत्री

इंदिरा गांधी ने बाबूजी (जगजीवन राम) से ड्राफ्ट पढ़वाया। उन लोगों का ड्रामा देखिए! पढ़ते ही जगजीवन राम ने कहा कि विधानसभा निलंबित करने तक की बात ठीक है, लेकिन ड्राफ्ट में विधानसभा भंग करने की बात क्यों है? इसके बारे में अभी से वादा क्यों किया जाए?

जो रुख इंदिरा गांधी ने अपनाया था, वैसे में उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था। ऐसा भी नहीं था कि सारी परिस्थितियां अचानक प्रकट हो गयीं। अगर इंदिरा जी को प्रधानमंत्री बने रहना था तो आपातकाल के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था। एक दिन किसी ने कहा कि जयप्रकाश नारायण दिल्ली आए हुए हैं। जेपी जब भी दिल्ली आते थे तो मुझे पहले ही खबर कर देते। मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ। खैर, मैं उनसे मिलने गया। वह गांधी शांति प्रतिष्ठान में रुके हुए थे। जयप्रकाश नारायण ने मुझसे कहा कि बड़ी दुविधा में हूं। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं? मैंने पूछा, बात क्या है? एक पेचीदा बात है, लेकिन मुझसे कहा गया है कि मैं आपको न बताऊं। अगर ऐसा करता हूं तो खुद को बहुत बुरा लगेगा। मैंने कहा कि अगर आपको मना किया गया है तो मत बताइए। मेरी भी कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने एक कागज निकाल कर मुझे दिया। जयप्रकाश नारायण ने कहा कि आप इसे पढ़कर अपनी राय बताइए। मैंने कागज पढ़कर उनसे कहा कि अगर इंदिरा गांधी की ओर से यह प्रस्ताव रखा गया है तो आपको समझौता कर लेना चाहिए। जयप्रकाश नारायण ने कहा कि आप सोचकर बताइए। मैंने तुरंत कहा कि इसमें सोचने की कोई बात नहीं है, क्योंकि समझौते के लिए इससे अच्छा कोई दूसरा रास्ता नहीं हो सकता।

उस ड्राफ्ट में वे सारे मुद्दे थे, जिनको लेकर बिहार आंदोलन चल रहा था। बिहार विधानसभा तुरंत निलंबित करने का प्रस्ताव था और थोड़े दिनों बाद उसे भंग करने की बात थी। और यह भी लिखा था कि उसके थोड़े दिनों बाद चुनाव करवा लिया जाये। और भी कई बातें लिखी हुई थीं। मैंने जयप्रकाश नारायण से कहा कि बर्खास्तगी के लिए दबाव न डालें। पहले सस्पेंशन आॅर्डर निकलने दीजिए। फिर जयप्रकाश नारायण ने कहा कि एक और बात करना चाहता हूं। इंदिरा गांधी को यह मालूम है कि आप हमारे नजदीकी हैं। फिर इंदिरा गांधी ने यह ड्राफ्ट आपके माध्यम से क्यों नहीं भिजवाया और यह क्यों कहा गया कि आपको न मालूम हो? मैंने कहा कि इसका जवाब तभी दे सकता हूं, जब आप मुझे यह बताएं कि यह ड्राफ्ट लेकर कौन आया था? जेपी चुप हो गए। थोड़ी देर बाद बताया कि श्यामबाबू और दिनेश सिंह लेकर आए थे। मैंने कहा कि इसके आधार पर समझौता नहीं होगा। इसका प्रयोजन केवल इतना है कि यह लोगों को मालूम होना चाहिए कि आपसे बात हो रही है। मुझसे यह ड्राफ्ट गोपनीय रखने का कारण स्पष्ट है। अगर मेरी जानकारी में यह ड्राफ्ट होता और मेरे द्वारा भेजा जाता तो मैं इस बात पर जोर देता कि एक बार सहमति हो जाने के बाद प्रधानमंत्री इसे स्वीकार करें। अगर नहीं मानतीं तो इसको सार्वजनिक रूप से कहता।

जेपी से जब बात हो रही थी, उस समय शाम के 7:30 बज रहे थे। नौ बजे उनको इंदिरा गांधी से मिलना था। जयप्रकाश नारायण इंदिरा गांधी के पास गये। इंदिरा गांधी ने कहा कि बाबूजी को भी बुला लो। बाबूजी मतलब जगजीवन राम। वह पहले ही ड्राफ्ट पढ़ चुके थे। फिर भी इंदिरा गांधी ने बाबूजी से ड्राफ्ट पढ़वाया। उन लोगों का ड्रामा देखिए! पढ़ते ही जगजीवन राम ने कहा कि विधानसभा निलंबित करने तक की बात ठीक है, लेकिन ड्राफ्ट में विधानसभा भंग करने की बात क्यों है? इसके बारे में अभी से वादा क्यों किया जाए? किसी के कहने मात्र से विधानसभा को भंग कैसे किया जा सकता है? ड्राफ्ट से इसे निकाल दें। इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण चुप हो गये। जयप्रकाश नारायण चुपचाप पांच-सात मिनट बैठे रहे, फिर उठकर चले आये। ‘‘उस एक घटना से देश का बड़ा भारी नुकसान हुआ। आज की स्थिति देखने के बाद तो यह स्पष्ट हो ही गया है।’’

आज की राजनीति में अवसरवादी राजनीतिज्ञों की संख्या कुछ ज्यादा ही हो गयी है, जिसका परिणाम हमें भुगतना ही होगा। पहले भी अवसरवादी राजनीतिज्ञों की अति महत्वाकांक्षाओं का परिणाम देश भुगत चुका है। अब धीरे-धीरे पुरानी बातें खुलकर सामने आने लगी हैं और जनता उसके परिणामों को समझ रही है। आज की राजनीति को देखने से लगता है कि आज नहीं तो कल, देश से लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा। जहां राजनीति इस स्तर पर पहुंच जाए, वहां लोकतंत्र नहीं टिक सकता। सोनिया गांधी को लोकतंत्र की क्या समझ है! कांग्रेसी कहते हैं, ‘सोनिया गांधी जिंदाबाद’ और उन्हें लगता है, इसी को लोकतंत्र कहते हैं। अयोग्य लोग महत्वपूर्ण जगहों पर पहुंच गये हैं। पत्रकारिता का भी यही हाल है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने और बेड़ा गर्क किया है। दूसरा कारण जरा ज्यादा कठोर है। जो लोग आज राजनीति में आ रहे हैं, उनकी दिलचस्पी भारत को जानने की नहीं है। अच्छी अंग्रेजी बोलने को ये लोग सबसे बड़ा गुण मानते हैं। इससे देश का भला हो सकता है क्या? इसका निर्णय जनता ही करे तो बेहतर है।

(रामबहादुर राय की पुस्तक ‘रहबरी के सवाल’ का अंश)

 

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