आजादी के पहले पंचायतें

आज ही के दिन यंग इंडिया में गांधी जी ने आजादी के पहले पंचायतें शीर्षक से एक लेख लिखा था। पंचायतों को गांधी जी के नजरिए से समझने के लिए यह लेख उपयोगी होगा, इसीलिए लोकनीति केन्द्र पर यह लेख हम प्रकाशित कर रहे हैं……

पंचायत हमारा बड़ा पुराना और सुंदर शब्द है, उसके साथ प्राचीनता की मिठास जुड़ी हुई है। उसका शाब्दिक अर्थ गांव के लोगों द्वारा चुने हुए पांच आदमियों की सभा। यह उस पद्धति का सूचक है, जिसके द्वारा भारत के बेशुमार ग्राम-लोकराज्यों का शासन चलता था। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने महसूल वसूल करने के अपने कठोर तरीके से इस प्राचीन लोकराज्यों का लगभग नाश ही कर डाला है। वे इस महसूल वसूली के आघात को सह नहीं सके। अब कांग्रेस-जन गांव के बड़े-बूढ़ों को दीवानी और फौजदारी इन्साफ की सत्ता देकर इस पद्धति को फिर से जिलाने का अधूरा प्रयत्न कर रहे हैं। यह प्रयत्न पहले पहल 1921 में किया गया, लेकिन वह असफल रहा। अब वह दुबारा किया जा रहा है। लेकिन अगर वह व्यवस्थित और सुंदर ढंग से – मै वैज्ञानिक तरीके से नहीं कहूंगा-नहीं किया तो असफल रहेगा।

नैनीताल में मुझे बताया गया कि संयुक्त प्रांत की कुछ जगहों में स्त्री के साथ होने वाले बलात्कार के मामले भी तथाकथित पंचायतें ही चलाती है। मैन अज्ञान और पक्षपातपूर्ण पंचायतों द्वारा दिए गए कुछ बेतुके और उटपटांग फैसलों के बारे में भी सुना। अगर यह सब सच हो तो बुरा है। ऐसी अनियमित और नियम – विरूद्ध काम करने वाली पंचायते अपने ही बोझ से दबकर खत्म हो जाएंगी। इसलिए मैं ग्रामसेवकों के मार्गदर्शन के लिए नियम सुझाता हूं।

  • प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की लिखित इजाजत के बिना कोई पंचायत कायम न की जाए
  • कोई भी पंचायत पहले पहल ढिढोरा पिटवाकर बुलाई गई सार्वजनिक सभा में चुनी जानी चाहिए
  • तहसीन कमेटी द्वारा उसकी सिफारिश की जानी चाहिए
  • ऐसी पंचायत को फौजदारी मुकदमें चलाने का अधिकार नहीं होना चाहिए
  • वह दीवानी मुकदमें चला सकती है, अगर दोनों पक्ष अपने झगड़े पंचायत के सामने रखें
  • किसी को पंचायत के सामने अपनी कोई बात रखने के लिए मजबूर न किया जाए
  • किसी पंचायत को जुर्माना करने की सत्ता नहीं होनी चाहिए, उसके दीवानी फैसलों के पीछे एकमात्र बल उसकी नैतिक सत्ता, कड़ी निष्पक्षता
  • गुनाह करने वालों का कुछ समय के लिए सामाजिक या दूसरी तरह का बहिष्कार नहीं होना चाहिए
  • हर एक पंचायत से यह आशा रखी जाएगी कि वहः
  • अपने गांव के लड़के-लड़कियों की शिक्षा की तरफ ध्यान दे
  • गांव की सफाई का ध्यान रखे
  • गांव की दवा-दारू की जरूरत पूरी करे
  • गांव के कुओं या तालाबों की रक्षा और सफाई का काम देखे
  • तथा कथित अस्पृश्यों की उन्नति और रोजाना जरूरतें पूरी करने का प्रयत्न करे
  • जो पंचायत बिना किसी सही कारण के अपने चुनाव के छह महीने के भीतर नियम 9 में बताई गई शर्ते पूरी न करे, या दूसरी तरह से गांव वालों की सद्भावना को दे, या प्रांतीय कांग्रेस कमेटी को उचित मालूम होने वालें किसी कारण से निंदा की पात्र ठहरे, तो उसे तोड़ दिया जाए और उसकी जगह दूसरी पंचायत चुन ली जाए।

शुरू -शुरू में यह जरूरी है कि पंचायत को जुर्माना करने या किसी का सामाजिक बहिष्कार करने की सत्ता न दी जाए, गांवों में सामाजिक बहिष्कार अज्ञान या अविवेकी लोगों के हाथ में एक खतरनाक हथियार सिद्ध हुआ है। जुर्माना करने का अधिकार भी हानिकारक साबित हो सकता है। जहां पंचायत सचमुच में लोकप्रिय होती है और नियम 9 में सुझाए गए रचनात्मक कार्य के जरिए अपनी लोकप्रियता को बढ़ाती हैं, वहां वह देखेगी कि उसकी नैतिक प्रतिष्ठा के कारण ही लोग उसके फैसलों और सत्ता का आदर करते हैं। और वही सबसे बड़ा बल है, जो किसी के पास हो सकता है और जिसे कोई उससे छीन नहीं सकता।

यंग इंडिया, 28-5-1931

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *