विद्वता का आयोजन ; देवेन्द्र स्वरुप स्मारक व्याख्यान

प्रज्ञा संस्थान

बीते शुक्रवार ३१ मार्च को विद्वता का अद्भुत संगम हुआ. अवसर था श्री देवेन्द्र स्वरुप के पांचवे स्मारक व्याख्यान का . कार्यक्रम का निर्धारित विषय था, ‘बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में भारत’. स्थान था इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र का समवेत सभागार. यह अवसर मात्र देवेन्द्र स्वरुप जी की स्मृति में आयोजन का ही नही बल्कि दो विद्वानों की संयुक्त उपस्थिति का गवाह बना. इस कार्यक्रम के अध्यक्ष इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय थे एव मुख्य वक्ता के तौर पर डॉ. मुरली मनोहर जोशी आमंत्रित थे. शुरुआत प्रो. रमेशचंद्र गौड़ के संबोधन से हुआ . उन्होंने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि बताने के साथ ही कला केंद्र की विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखित ग्रंथों के संरक्षण की योजना से अवगत कराया . इसके पश्चात् मुख्य वक्ता प्रो. मुरली मनोहर जोशी ने अपना भाषण दिया.

जोशी जी ने अपने लंबे व्याख्यान में सभ्यताओं, विकास और आधुनिकता के अंतरद्वन्द को तलाशा. जोशी जी ने सभ्यताओं की बात की. उनका बताया कि  मानव सभ्यता अगर उसे के हादसे उस इतिहास की जो अनादि काल से चला आ रहा है उस पर बता में जहां लूटमार नहीं जहां अपने समाज के साथ मिल बांट कर खाने-जीने की प्रथा थी. उन्होंने वर्तमान मान्यताओं की तुलना करते हुए कहा कि, क्या विकास की यह पैमाने हमारे लिए सही है जिस पर आज हम खुश हो रहें है. एक समय जीडीपी को. विकास का मानक समझा गया. फिर उसकी निरर्थकता समझ आयी तो हैप्पीनेस इंडेक्स को खुशहाली मानक के तौर पर अपनाया गया. लेकिन वो भी पर्याप्त नहीं है.
 जोशी जी ने प्रश्न किया कि हम जो विकास की व्यवस्था को देख  रहें हैं क्या वो उचित है? अगर वो उचित है तब तो विचार का कोई प्रश्न ही नहीं है. यदि नहीं तो फिर यह चिंतन का विषय है. उन्होंने बताया कि आधुनिकता ने कैसे जीवन के हर क्षेत्र हो चाहे वह आध्यात्म ही क्यों ना हो उसको अपने घेरे में जकड़ रखा है. जोशी जी इसका उदाहरण देते हैं कि एज जमाने में अमेरिका हिप्पीयों की तरह लोग  बनारस के घाटों पर बैठकर दम मारा करते थे अब उसे छोड़ा तो नये फैशन में सड़क पर कीर्तन करते चल रहें हैं. जोशी जी के लंबे विद्वतापूर्ण भाषण ने उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.
इसके पश्चात् इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय का संबोधन हुआ. राय साहब ने अपने अध्यक्षीय भाषण में मुरली मनोहर जोशी को ज्ञान, संस्कृति और राजनीति की त्रिमूर्ति कहा.जैसी की परंपरा सी बन गई है. राय साहब ज़ब बोलने के लिए खड़े होते हैं तो किसी भी सभा का सारा आकर्षण खींच ले जाते हैं. अपने संक्षिप्त भाषण में राय साहब ने पुनः इसी परंपरा को कायम रखा. उन्होंने संचालक द्वारा जोशी जी का परिचय राज्यसभा सांसद के रूप में देने को अधुरा मानते हुए बताया कि मुरली मनोहर जोशी लोकसभा सदस्य रहें हैं. और अतीत की एक घटना का विवरण दिया. राय साहब ने बताया कि वे आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में अल्मोड़ा से जीतकर संसद पहुँचे थे. उस समय उनके चुनाव प्रचार के लिए कोई भी युवा छात्र नेता वहाँ जाने को तैयार नहीं था. ऐसे में डॉ. चंद्रभानु गुप्त ने राय साहब को बुलाया और पूछा कि क्या तुम जाना चाहोगे. राय साहब ने कहा कि यदि आप कहेंगे तो जरूर जाऊंगा. अतः उन्हें जोशी जी के चुनाव प्रचार के लिए अल्मोड़ा भेजा.
जोशी जी की लोकप्रियता के विषय में बताते हुए राय साहब कहते हैं कि एक साधारण कार्यकर्ता जब 15 से 20 मिनट के लिए रिक्शे पर लाउडस्पीकर लगाकर घूम लेता था तब भी उनकी जनसभाओं में 15 से 20 हजार की भीड़ इकट्ठी हो जाती. ऐसे ही अल्मोड़ा की एक सभा के विषय में बताते हैं कि किसी आवश्यक कार्य की वजह से जोशी वहां नहीं पहुंच सके. तब राय साहब ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जोशी जी जेपी के प्रत्याशी हैं. जेपी ने ‘राइट टू रिकॉल’ की मांग की है. अगर वह अच्छा काम नहीं करेंगे तो उन्हें वापस बुला लिया जाएगा. इस विषय की चर्चा ज़ब जोशी जी के सामने की गई. और लोग उनसे पूछने लगे कि क्या सच में राइट टू रिकॉल की बात हो रही है? साथ ही इस बात के लिए मेरी शिकायत की गई. लेकिन उस वक्त जोशी जी जो कहा था वह आज मैं उनके सामने कहता हूं. उस वक्त उन्होंने कहा कि आप लोगों ने ठीक से जो राम बहादुर जी का वक्तव्य नहीं सुना. उन्होंने कहा है कि जोशी जी को जिताना है बाकी सब बातें जाने दीजिए. राय साहब के यह कहते ही पूरी सभा ठहाके मारकर हंस पड़ी. इस तरह एक ज्ञान और रूचि से पूर्ण सभा का समापन हुआ.

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