बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.भाजपा को 89 सीटें मिली हैं. जदयू को 84 सीटें मिली हैं. और एनडीए में शामिल चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास ) को 19 सीटें मिली हैं. जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) को पांच सीटें मिली हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा चार सीटें जीतने में सफल रही है.महागठबंधन 35 सीटों पर ही सिमट गया.
जहां मुसलमानों की जनसंख्या 25% से 40% के बीच है। ये सारी सीटें एनडीए के पक्ष में गईं हैं.सवाल यह है कि अगर किशनगंज में कांग्रेस की जीत को अलग रख दें तो सीमांचल की मुस्लिम बहुल सीटों पर आरजेडी या सीपीआई-एमएल जैसी पार्टियों का खाता भी नहीं खुला है. यह इस बात का संकेत है कि मुसलमानों ने महागठबंधन से अगुवाई वाले दलों से आगे बढ़कर देखना शुरू कर दिया है. बिहार के सीमांचल क्षेत्र में ओवैसी की पार्टी ने जो पांच सीटें जीती हैं, वहां मुसलमानों की जनसंख्या 40% से ज्यादा है. ये सीटें हैं- बैसी, जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन और अमौर। इन पांचों सीटों पर एआईएमआईएम को बहुत बड़ी संख्या से जीत मिली है। इन सीटों पर हारने वाले चार मुसलमान प्रत्याशियों में दो-दो महागठबंधन के हैं.
तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों के लिए स्थायी नौकरी, तीस हज़ार के वेतन, कर्ज़ माफ़ी, दो सालों तक ब्याज़-मुक्त क्रेडिट, दो हज़ार का अतिरिक्त भत्ता और पांच लाख तक का बीमा कवरेज देने का लंबा-चौड़ा वादा किया.इसके बावजूद
नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए.एनडीए की जीत में महिलाओं के लिए उनकी कल्याणकारी योजनाओं का अहम् कारण है.अपने पहले कार्यकाल में ही नीतीश कुमार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल पोशाक और मैट्रिक की परीक्षा फ़र्स्ट डिविज़न से पास करने वाली छात्राओं को दस हज़ार रुपए की राशि दी. बाद में बारहवीं की परीक्षा फ़र्स्ट डिविज़न से पास करने पर 25 हज़ार रुपए और ग्रेजुएशन में पचास हज़ार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाने लगी. अपने पहले कार्यकाल में नीतीश कुमार ने महिलाओं को पंचायत चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया.
पुलिस भर्ती में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा दी और इस बार के चुनाव में ये भी वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो राज्य सरकार की नौकरियों में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा.एनडीए में चिराग पासवान की वापसी और उपेंद्र कुशवाहा के शामिल होने से गठबंधन मज़बूत हुआ. यह भी एक तथ्य है. दलित, ईबीसी का एक बड़ा वर्ग, कुशवाहा वोट सब एनडीए के लिए एकजुट रहे. टिकट बँटवारे में भी जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा गया ,तेजस्वी यादव इस बार मुस्लिम-यादव वोटरों से आगे नहीं बढ़ पाए. यानी उनका वोटर बेस का विस्तार नहीं हुआ.
तेजस्वी यादव के लिए अब भी अपने पिता लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल की ‘जंगलराज’ वाली छवि को भेदना एक बड़ी चुनौती है. दूसरी तरफ़ नीतीश कुमार की अपनी छवि को अब भी बनाए हुए हैं. नीतीश के लंबे कार्यकाल के दौरान क़ानून-व्यवस्था, सड़क-बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार उनके पक्ष में काम करती है. इसी वजह से भी एक बड़े तबके में नीतीश कुमार स्थिरता, अनुभव और शासन की निरंतरता के प्रतीक बने हुए हैं.
बीजेपी ने इस चुनाव को बेहतरीन तरीके से लड़ा. चिराग पासवान ने कहीं भी असहज करने वाले बयान नहीं दिए. गठबंधन एकजुट रहा. इससे वोटर में एक विश्वास पनपता है.”वहीं महागठबंधन आख़िर तक सीट शेयरिंग को लेकर एकमत नहीं नज़र आया. तक़रीबन आठ से ज़्यादा सीटें थीं, जहां महागठबंधन के ही प्रत्याशी एक दूसरे को चुनौती दे रहे थे.
कांग्रेस ने तेजस्वी के चेहरे पर समय रहते भरोसा नहीं जताया. इनकी शुरुआत ही गड़बड़ रही. कांग्रेस बहुत कमज़ोर सहयोगी दल साबित हुआ. वहीं एनडीए अलायंस मज़बूत था, न केवल एकजुटता के मामले में बल्कि अलग-अलग जातिवर्ग को साथ लाने के मामले में भी.महिलाओं का एक ख़ास जुड़ाव रहा है नीतीश कुमार के साथ, इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार के पक्ष में एकतरफा मतदान किया .
